गीतांजलि (भाग 3 ) – डॉ पारुल अग्रवाल : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi  : शुरू के तीन-चार महीने तो आराम से निकल गए पर अब सुमित्रा जी पर कैंसर जैसी असाध्य बीमारी ने अपना असर दिखाना शुरू कर दिया। धीरे-धीरे वो बिस्तर पर आ गई। डॉक्टर तो उनको पहले ही जवाब दे चुके थे। उनके आखिरी दिनों में गीतांजलि ने उनका बहुत ख्याल रखा। उनके नित्यक्रम से लेकर खिलाने तक वो उनके आस-पास बनी रहती।

राघव को भी बिना कुछ कहे उसका सारा सामान अपनी जगह तैयार मिलता। ऐसा लगता था जैसे उस घर-आंगन से गीतांजलि का कोई पिछले जन्म का नाता था जिसमें वो इतनी जल्दी रच बस गई थी। अब शायद सुमित्रा जी का आखिरी समय निकट था। उनको भी कुछ आभास हो चला था पर वो गीतांजलि को बहू के रूप में पाकर पूर्णतया संतुष्ट थीं।

उन्होंने राघव और गीतांजलि को इशारे से अपने पास बुलाया और दोनों के सर पर हाथ फेरते हुए आंखें मूंद ली। राघव के साथ-साथ गीतांजलि के लिए भी ये सब असहनीय था। 

गीतांजलि को लग रहा था जैसे कुदरत ने दूसरी बार उससे मां का आंचल छीन लिया था। सुमित्रा जी के जाने के बाद अब उसे भी ये घर-आंगन छोड़कर राघव की ज़िंदगी से जाना था क्योंकि शादी की पहली रात यही उन दोनों के बीच तय हुआ था। अभी वो ये सोच ही रही थी कि राघव की आवाज़ सुनकर वो अपने वर्तमान में वापस आ गई।

अब राघव का बुखार पूरी तरह उतर चुका था। वो भी मन ही मन अपने अंदर उमड़ते भावनाओं के आवेश को नियंत्रित करते हुए जल्द से जल्द राघव की दुनिया से चले जाना चाहती थी क्योंकि वो अब कमज़ोर नहीं पड़ना चाहती थी। वैसे भी जीवन की परिस्थितियां कभी भी उसके लिए सामान्य नहीं थी।

वो राघव के पास से जैसे ही जाने की लिए उठी वैसे ही राघव ने अधिकारपूर्वक उसका हाथ पकड़ लिया और कहा मां तो मुझे छोड़कर चली ही गई हैं अब मैं तुम्हें नहीं जाने दे सकता। अगर तुम्हें कोई आपत्ति ना हो तो मैं अपनी जवानी से लेकर बुढ़ापे तक का सफ़र तुम्हारे साथ तय करना चाहता हूं। गीतांजलि तो खुद यही चाहती थी पर राघव के रूखे व्यवहार से आहत थी।

ये सुनकर गीतांजलि के चेहरे पर मीठी सी मुस्कान आ गई उसने कहा कि वो हमेशा से ये मानती आई है  कि जब हम अपने पसंदीदा कपड़ों को रफू करके पहले जैसा बना सकते हैं तो ज़िंदगी को क्यों नहीं।

अब हम दोनों मिलकर नए रिश्तों के रफू से अपनी आने वाली ज़िंदगी को सजाएंगे और इस घर-आंगन को भी महकाएंगे। आज गीतांजलि के अपनत्व ने राघव को तो ज़िंदगी के कड़वे अतीत से बाहर निकाला ही था साथ-साथ सुमित्रा जी की आत्मा को भी असीम शांति दी थी।

दोस्तों कैसी लगी मेरी कहानी। इस कहानी की लिखते-लिखते मुझे गुलज़ार साब की ये पंक्तियां “थोड़ा सा रफू करके देखिए ना फिर से नई सी लगेगी,जिंदगी ही तो है” याद आ गई थी।

वास्तव में जीवन मिलता जरूर एक बार है पर हम रफू से इसको भी नया बना सकते हैं। एक अनुभव कड़वा हो तो आवश्यक नहीं कि आगे भी सब गलत होगा। ये सब तो धूप-छांव है जो जीवन के साथ चलती रहेगी।

नोट: ये कहानी पूरी तरह काल्पनिक है। हमेशा ये आवश्यक नहीं होता कि सच्ची घटनाओं पर ही कहानी लिखी जाए। कुछ कहानियां जीवन को नए आयाम देने के लिए भी लिखी जाती हैं।

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गीतांजलि भाग 2 

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डॉ पारुल अग्रवाल 

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