गुंजाइश – संध्या त्रिपाठी  : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi : सॉरी सॉरी अर्पण देर हो गई यार ….बहुत देर से इंतजार कर रहे हो क्या….?? सीढ़ी से उतरकर कार में बैठते ही अनन्या ने पूछा ….! अर्पण ने जवाब दिए बिना गाड़ी स्टार्ट कर आगे बढ़ा दी…. कुछ देर मौन के बाद अनन्या ने ही चुप्पी तोड़ी….. वो क्या है ना अर्पण..एकदम से निकलने के समय में ही बॉस आ गए …और काम के बारे में कुछ पूछ-ताछ करने लगे…।

अरे तो एक फोन ही कर देती… एक मैसेज तो कम से कम कर सकती थी ना…. अब क्या है ना अर्पण …बॉस के सामने पर्स से फोन निकालकर तुम्हें कॉल करती ….? इस बार अनन्या की आवाज भी थोड़ी सख्त थी …।

अरे मम्मी जी आपने भी अभी तक चाय नहीं पी …..बैग टेबल पर रखते हुए अनन्या ने सासू मां से पूछा …..जो अभी-अभी कुछ दिनों के लिए बेटे बहू के पास आई थीं…. नहीं बहू चाय का मजा तो सबके साथ मिलकर पीने से ही आता है …क्यों अर्पण …? मम्मी जी ने अर्पण की तरफ देख कर कहा …अर्पण के चेहरे पर देर होने की नाराजगी साफ झलक रही थी…।

आज अनन्या को एक साल पहले वाली बात बार-बार क्यों याद आ रही थी…. जब वो अर्पण से मिली थी …दोनों में प्यार हो गया… एक ही शहर में दोनों की जॉब थी उस समय भी समय बेसमय अर्पण वीडियो कॉल कर कर के पूछते थे …कहां हो …बार बार वीडियो कॉल से परेशान अनन्या ने धीरे-धीरे खींझना शुरू किया …अर्पण ने बचाव में तुम्हें देखने का मन हो रहा था… प्यार के विभिन्न रूपों का आवरण चढ़ा कर बचता गया था…।

पढ़ी लिखी समझदार अनन्या को कई दफे अर्पण के ऐसे हरकत से संदेह भी हुआ ….कि कहीं ये मुझ पर शक तो नहीं कर रहा है ….? पर अर्पण की चिकनी चुपड़ी बातों ने संदेह को हमेशा ढका ही रहने दिया…!

दोनों परिवार वालों ने मिलकर लव मैरिज को अरेंज मैरिज का रूप दे दिया ….खट्टी मीठी नोकझोंक के मध्य एक साल बीत गए …हालांकि साल भर में काफी उतार-चढ़ाव हुए खट्टी मीठी यादों के बीच कब अनन्या की आंख लग गई पता ही नहीं चला…।

अचानक आंख खुली.. चौक कर अनन्या ने घड़ी की ओर देखा… थैंक्स गॉड देर नहीं हुई है ..आपाधापी के मध्य नित्य क्रिया से निवृत्त हो कर ऑफिस के लिए अनन्या निकली …सासू मां की भी जितनी खिदमत हो सकती थी अनन्या पूरी करती थी ….हालांकि सासू मां हमेशा अनन्या की व्यस्तता को समझती थी.. और सासू मां का पूरा सहयोग भी उसके साथ होता था….।

ठीक है मम्मी जी अपना ध्यान रखिएगा…कहकर अनन्या निकल गई….. जाते-जाते उसने अर्पण और सासू मां को अवगत करा दिया था कि आज ऑफिस में देर हो सकती है…. उनके किसी सहकर्मी के विदाई समारोह का कार्यक्रम है….!

दफ्तर से लौटने के नियत समय से आधे घंटे विलंब होने पर ही अर्पण की बेचैनी बढ़ गई… जबकि मम्मी जी बार-बार अर्पण को समझाती रही थी कि… बहू बोल कर गई है फिर परेशान क्यों होना…. पर नहीं अर्पण था कि हर दस मिनट में बार बार फोन किए जा रहा था …..जब दो बार फोन जाने पर अनन्या ने कॉल रिसीव नहीं किया तो अर्पण की बेचैनी बढ़ने लगी….

