गूंगा बेटा – सीमा प्रियदर्शिनी सहाय : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi  :  “तुम्हारे पापा ने कितने प्यार से यह कोठी बनवाया था…अब उसे बेचकर.. क्..क्या फायदा…कम से कम मेरे जीने तक तो छोड़ दो…!”कांपती हुई आवाज़ में सुकन्या देवी अपने बेटे से बोल रहीं थीं।

अमन फोन पर ही चीख उठा

“मां…हर कोई अपने खुशी से ही घर बनाता है…चाहे वह पापा हों या कोई और…।अब मैं ने फैसला कर लिया है कि मैं वह घर बेचूंगा ही.. और मेरा यह फैसला कोई बदल नहीं सकता…।बस मैं अगले महीने आ रहा हूँ।वीजा का इंतजार कर रहा हूँ।

वीजा रिलीज होते ही मैं भारत आ जाऊंगा।मैं ने दो तीन खरीदारों से बात भी कर लिया है।

आप मेरे साथ यूएस आएंगी…जब तक वीजा नहीं मिलेगा तबतक शांति निकेतन में आपका बंदोबस्त कर दिया है।”

“शांति निकेतन…!!! अब पूरी जिंदगी वृद्धाश्रम में बिताना पड़ेगा…!”सुकन्या जी बुदबुदा रही थीं।जब तक वह कुछ कहतीं फोन कट चुका था।

“आँ….!!!!!!!!!”वह चिल्ला कर  फूट फूट कर रो पड़ीं।

मगर उस वीरान कोठी में उनका रुदन सुनने वाला भी कोई कहाँ था…!!

अपने आँखों से बहते हुए आंसू को पोंछने का मन ही नहीं कर रहा था।

अमन की बातें सुन कर वह अपने आप को ही दोषी मान रहीं थीं।न जाने कहाँ गलती हो गई।

“अमन ऐसा संस्कार हीन कैसे हो गया…जबकि उसके पापा ने तो जिंदगी भर अपने माता पिता को अपने साथ ही रखा।

अपनी तीनों बहनों को अपनी हैसियत से देनलेन करते ही रहे।पर उनका सगा बेटा ऐसा एहसानफरामोश कैसे हो गया…!

वह अपनी मां को वृद्धा श्रम में भेजना चाहता है और उनके आशियाना को बेचकर अपने लिए बंगला खरीदना…!

न जाने ऐसी खुशियाँ क्या देंगी…!!!”

काफी देर तक रोते हुए वह आखिर थककर सोफे पर बैठ गईं।तभी उन्हें लगा कोई नरम सी चीज उन्हें छू रही है।

“शेरिल…!”वह फिर से रो पड़ी।

सोफे पर बैठते ही शेरिल अपने पूंछ और फरों से उन्हें रगड़ना शुरू कर दिया।

“कूं..कूं…!वह जैसे पूछना चाहता था कि आखिर वह रो क्यों रही हैं…!”

“शेरिल…मेरा बच्चा…!”सुकन्या जी ने उसे अपने गोद में उठा लिया।

तुम तो मेरे अपने बच्चे नहीं हो ना फिर भी तुम्हारे भीतर कितनी हमदर्दी है मेरे लिए…और एक मेरा बेटा है…कितना खुदगर्ज…।

इस घर को बनाने में मैंने कितना त्याग  किया है, कितनी भावनाएं  बोई हैं.. यह उसे नहीं दिखता…!

घर होते हुए मुझे बेघर करने को उतावला है बावला…!”

सुकन्या जी बड़बड़ाने लगीं।शेरिल ने अपने शरीर से उन्हें लपेट कर बैठ गया जैसे कि वह उनका सारा दर्द हर लेगा।

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रमेश बाबू और सुकन्या जी की घर गृहस्थी सुखमयी पटरी पर दौड़ रही थी।

अभी ही छह महीने पहले रमेश जी रिटायर हुए थे।

उन्होंने रिटायरमेंट के बाद दसियों प्लान बना कर रखा था।

एक दिन मॉर्निंग वॉक के दौरान बहुत ही घायल अवस्था में एक कुत्ता मिला था जिसे वह अपने घर उठा कर ले आए थे।

वह उसकी देखभाल करते।अच्छे केयर के बाद वह स्वस्थ हो गया।

उन्होंने ही उसका नाम शेरिल रखा था।

अमन के शादी और विदेश में सैटल करने के बाद शेरिल ही उन दोनों का सहारा बन चुका था।

कभी कभी रमेश बाबू कहते

“यह मेरा गूंगा बेटा है।जिसे मेरे प्यार दुलार के अलावा और कुछ भी नहीं चाहिए।”

सबकुछ ठीक ही चल रहा था कि एक दिन अचानक ही हार्ट अटैक से रमेश बाबू चल बसे।

सबकुछ इतना अचानक हुआ कि कोई कुछ समझ ही नहीं सका।वह तो गनीमत थी कि घर सुकन्या जी के नाम था।

बैंक और नगर निगम की सारी ऑथोरिटी पूरी करने के दौरान अमन को पता चल गया कि उनके पिता को रिटायरमेंट में एक मुश्त रुपया मिला है। और आधी पेंशन उसकी मां को मिलता रहेगा।

