गलतफहमी और सिमटते रिश्ते – पूजा शर्मा  : Moral stories in hindi

एक ही शहर में घर होने के बावजूद एक दूसरे की परछाई कहे जाने वाले दोनों भाई मोहन और बलदेव के बीच कितनी दूरी आ गई थी। सच भी है दिलो में दूरी आ जाने पर खून के रिश्ते भी दूर के ही लगते हैं। 

 दोनों भाइयों का खुलकर तो किसी बात पर विवाद ,ही नहीं हुआ था संपत्ति के झगड़े की तो कोई बात ही नहीं थी । शहर में दो घर होने पर माता-पिता ने दोनों, भाइयों के नाम एक-एक घर किया हुआ था। बड़े भाई मोहन की शहर में कपड़े की दुकान थी और छोटा भाई बलदेव नोएडा की एक कंपनी में नौकरी करता था और गाजियाबाद  से ही डेली अप डाउन किया करता था

रचना और निधि भी देवरानी जेठानी  नहीं बल्कि सगी बहनों की तरह ही रहती थी। नीधि की शादी से पहले ही उनके सास ससुर का देहांत हो चुका था। कोई कसर नहीं छोड़ी थी अपने छोटे भाई की शादी में मोहन और रचना ने,  गोलू और मिंकी भी अपनी चाची से बहुत प्यार करते थे। निधि भी उन दोनों पर मां की तरह स्नेह लुटाती थी ।

एक घर उन्होंने किराए पर चढ़ा दिया था दोनों भाई एक ही घर में एक साथ रहते थे।   कभी-कभी उनके घर पास ही के गांव से  उनके पिता की छोटी बहन उनकी बुआ रहने आ जाती थी। दोनों भाइयों का अपनी बुआ से विशेष लगाव था वह भी उनसे बहुत प्यार करती थी। निधि का बेटा गुड्डू भी अब 4 साल का हो चुका था।

वह अपने ताऊजी ताई जी को भी बड़ी मम्मी और बड़े पापा कहकर बुलाता था लेकिन न जाने किसकी नजर लग गई उनके हंसते खेलते परिवार को,  दोनों भाइयों को अलग हुए साल भर बीत चुका है एक दूसरे से मुंह का बोल भी नहीं रहा,  बलदेव  तो सदमे में ही आ गया था। बिल्कुल चुप चुप रहने लगा था।

निधि के समझाने का भी उस पर कोई असर नहीं हुआ। धीरे-धीरे कुछ अब सामान्य सा होने लगा था लेकिन अभी  शारदीय नवरात्रि शुरू ही हुए थे कि  बलदेव को डेंगू आ गया उसके प्लेट्स भी केवल 10000 ही रह गए थे दो दिन हो गए थे उसे अस्पताल में भर्ती हुए नीधि अपने पति के साथ अस्पताल में ही रही थी उसने अपनी छोटी बहन को अपने बेटे के पास रहने के लिए बुला लिया था वह घर पर उसी के पास रहता था।

  निधि सुबह के वक्त  अपनी बहन को अपने पति के पास छोड़कर नवरात्रों के व्रत होने के कारण  माता की पूजा करने के लिए अपने घर गई थी,  जैसे ही अस्पताल में आई तो  अचानक अपने पति के पास मोहन और रचना को बैठे हुए देखकर  उसकी आंखों में आंसू आ गए।

दोनों भाइयों की आंखों में आंसू थे और कितनी देर तक हाथ में हाथ लेकर बैठे रहे।  बलदेव की तो जैसे खोई हिम्मत ही वापस आ गई थी अपने बड़े भाई को अपने  पास देख कर। अपने दुपट्टे से अपने  आंसू पोंछकर उसने अपने जेठ जेठानी के चरण स्पर्श किए।  रिश्तो में लंबे अंतराल के बाद करने के लिए बात भी नहीं  मिलती। 

आपको उनके अस्पताल में भर्ती होने का कैसे पता चला दीदी? निधि ने रचना से पूछा,  तुम खबर नहीं दोगे तो क्या पता नहीं चलेगा क्या हाल हो गया है भैया का।  इतनी दुश्मनी तो नहीं हुई थी निधि जो तुम खबर भी नहीं कर सकती थी। अब मैं तुम्हारी एक नहीं सुनूंगी अब भैया को अपने घर ही लेकर जाऊंगी और जब तक पूरी तरह ठीक नहीं हो जाते तुम लोग वहीं पर रहोगे।

गुड्डू के स्कूल के बच्चे भी वहां से जाते हैं उन्हीं की वैन में गुड्डू भी चला जाया करेगा। 2 दिन तक मोहन ही अपने भाई के पास रात को रुकता और फिर  अस्पताल से छुट्टी मिलने पर बलदेव को पुराने घर में ही ले गए थे। निधि वाले कमरे में ही बलदेव को लिटा दिया था। कुछ भी तो नहीं बदला था उसका कमरा आज भी वैसा ही था जैसा वह छोड़कर गई थी। उसे बीती सारी बातें याद आ रही थी।

