घर आंगन – वीणा सिंह : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi  :  मैं सिया, उम्र के इस पड़ाव पर भी मुझे अपने घर आंगन  की तलाश और आस अभी भी है..

          जब से होश संभाला मां और दादी के मुंह से यही सुना तू किसी और के घर आंगन की शोभा है.. बेटियां उस पौधे की तरह होती हैं जो जनम तो किसी और आंगन में लेता है पर शोभा किसी दूसरे के आंगन का बनता है..

             रजनीगंधा गुलाब रेन लिली और न जाने अनगिनत फूल और पौधे मैने अपने घर आंगन में लगाया था.. फूल खिलने पर चहक उठती, पूरे घर में नाचती और सबको दिखाती, देखो मेरे अंगना का फूल.. दादी कहती ये घर आंगन एक दिन पराया हो जाएगा सिया.. मैं थोड़ी देर के लिए मायूस हो उठती.. और पूछती भईया लिए भी दादी, दादी कहती नही भईया का हीं ये घर है.. तू दूसरे घर आंगन की रौनक है..

                   वक्त गुजरते कहां वक्त लगता है.. मेरी शादी रजत से हो गई.. दीवाली में बचपन से बनाए घरौदें कुलिया चूकिया, आंगन में लगाए अमरूद और नींबू का पेड़ अनगिनत फूल और तुलसी के पौधे, मेरा कमरा, मेरी अलमारी, बचपन से लेकर बड़े होने तक के खिलौने टेडी बियर सखियों से मिले उपहार छोटी बड़ी यादें रिश्ते सब कुछ छोड़ कर अपने #घर आंगन #में दुल्हन बन के आ गई.. बचपन से मन मस्तिष्क में बैठा ससुराल का घर आंगन हीं मेरा अपना होगा , ये सपना अब साकार होगा..   

                          पर ससुराल में गुजरने वाला हर दिन ये एहसास करा रहा था , बस कहने भर को ये मेरा घर आंगन था, परायेपन का अहसास कभी सासु मां तो कभी ननद तो कभी पति करा हीं देते..

                    मैं पहली बार मायके से लौटी तो साथ में रेन लिली रजनीगंधा और लाल गुलाब के पौधे लाई लगाने के लिए.. सासु मां और ससुर जी ने कहा ये लगाने की जगह नहीं है , सब कुछ संतुलित तरीके से लगा है , छेड़ छाड़ मत करो सिया.. गमले में लगाना चाहा तो बोले आंगन में गमले रखने से बहुत कंजस्टेड लगेगा. और सारे पौधे सुख गए. कभी अपने पसंद के खाने बनाती तो सब कहते ये सब अपने मायके में हीं खाना खिलाना, हमे पसंद नही..

              शादी के पहले दो तीन जगह इंटरव्यू दिया था. वहां से कॉल लेटर आया. सासु मां और ससुर जी ने साफ मना कर दिया.. रजत ने भी उन्ही का साथ दिया..

               शादी के दो साल बाद मैं एक बेटे रवि की मां बन गई..

रवि दस साल का था तभी रजत की मृत्यु एक दुर्घटना में हो गई.. बीमा के दस लाख रुपए के लिए बहुत झगड़ा हुआ.. मैने उस पैसे को ससुर जी के हाथ में देने से इंकार कर दिया.. मुझे अपने बेटे का भविष्य देखना था.. नतीजा मुझे मायके आना पड़ा..

          भाभी मेरे कमरे का सारा सामान कामवाली को देकर अपनी बेटी के हिसाब से कमरे का इंटीरियर करवा लिया था..

                   सब कुछ बदल गया था… संघर्ष करते करते किसी तरह मैं रवि को इंजीनियरिंग कॉलेज में एडमिशन करवा दिया..

                और पढ़ाई खतम होने से पहले हीं रवि का कैंपस सिलेक्शन हो गया..

          रवि की नौकरी लग गई.. फिर उसकी शादी मान्या से हो गई.. हम तीनों पूना आ गए.. रवि दो साल बाद फ्लैट लिया, आगे पेड़ पौधे लगाने की जगह भी थी.. मुझे लगा यही शायद मेरा अपना घर आंगन है पर… मान्या और रवि इंटीरियर से लेकर फर्नीचर परदे सब अपने पसंद से लाते. फूल पौधे भी मान्या और रवि अपनी पसंद के माली से लगवा रहे थे.. मैने एक दो बार हुलस कर अपनी राय दी पर उसे अनसुना कर दिया. रवि ने हंसते हंसते कहा मां मान्या का घर आंगन है, उसको अपने पसंद से सजाने दो… और मेरा घर आंगन मेरे लिए आज भी यक्ष प्रश्न बन के रह गया है…

    #स्वलिखित सर्वाधिकार सुरक्षित #

     Veena singh

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