फर्ज – शिव कुमारी शुक्ला : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi : विकास और मीता की शादी को अभी दो ही वर्ष हुए थे ।हंसी खुशी जीवन बीत रहा था। कभी कभी विकास का पुरुषोचित अहम मीता को विचलीत कर देता। उसे उसकी सोच पर खेद होता। किन्तु वह एक पढ़ी लिखी समझदार लड़की थी सुलझे विचारों वाली, सहज साधारण, आडम्बरों से दूर । दोनों ही इन्जीनीयरिंग के ग्रेज्यूट एमबीए- अलग अलग, मल्टीनेशनल कम्पनीज  में समान पद पर आसीन। उनका जीवन काफी व्यस्त था सो जो समय मिलता उसको वह इन  छोटे मोटे मामलों को तूल देकर व्यर्थ नहीं करना चाहती थे अत: अनदेखा कर देती ताकि जीवन में जो कुछ खुशियों के पल मिले हैं उन्हें भरपूर जी सके ।

एक दिन उसके घर से सुबह फोन आता है कि उसकी मम्मी बाथरूम में फिसल कर गिर गई। सिर में तो कम चोट आई किन्तु पैर में  फ्रैक्चर होगया। वे लोग अस्तपताल में हैं। यह सुन उसने तुरन्त वहाँ जाने का निर्णय लिया। उसने तुरन्त विकास को बताया कि मम्मी अस्तपताल में है हमें तुरन्त वहाँ पहुंचना चाहिए, पापा अकेले है।

विकास बोला में  क्या करुंगा चल कर, तुम चली जाओ यह सुन मीता अवाक सी उसका मुँह देखती रह गई। वह बिना कुछ बोले जाने की तैयारी करने लगी।

वह सास माधवी जी से बोली मम्मीजी अभी पापा का फोन आया था मम्मी फिसल कर गिर गई हैं पापा अस्तपताल लेकर गए हैं, मुझेभी वहाँ जाना है सो मैं वहाँ जा रही हूँ।

माधवी जी को चुप देख पास ही बैठे पेपर पढ़ रहे ससुर मनोज जी बोले- कितनी चोट आई है,अब कैसी हैं   समधन जी। पापाजी यह सब नही पता जाकर ही पता लगेगा।

मीता – तो में जा रही हूँ।

मनोज जी- तुम  अकेली जा रही हो, विकास काहां है ।

मीता- अपने कमरे में हैं मैं अकेली ही जा रही हूँ।

मनोज जी -वह साथ क्यों नहीं जा रहा। मीता – यह तो आप उन्हीं से पूछिये वे ही बेहतर  बता सकेंगे। तो मैं चलूँ कहते हुए मीता दरवाजे की और बढ़ी। हाँलाकि माधवी जी को उसका यूँ एकदम जाना पसंद नहीं आ रहा था किंतु ये प्रत्यक्षतः कुछ नहीं बोली 

मनोज जी – रूक मीता, और बेटे विकास को आवाज दी। 

विकास जी पापा है

मनोजजी – तुम मीता के साथ क्यों नहीं जा रहे हो। 

विकास – मैं जाकर क्या करूंगा पापा।

मनोज जी -कया करुंगा से क्या मतलब है तुम्हारा ।अस्तपताल में जरूरत रहती है, भागदौड़ दवाई लानी और भी काम होते हैं मदद करोगे।

विकास -तो  मीता जा तो रही है सम्हाल लेगी ।

मनोज जी–तो तुम्हारा कुछ फर्ज नहीं बनता, जाओ मीता के साथ वे लोग तुम्हारे भी कुछ लगते हैं। मीता को भी तुम्हारे साथ से सम्बल मिलेगा।