 धीरे-धीरे दोनों भाई फिर से पहले जैसे हो गए थे। बच्चे भी जो उनके जाने से मुरझा गए थे एक दूसरे को देखकर बहुत खुश थे। गांव से बुआ जी भी आ गई थी 2 दिन के लिए बलदेव को देखने,  एक दिन रसोई में अपने पति के लिए सूप बनाते हुए रचना के कमरे से बुआ जी की आवाज  जब सुनी तो निधि दंग रह गई।

 अरे बहु ज्यादा सिर पर मत चढ़ा निधि को। कैसी कैसी बातें नहीं कही थी तेरे बारे में उसने मुझसे। सारे काम का बोझ मेरे ऊपर ही डाल देती है रचना दीदी खुद  ठाट से बैठी रहती हैं। बस बैठी बैठी हुकुम बजाती हैं। मेरे तो पति भी मेरी नहीं सुनते। बस अपने भैया भाभी के ही गीत गाते रहते हैं मुझे नहीं रहना उनके साथ।

हां बुआ जी। याद है मुझे सब कुछ नहीं बोली हूं लेकिन इस वक्त मेरे लिए भैया की तबीयत से ज्यादा कुछ भी महत्वपूर्ण नहीं है। अरे सब अपने-अपने घर में ठीक से रहे, शिकवे शिकायत तो उम्र भर के हैं। वह कहते हैं ना लड़नी रात हो बिछड़नी ना हो। निधि मन में सोच रही थी मैंने तो ऐसा कभी नहीं कहा बुआ जी से। उसे याद आने लगा था बुआ जी ने क्या-क्या बातें नहीं कही थी उससे रचना के लिए 

 रचना तो तुम्हारे पति को अपनी मुट्ठी में करना चाहती है। तुम ही पूरा दिन घर के काम में काटती रहती हो और वह महारानी बन‌ बैठी रहती है। समय रहते अलग हो जाओ नहीं तो सब कुछ अपने कब्जे में कर लेगी तुम्हारी जेठानी? और उस पर बहुत असर हुआ था बुआ जी की हर बात का।

।उसने जिद करके अपने पति से दूसरे घर में जाने के लिए कह दिया था। कितना समझाया था उसके पति ने लेकिन  स्त्रीहठ के आगे वह भी कुछ ना कर सका दोनों भाई एक दूसरे से अलग हो गए थे। उसे दिन से आज तक खुलकर कभी नहीं हंसा है बलदेव। उसका मन था कि मैं अभी जाकर बुआ जी की सारी पोल पट्टी खोल दूं रचना भाभी के सामने लेकिन उसने चुप रहकर रचना से बात करना ज्यादा जरूरी समझा। अगले दिन बुआ जी वापस गांव लौट गई थी।

 रसोई में काम करते हुए ही निधि ने रचना से कहां दीदी कल बुआ जी जो बातें आपसे कर रही थी मैंने सुन लिया था।   उसने बुआ जी की वो सारी बातें भी रचना से बताई,  जो बुआ जी ने उसके बारे में निधि से कही थी। एक सास का दर्जा दिया था उन्होंने बुआ जी को उन्होंने तो हम दोनों को ही आपस में भिड़ा दिया और इसका असर दोनों भाइयों  के स्वास्थ्य पर पड़ा।

 हम दोनों भी कहां खुश रह पाए हैं एक दूसरे से अलग होकर, खैर बुआ जी को ही क्यों दोष दे? गलती तो हमारी भी है हमने एक दूसरे पर विश्वास नहीं किया हमें एक दूसरे से बात करके गलतफहमी मिटानी चाहिए थी लेकिन हम तो एक दूसरे के ही दुश्मन बन बैठे।

 आज एक दूसरे के प्रति रचना और निधि के मन साफ हो चुके थे। दोनों भाई भी बहुत खुश थे और बच्चों की खुशी के तो कहने ही क्या? अब फिर सब एक ही घर में शिफ्ट हो गए हैं। बुआ जी अब भी आती हैं लेकिन रचना और निधि उनकी आवाभगत में तो कोई कसर नहीं करती लेकिन  अपने पारिवारिक मसलों की उनसे कोई बात नहीं करती और ना ही एक दूसरे के खिलाफ कुछ सुनती हैं। धीरे-धीरे उनका आना कम हो गया था। शायद उन्हें भी एहसास हो गया था कि अब मेरी दाल नहीं गलने वाली। आखिर एक छोटी सी गलतफहमी की वजह से कितना  रिश्ता बिखर गया था उन दोनों का।

 सच भी है कितने अमूल्य रिश्ते केवल गलतफहमी के कारण टूट जाते हैं हम बजाय आपस में प्यार से बात करने के खुद ही अपने रिश्ते को इतना उलझा लेते हैं कि फिर सुलझाने की गुंजाइश भी नहीं रहती इसलिए समय रहते अपने रिश्तों को बचाने की एक कोशिश जरूर करनी चाहिए ताकि रिश्तो में विश्वास और प्यार बना रहे।

 पूजा शर्मा 

स्वरचित।

 betiyan.in 6th जन्मोत्सव प्रतियोगिता।

 कहानी -5

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!