गीतांजलि (भाग 2)- डॉ पारुल अग्रवाल : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi  : आधी रात को रिया नशे में चूर घर पहुंची थी,आज राघव अपने ऊपर नियंत्रण नहीं रख पाया था। गुस्से में उसने रिया को बहुत कुछ सुनाया था। उसकी बातें सुनकर रिया बेचारी होने का नाटक करते हुए थाने पहुंच गई थी। उसने राघव और सुमित्रा जी के खिलाफ़ थाने में रिपोर्ट दर्ज़ करवा दी थी। आज पहली बार कॉलोनी में किसी के घरेलू विवाद के लिए पुलिस आई थी और राघव को अपने साथ ले गई थी।

पूरी कॉलोनी में राघव और सुमित्रा जी की बहुत बदनामी हुई थी और तो और ऑफिस में भी राघव की नौकरी जाते-जाते बची थी। ऐसी अवस्था में राघव को रिया से छुटकारा पाने का एकमात्र उपाय तलाक ही था। रिया ने मनचाही रकम वसूल कर राघव को तलाक दिया था। बस उस दिन से राघव के मन में लड़कियों के प्रति काफ़ी कटुता आ गई थी।

सुमित्रा जी के पति तो वैसे भी बहुत पहले स्वर्ग सिधार गए थे अब वो अकेले ही राघव को किसी तरह संभाल रही थी। इकलौते जवान बेटे की हालत उनसे देखी नहीं जाती थी। राघव के सामने वो सामान्य बनी रहती पर अंदर ही अंदर उसकी चिंता में डूबी रहती। इसी चिंता ने कब कैंसर रूपी बीमारी के रूप मेंउनके शरीर को अपना शिकार बनाया उन्हें पता ही नहीं चला।

जब वो ज्यादा बीमार रहने लगी तो बिना राघव को बताए वो डॉक्टर से चेकअप करवाने गई। सारे चेकअप और रिपोर्ट्स के बाद उनके अंदर कैंसर की पुष्टि हुई।डॉक्टर ने उन्हें बताया कि उनका कैंसर बहुत जल्दी-जल्दी सारे शरीर में फैल रहा है। उनके पास ज्यादा समय नहीं है।

सुमित्रा जी को अपने से ज्यादा राघव की चिंता थी। ये सब सोचकर उन्होंने राघव के लिए मंजुला जी से गीतांजलि का हाथ मांगा। मंजुला जी ने गीतांजलि के सामने राघव के बारे में सब कुछ बताते हुए उसका निर्णय पूछा था, उसने ज्यादा कुछ सोचे समझे सुमित्रा जी की मनोस्थिति भांपते हुए इस रिश्ते के लिए हां कर दी। 

इधर राघव शादी के लिए बिल्कुल भी तैयार नहीं था वैसे भी उसके मन में सभी लड़कियों के लिए नफरत की भावना घर कर गई थी। ऐसे में सुमित्रा जी ने अपनी कसम देकर और कैंसर की बीमारी का सच बताकर राघव को भी किसी तरह गीतांजलि से शादी के लिए तैयार कर लिया। इस तरह गीतांजलि राघव की दुल्हन बनकर इस घर-आंगन में आ गई।

गीतांजलि के भी शादी को लेकर कुछ अरमान थे। उसको राघव के पहली शादी के बुरे अनुभव की तो जानकारी थी पर उसके मन में सभी लड़कियों के प्रति इतनी नफरत है उससे वो अनजान थी।वो राघव का बेसब्री से इंतज़ार कर रही थी। राघव ने कमरे में प्रवेश करते ही बहुत ही रूखे शब्दों में गीतांजलि को बोला था कि वो इस शादी से किसी भी तरह की उम्मीद ना रखे क्योंकि वो अब लड़कियों के त्रिया चरित्र से भली-भांति परिचित है।

वो मां की वजह से इस घर में आई है। जब तक मां हैं तब तक ही वो भी इस घर में है।राघव से उसका कोई संबंध नहीं है। राघव की ऐसी बातों को उसने चुपचाप सिर हिलाते हुए सुन लिया था। ये सब कहकर राघव अपनी चादर लेकर सामने पड़े दीवान पर सोने चला गया था। अगले दिन गीतांजलि सुबह जल्दी ही तैयार होकर सुमित्रा जी के पांव छूने आई थी।

सुमित्रा जी की अनुभवी आंखें सब समझ गई थी तब उन्होंने प्यार से गीतांजलि को गले लगाते हुए कहा था कि आज से वो उनकी बहू नहीं बेटी है।उन्हें उम्मीद है कि अपने प्यार से वो राघव को बदल देगी और उसके दिल में फैली नफ़रत को खत्म करने में कामयाब होगी।

सुमित्रा जी की अपनत्व भरी बातों से गीतांजलि को बहुत सुकून मिला था वैसे भी जब से उसने होश संभाला था तब से वो मां के प्यार से वंचित थी। आज सुमित्रा जी के स्नेह भरे स्पर्श ने उसे मां के आंचल का एहसास कराया था। उसने भी सुमित्रा जी को आश्वासन दिया था कि वो उनकी उम्मीदों पर खरा उतरने की पूरी कोशिश करेगी। बस उस दिन से चाहे राघव गीतांजलि से लाख दूर रहता हो पर वो सुमित्रा जी के साथ मजबूत स्नेह की डोरी से बंध गई थी।

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गीतांजलि भाग 3 

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डॉ पारुल अग्रवाल 

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