 विकास अनमने भाव से मीता के साथ चला गया।

वहाँ जाकर भी वह सबके साथ सहज नहीं हो पा रहा था। मम्मी को सिर में भी चोट आई थी पैर में फ्रैक्चर था। सारा इलाज, चैक अप प्लास्टर लगते लगते दो बज गए। मीता- विकास तुम्हे भूख लगी होगी अब तुम घर जाओ । मीता अपेक्षा कर रही थी कि वह उससे, पापा, भैया से भी पूछेगा कि तुम लोग भी तो भूखे हो चलो तुम्हें भी खाना खिला दूं ।किन्तु वह तो ऐसे खुश हो कर चला गया मानो पिजंडे से पक्षीआजाद हो गया।

उसके जाने के बाद मीता ने भाई और पापा को भी बहर खाने को भेज दिया स्वयं  मां के पास बैठ गई ।मम्मी दवा के असर से सो रही थी। वह विकास के व्यवहार  के बारे में सोचकर दुःखी हो गई जब मैंने तो उसके मम्मी-पापा को अपना लिया वह ऐसा  क्यों नही कर सकता ।इन लोगों के साथ इतन पराया सा क्यों रहता है।

अगले दिन वह अपना कुछ जरूरी सामान लेने घर गई।

मधवीजी- आगई मीता अब कैसी तबीयत है मां की।

मीता – अभी तबीयत ठीक नहीं है तीन-चार दिन तो अस्तपताल में लग सकते हैं फिर  इक्कीस दिन का प्लास्टर चढ़ा है सो पूर्ण बेडरेस्ट पर रहना होगा। मम्मी जी में अपना जरुरी सामान लेने आई हूं जबतक मम्मी ठीक नहीं हो जाती मेरे को वहीं रहना पड़ेगा ।मीता की बात सुन माधवी जी का चेहरा उतर गया। वे बोली इतने दिन वहीं रहोगी।

मीता -हां मम्मी जी कौन सम्हलेगा ,रहना ही पडेगा।

 तभी  मनोज जी बोले- हाँ. बेटा तू उन्हें अच्छे से सम्हाल। अभी उन लोगो को तुम्हारी ज्यादा जरूरत  है यहाँ की चिन्ता  मत करना सब हो जाएगा। कमरे में अपना सामान लेने गई तो विकास बोला तुम इतने दिन वहाँ रहोगी तो मुझे और मां को कितनी  परेशानी होगी।

मीता- मेरे यहाँ आने से पहले भी तो तुम्हारे सब काम होते थे, वहाँ मेरी जरुरत है सो वही रहूँगी। आज  मीता की आवाज में थोडा तल्खी थी।

तभी मनोज जी ने माघवी जी की वेरुखी देखते हुए उनसे मीता के लिए चाय-नाश्ता लाने को कहा। मीता के  घर से निकलने  के बाद माधवी जी बोली ऐसा कैसे चलेगा बहू महीने भर तक मायके में बैठी रहेगी और यहाँ में खटती रहूँगी। विकास भी  मां की बात  में सुर मिलाते बोला मेरे को भी कितनी परेशानी होती है ।

मनोज जी- चुप करो दोनों एक तो मीता बेटी परेशान है तुम दोनों मदद करने के बजाए बे सिर पैर की बातें कर रहे हो उसकी मां है वह नहीं सम्हालेगी तो कौन सम्हालेगा ।मत भूलो कि वह तुम्हारी बहू विकास ती पत्नी बनने से पहले एक बेटी भी है उनके प्रति भी उसका कोई फर्ज बनता है। 

खैर समय निकलते देर नहीं लगी एक माह हो गया था वह वही से ऑफिस तो जाने लगी थी। मम्मी स्वस्थ हो गई तो वह अपने घर लौट आई अभी दो माह ही बीते थे कि एक दिन सुबह भाई का फोन आया। वह रोते हुए बोला दीदी जल्दी आजाओ पापा को दिल का दौरा पड़ा है। उसने घबडा कर विकास को उठाया और बोला विकास पापा को दिल का दौरा पड़ा है, तो मैं क्या करूं। यार सोने भी नहीं देती हो। कमरे के बाहर भागी देखा सास सो रही थी। मनोज जी बाहर पेपर पढ़ रहे थे ,पापाजी सॉरी मैं आपकी चाय नही बना पाऊँगी। पापा को दिल का दौरा पड़ा है मैं जा रही हूं। आप मम्मी जी को बता देना। विकास कहाँ है तुमने विकास को नहीं बताया ।