अचानक मोबाइल बजी.. अर्पण ने झट फोन उठाया …..बिना कुछ सुने खुद ही बोलता गया…..आ गई घर की याद ….हो गई पार्टी खत्म…. जैसी न जाने कितने ताने सुनाएं …..!एक मिनट सुनोगे अर्पण मेरी बात …..भर्राई आवाज में अनन्या ने कहा…. मैं बरसात में बुरी तरह फंस गई हूं …..कुछ लड़के पीछे खड़े हैं जो मुझे सही नहीं लग रहे हैं ….बरसात और नेटवर्क के चलते फोन लग ही नहीं रहा था ….प्लीज लेने आ जाओ…. एक मिनट रुको …मैं वीडियो कॉल करता हूं …..क्या…?? वीडियो कॉल ….?? पागल हो गए हो क्या ….?? क्या जानना चाहते हो….? मैं झूठ बोल रही हूं ….?आखिर तुम चाहते क्या हो अर्पण…??

भैया ऑटो खाली है…? रहने दो अर्पण ….ऑटो मिल गया है मैं घर आ जाऊंगी ….! ऑटो में बैठते ही अनन्या ने आज निर्णय कर लिया… बहुत हो गया अब ऐसे आदमी के साथ निभ पाना मुश्किल है… जिसे मुझ पर विश्वास ही नहीं है …अलग रहने में ही भलाई है ….पूरा मन बना कर आज अनन्या अपना फैसला सुनाना चाहती थी…।

लीजिए भैया पैसे ….ऑटो वाले को पैसे देकर जैसे ही कमरे में प्रवेश करनी चाही सासु मां की आवाज सुनाई दी ….वो फोन पर किसी से बात कर रही थीं …क्या बताऊं बहन ….बहू बहुत अच्छी है… समझदार है ….मेरा बेटा ही नासमझ है ….कभी-कभी तो अर्पण का स्वभाव मुझे भी समझ में नहीं आता है सनकी की भांति व्यवहार करता है….

प्यार करना… चिंता करना …परवाह करना… तो समझ में आता है… पर अति किसी भी चीज की बुरी होती है… माना जिंदगी में वो धोखा खाया है पर उसका ये मतलब थोड़ी ना है कि वो अपना विवेक ही खो दे…।

अरे आ गई बहू…. चलो अब अर्पण की चिंता खत्म हुई ….मम्मी जी आपसे मुझे कुछ पूछना है …आज अनन्या ने सपाट शब्दों में सीधे-सीधे सासू मां से ही सवाल किया….

अर्पण के साथ क्या धोखा हुआ था ….?

अब सासू मां को समझते देर नहीं लगी कि अनन्या ने फोन वाली सारी बातें सुन ली है ….हां बेटा इसकी शादी एक बार पहले भी लगी थी ….उस लड़की ने ऐन मौके पर इससे शादी करने से इंकार कर कहीं और शादी कर ली … उसके बाद से ही इसे ….

” भरोसा जैसे शब्द से ही भरोसा उठ गया…! “

अनन्या को अर्पण की मन: स्थिति समझ में आने लगी थी…..

और परिवार बिखरने से बचने की ” गुंजाइश ” दिखने लगी थी….!

धीरे-धीरे बात कर ….मनोचिकित्सक से संपर्क कर ….और प्यार विश्वास से परिस्थिति अनुकूल बनाकर अनन्या और सासू मां ने मिलकर …पूरी नकारात्मकता निकाल अर्पण के मस्तिष्क में सकारात्मकता भरने में सफल हो …..उसे अवसाद (डिप्रेशन) से बाहर निकाला ….और एक बार फिर एक बिखरता परिवार संवरकर खुशहाल हो गया…।

( स्वरचित मौलिक एवं अप्रकाशित सर्वाधिकार सुरक्षित रचना)

श्रीमती संध्या त्रिपाठी

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