“गलती किसकी”  – ऋतु अग्रवाल

दीवाली की सफाई के बाद थकी हारी सुहानी आराम कुर्सी पर अधलेटी सी बैठी थी। तभी गेट खोल कर दफ्तर का चपरासी रामविलास अंदर दाखिल हुआ।

        “बहू जी!यह चिट्ठियाँ लेकर आया हूँ।साहब का फोन भी आया था। मुंबई से कोलकाता के लिए चल पड़े हैं। परसों लौट आएँगे।”उसने चिट्ठियाँ देते हुए कहा।

      सुहानी स्टडी रूम में बैठकर डाक से आए पत्रों को फाइल में लगा रही थी कि उन पत्रों के बीच उसे एक टेलीग्राम नजर आया। उसे खोलकर देखा तो अहमदाबाद से दीनानाथ प्रसाद नाम के किसी व्यक्ति ने भेजा था।

       लिखा था “ममता की मृत्यु लीवर कैंसर से हो गई। उसका आखरी खत और बच्ची का बर्थ सर्टिफिकेट शायद आपको मिल गया होगा जितनी जल्दी हो सके अपनी अमानत ले जाइए।” अपरिचित व्यक्ति का टेलीग्राम पढ़कर उसके वाक्यों का वह अंश “अपनी अमानत—–“सुहानी कुछ समझ नहीं पा रही थी। ममता नाम की उस लड़की के साथ राहुल के क्या संबंध है?

       टेलीग्राम को तकिए के नीचे दबा कर अपने काँपते पैरों को समेटकर सुहानी औंधी लेट गई। तर्क वितर्क सुहानी के मन को मथते रहे।



     राहुल एक आदर्श पति का प्रतिरूप, जिसके बारे में कभी ऐसा कुछ सोच भी नहीं सकती थी पर यह टेलीग्राम——उसे कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करें?

         इसी उधेड़बुन में सुहानी की आँख लग गई। शाम को जब आँख खुली तो सारा बदन दर्द से टूट रहा था। धीरे से फुलिया को आवाज लगाई।

        “आई,बहू जी! आप सो रही थी इसलिए आप को जगाया नहीं। उई माँ! आपको तो जाड़ा चढ़ गया है। कितना तेज बुखार है! मैं थर्मामीटर लाती हूँ।” कह कर फुलिया ने थर्मामीटर सुहानी के मुँह में लगाया।”आपको तो दो बुखार है बहू जी। मैं आपके लिए अदरक की चाय बनाती हूँ और रामविलास काका को बोलती हूँ कि आपके लिए दवाई ले आए।” कह फुलिया बाहर की ओर भागी।

       सुहानी क्या कहती? वजह तो वह जानती थी इस ताप की। दवाई क्या असर करती? यह तो दुविधा और चिंता से चढ़ा बुखार था। दवाई अपना असर कर रही थी। बुखार उतर गया था पर सुहानी बहुत कमजोरी महसूस कर रही थी। दो दिन बीत चुके थे। आज राहुल की फ्लाइट थी। पर वह पहली बार था कि सुहानी उसे पिक करने एयरपोर्ट नहीं गई।

     “क्या बात है सुहानी? आज तुम एयरपोर्ट नहीं आई। और फुलिया बता रही थी कि तुम्हें बुखार आया था। अब कैसी तबीयत है तुम्हारी?” राहुल ने बैग रखते हुए कहा।

   प्रत्युत्तर में सुहानी ने टेलीग्राम राहुल के सामने रख दिया। राहुल ने पत्र पढ़कर एक गहरी साँस ली। फिर उसने सुहानी का हाथ थाम कर कहा,” तो आखिर तुम्हें पता चल ही गया। खैर,यह तो कभी न कभी होना ही था। सुहानी मैं तुम्हें सच बता दूँगा।फिर सारा फैसला मैं तुम पर छोड़ता हूँ।



       “सुहानी, ममता मेरी बड़ी बहन है पर सभी नहीं। हमें भी यह बात बहुत बाद में पता चली। पापा अपनी नौकरी के सिलसिले में अक्सर विदेश जाया करते थे। तब तक पापा की शादी नहीं हुई थी।एक बार पापा किसी सिलसिले में जर्मनी गए। वहाँ उनकी दोस्ती एक भारतीय महिला से हुई जो उनके क्लाइंट की सेक्रेटरी थी। क्योंकि दोनों भारतीय थे इसलिए थोड़ा लगाव होना स्वाभाविक था। उसी लगाव के कारण ही किन्हीं कमजोर क्षणों मे दोनों——-। खैर पापा इंडिया वापस आ गए।