बता दिया कहकर वह निकल गई रास्ते से ही उसने अस्तपताल फोन किया डॉ. से समय लिया एम्बुलेन्स को घर का पता दे पहुँचने को फोन किया तब तक वह भी पहुँच गई। आपतकाल वार्ड में भर्ती करा इलाज शुरू हो गया । एनजीओग्राफी में दो ब्लाकेज  निकले जिनमें  डॉक्टर ने स्टंट डालने की सलाह दी।

माधवी जी उठीं तो मीता को चाय के लिए आवाज लगाई तब मनोज जी बोले मीता नहीं है उसके पापा को दिल का दौरा पड़ा था सो वह गई अब चाय तुम बना  लो। तभी विकास भी उठ कर आया मां चाय दो ये मीता का रोज रोज का नाटक है ।

मनोज जी- बाह बेटा एक तो वहाँ उसके पापा की जान पर पडी है और तुम्हें नाटक लग रहा है। शर्म नहीं आती एक तो उसे अकेले भेज दिया किसकी मदद लेती फिरेगी। 

माधवीजी – हां तो मेरा बेटा क्या गलत कह रहा है।मायका लोकल है तो इसका मतलब यह नहीं कि रोज-रोज बहू वहीं पड़ी रहे। अपने घर के प्रति भी तो उसकी जिमोदारी बनती है।

मनोज जी- भगवान से डरो माधवी ,समय बड़ा बलवान है ये किसी को भी अपनी चपेट में ले सकता है। उन्होंने चाहा होगा कि उन्हें दौरा पडे। जल्दी चाय पिलाओ फिर में  भी उन्हें मिलने जा रहा हूँ। मीता बेटी की कुछ  मदद कर दूँगा, इस नालायक से तो कोई उम्मीद नहीं है।

दो दिन बाद  मीता घर आई जरूरी सामान लेना था तभी  विकास बोला पापा की तबियत अब ठीक है, अब तुम नहीं जाओगी, उनका बेटा है न वह सम्हाल लेगा ।

आज उसके सब्र का बाँध टूट गया वह बोली विकास सोच कर बात करो। पापा अभी ICU में है मम्मी को इस उम्र में इतना तनाव नहीं दे सकती, चिन्टू छोटा है और उसकी परीक्षा चल रही है। मैं बेटी हूँ, मुझे अपनी ससुराल की जिम्मेदारी निभानी है सिर्फ इसलिए अपने फर्ज से मुंह नहीं मोड सकती मेरे मम्मी पापा ने बेटे बेटी में भेद नहीं किया , मुझे लाडप्यार से पाला, पढ़ाया लिखाया इतना योग्य बनाया कि मैं अपने पाँव पर खड़ी हूं तो अब मैं बेटी होने का बहाना देकर कैसे  मुँह मोड़ सकती है। विकास मत भूलो  दुःख परेशानी कहकर नहीं आते, वे कभी भी किसी पर आ सकते है और दूसरी बात मैं सिर्फ आपकी पत्नी नहीं किसी की बेटी भी हूं सो पत्नी और बेटी के दोनों फर्ज मुझे याद है जब जैसी जरुरत होगी वही  करुंगी कह कर मीता निकल गई।

माधवी जी बड बडा रही थी. लोकल मायका  है तो बहू का एक पैर मायके मे ही रहता है। अजीब परिवार है रोज कुछ न कुछ होता रहता है।