इसलिए उसने धीरे धीरे एक बहुत ही बड़ा प्लान तैयार कर लिया था।

वह उसे घर को बेचकर कर अमेरिका में एक बड़ा बंगला लेने की प्लानिंग कर रहा था ।

इसके लिए उसने अपनी मां को पहले प्यार से समझाना शुरू किया। जब सुकन्या जी नहीं  मानी तब उसने सीधे-सीधे उन्हें धमकी दे दिया था।

अगले महीने वह भारत आने वाला ही था। सुकन्या जी काफी देर रोने के बाद अब संभल चुकी थी।

उस बड़ी कोठी में वह और शेरिल थीं, उनके अलावा और कोई नहीं।

” अगले महीने जब अमन आ जाएगा उसके बाद या छत उनसे छिन जाएगा फिर उनका क्या होगा ….!वृद्ध आश्रम में दर-दर की ठोकरें खाती फिरेंगी।

नहीं नहीं मैं अपने जीते जी यह नहीं होने दूंगी। उसके पापा का बनाया हुआ यह आशियाना बिखरने नहीं दूंगी…!”

दूसरे दिन उन्होंने अपने वकील को बुलाया और अपनी वसीयत तैयार कर लिया।

” मेरे मरने के बाद इस कोठी को अनाथ बच्चों और वृद्ध लोगों के लिए एक आश्रय बना दिया जाए।”

एक मजबूत वसीयत के साथ वह अपने बेटे का इंतजार कर रहीं थीं।

अमन निश्चित समय पर आया। उसने अपनी मां को ब्रेन वाश करते हुए कहा

“मां मैंने सारे खरीदारों से बात कर लिया है वह एक मोटा पैसा देंगे। मुझे अमेरिका में घर खरीदना है।मुझे यह सब बेचना होगा। नहीं तो वहां घर खरीदना तो एक सपने जैसा है।” 

सुकन्या जी चिढ़कर बोलीं 

” तुम्हारे घर खरीदने के लिए मैं अपना घर क्यों बेचूँ?”

“मां यह कैसी बातें कर रही हैं आप? अमन चिढ़ते हुए बोला, अब आप यहां अकेली कैसे रहोगे?”

” मैं अकेली कहां हूं?”

“तो आपके साथ कौन है?”

” है ना मेरे साथ मेरा गूंगा बेटा। मुझे किसी और की जरूरत नहीं है। अगर तुम्हें यह घर बेचना है तो पहले तुम्हें मुझे मारना होगा। मेरे जीते जी मैं यह घर नहीं बेचने दूंगी।”

“यह आप क्या कह रही हैं ?” 

सुकन्या जी ने अपना नया वसीयत निकालकर अमन को दिखाते हुए कहा

” कोई भी अब मुझे इस घर से बाहर नहीं कर सकता और मुझे तुम्हारी जरूरत नहीं है तुम जैसे आए हो वैसे ही चले जाओ।”

“मेरे बिना आप जी लोगे?” अमन बोला।

“पहले लगता था कि मैं तुम्हारे बिना नहीं जी पाऊंगी लेकिन अब यकीन हो गया है कि मैं तुम्हारे साथ नहीं जी सकती।

तुम्हारे उसूल,तुम्हारे संस्कार इतने खोखले हो गए हैं कि तुम्हारे साथ रहना ही मुश्किल है। मैं अकेली भली हूं ।”सुकन्या जी ने कहा।

“ऐसा मैंने क्या किया?” अमन फिर से बोला।

“जब तुम्हारे पापा नहीं हैं तो तुम उनकी एक मात्र निशानी को भी हटाना चाहते हो। तुम्हारा उसूल यह रह गया है? अपने स्वार्थ में अंधे हो गए हो और यह पूछते हो कि तुमने क्या किया है। अपनी मां को वृद्ध आश्रम में भेजोगे। 

अपने साथ दूसरे देश ले जाओगे ताकि मैं वापस आने के लायक ही ना रहूं। मेरे पास न ठौर रहे ना ठिकाना।”

“न जाने मैं तुम्हारे भीतर संस्कार डालने में कौन सी गलती कर दी थी। तुम्हारे जैसे संस्कारहीन बेटे के साथ कोई कैसे रह सकता है?” सुकन्या की लगातार अपने रौ में बोलते जा रही थी ।

अपनी मां के प्रताड़ना सुनकर अमन को होश आया। वह अपनी मां के पैरों पर गिर पड़ा और कहा

“मां मुझे माफ कर दो। सच में मै असंस्कारी हूं। अपने स्वार्थ और लोभ के आगे मैंने आपको अपने आप को अंधा कर लिया था।

अब जाकर मेरी आंखें खुली हैं। यह घर आपका है और आजीवन आपका ही रहेगा…!”अमन फूटफूटकर रो रहा था।

सुकन्या जी ने उसे अपने गले से लगा लिया।

” जाओ बेटा अपनी जिंदगी जियो। जब तक मैं जिंदा हूं मैं यही रहूंगी।”

अमन कुछ दिन रहकर वापस चला गया। सुकन्या जी अपनी गूंगे बेटे के साथ खुशी खुशी रहने लगीं।

प्रेषिका–सीमा प्रियदर्शिनी सहाय

# संस्कारहीन

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