इसके बाद उनका उन महिला पूनम आँटी से कोई संपर्क नहीं रहा।फिर पापा की शादी हो गई और मेरा और उसके बाद राशि का जन्म हुआ।शायद हमें भी कभी इस बात का पता नहीं चलता पर आज से लगभग आठ साल पहले अचानक ही एक फोन आया। हम सब हम सब अहमदाबाद पहुँचे तो पूनम आंटी को हॉस्पिटल में एडमिट पाया। आंटी ने ममता दीदी का हाथ पापा के हाथ में थमाते हुए कहा कि यह आपकी अमानत है। आप तो जर्मनी से वापस लौट आए पर जब मुझे पता चला कि मैं प्रेग्नेंट हूँ तब मैं भी इंडिया आई। यहाँ आने पर मुझे पता चला कि आपकी सगाई हो चुकी है।

आपके परिवारजनों वालों की जगहँसाई और आपकी पत्नी के दिल टूट जाने की तकलीफ को महसूस कर मैं चुपचाप अहमदाबाद आ गई। यहाँ मेरे रिश्ते के ताऊजी दीनानाथ जी की फर्म में मैंने काम करना शुरु कर कर दिया। ताऊ जी से मैंने कह दिया कि मेरे पति जर्मनी में एक एक्सीडेंट में मारे गए और मैं अब दूसरी शादी नहीं करना चाहती। मैं आपको कभी यह बात नहीं बताती पर मुझे ब्रेन ट्यूमर है जो अपनी आखिरी स्टेज पर है। मेरे जाने के बाद ममता बिल्कुल अकेली रह जाएगी। आप समझ सकते हो कि एक लड़की का अकेले रहनान कितना मुश्किल है। मैं आपसे एक ही विनती करती हूँ कि मेरे मरने के बाद आप मेरी बेटी की शादी किसी अच्छे लड़के से कर दीजिएगा भले ही आप उसे अपना नाम मत दीजिएगा।



इतना कहकर पूनम आँटी ने माँ के सामने हाथ जोड़ दिए। एक माँ की पीड़ा को माँ समझती थी इसलिए ममता दीदी की माँ ने ले ली। तीन दिन बाद पूनम आँटी की मृत्यु हो गई। ममता दीदी हमारे साथ मुंबई आ गई। दीनानाथ नानाजी से हमने कह दिया कि हम ममता दीदी के पापा के रिश्तेदार हैं। सुहानी, भले ही ममता दीदी को माँ ने स्वीकार कर लिया पर पापा से उन्होंने अपने सब रिश्ते तोड़ लिए। इसके लिए मैं और राशि, ममता दीदी को दोषी मानते थे और उनसे नफरत करते थे। फिर ममता दीदी शादी के बाद दिल्ली चली गई।

माँ की नफरत पापा बर्दाश्त नहीं कर पाए और उन्हें हार्ट अटैक आ गया। तब से ममता दीदी के लिए हमारी नफरत बढ़ने लगी। माँ तो दीदी का हाल-चाल लेने दिल्ली जाती रहीं। फिर उन्हें पता चला कि दीदी के पति की एक एक्सीडेंट में डेथ हो गई है और दीनानाथ नानाजी उन्हें अपने साथ अहमदाबाद ले गए। वहाँ उनकी एक बच्ची हुई। फिर माँ की मौत के बाद हमें उनके बारे में कोई खबर नहीं। इस टेलीग्राम से ही मुझे ममता दीदी की मृत्यु के बारे में पता चला है। जो सच था वह मैंने तुम्हें बता दिया। मैं दोषी हूँ कि मैंने तुमसे इतनी बड़ी बात छुपाई। अपने पापा की गलती–‐–।”

          “हाँ,गलती तो है। तुम्हारे पापा का तो मुझे नहीं पता। जानकर तो गलती ना पापा ने की, ना पूनम आँटी ने और ना ही ममता दीदी ने। तुमसे ज्यादा बड़ा दिल तो माँ का था जिन्होंने अपने पति की नाजायज संतान को अपनाया। अपने सारे फर्ज पूरे किए पर तुम इतनी बड़ी गलती कैसे कर बैठे? जो कुछ भी हुआ उसमें ममता दीदी की क्या गलती थी? तुम लोगों ने उन्हें वह नफरत और तकलीफ दी है जिसका कोई प्रायश्चित नहीं पर अब दूसरी गलती मैं नहीं होने दूँगी। मैं आज ही अहमदाबाद जाऊँगी और ममता दीदी की बेटी को विधिवत लेकर अपनी बेटी की तरह पालूँगी। अगर तुम्हें अपनी गलती का जरा भी पछतावा है तो तुम मुझे रोकोगे नहीं बल्कि मेरे साथ अहमदाबाद चलोगे।” सुहानी ने अपने आँसू पोंछते हुए कहा।



        पर राहुल वहाँ कहाँ था! वह तो फोन पर दीनानाथ नानाजी को अपने अहमदाबाद आने की खबर दे रहा था। शायद उसे अपनी गलती का आभास हो गया था।

मौलिक सृजन 

ऋतु अग्रवाल 

मेरठ

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