मनोज जी- भागवान मत सोचो ऐसा, किसी के साथ भी ऐसा हो सकता है। याद करो जब मेरी  मां ने तुम्हें मायके नहीं जाने दिया था जब तुम्हारे पिता बीमार थे  तुम मिल भी नहीं पाईं थी उसका अफसोस तुम्हें आजतक भी है, किन्तु सास बनते ही तुम्हारा रवैया बदल गया। बहु के प्रति इतनी निष्ठुर क्यों हो। सब कुछ ठीक होगा। पापा के ठीक होते ही  मीता अपने घर लौट आई। जीवन रुपी गाड़ी पटरी पर आ गई। एक बर्ष बीत गया सब ठीक से चल रहा था कि तभी एक दिन मीता ऑफिस जाने के लिए तैयार हो रही थी ।विकास ऑफिस निकल चुका था कि माधवी जी की जोर से चीखने के साथ ही गिरने की आवाज आई। मीता भागी इधर से मनोज जी दौड़ते आए देखा माधवी जी बाथरूम में  गिरी पड़ी है सिर में भी नल लग जाने को कारण खून बह रहा था। मीता ने तुरन्त सिरपर दबाया और ससुर की सहायता से, बाथरुम से निकाला।पैर में  फ्रैक्चर होने से चल नहीं पा रही थीं। मीता ने एम्बूलैंस को फोन कर तुरन्त अस्तपताल ले गई और इलाज चालू हो गया। तब तक मनोज जी ने विकास को फोन लगाया तो यह बदहवास दौड़ता आया मां  को क्या हो गया। उसने देखा मां के माथे पर पट्टी बाँध चुकी है पैरों का एक्सरे हो रहा था मीता शान्ति से सब करवा रही थी। पापा भी वहीं बैठे थे ।

विकास मीता से बोला- मां कैसी है  तुमने मुझे फोन क्यों नहीं किया।

मीता – पहली बात मां अब ठीक है। रही बात तुम्हे फोन करने की तो तुम क्या करते सम्हालना  तो मुझे ही था । यह शब्द थे न तुम्हारे मैं क्या करुंगा तुम सम्हालो जा कर। सो आज भी मैने सम्हाल लिया क्या करते तुम आकर।

विकास ये कैसी बातें कर रही हो माँ है मेरी ! तो क्या वो तुम्हारी मां नहीं थीं उस दिन तो तुम्हें कोई घबराहट नहीं हुई थी। विकास तुम भले ही मेरे परिवार को अपना नहीं सके उन्हें अपना नहीं मानते। तुम सिर्फ मुझसे अपना रिश्ता मानते हो पर मैं ऐसा नहीं सोचती। मैंने तुम्हारे साथ-साथ तुम्हारे परिवार को भी अपना लिया है सो इनकी भी सेवा करने से मुझे कोई परेशानी नहीं होती। ये  मुझे उतने ही प्रिय है जितने मेरे मम्मी पापा। तुम भले ही मेरे दुःख में मेरे साथ खडे नहीं रहे किन्तु मेरे लिए इनका दुःख मेरा है सो मैं अकेली ही मां  को ले आई ,तुम्हारी जरुरत नहीं समझी।  यदि मैंने अपने बेटी होने का फर्ज निभाया  है तो अब बहू होने का फर्ज भी बखूबी निभा रही हूँ। और आगे भी दोनों फर्ज  जैसी जरुरत होगी निभाती रहूँगीं।

 दो दिन बाद माधवी जी घर आ गईं । मीता ने पूरी लगन से उनकी सेवा की, जिसे देख माधवी जी को और विकास कोअपनी सोच पर पछतावा हो रहा था कि उन्होंने मीता को कितना गलत समझा ।विकास अपनी सोच पर शर्मसार होते हुए मीता से माफी मांग रहा था कि आगे से कभी ऐसा नहीं होगा, में तुम्हारे माता पिता को भी अपना समझूंगा और हमेशा  हर परिस्थिती मे तुम्हारे साथ खड़ा रहूँगा।इस बार माफ कर दो।

माधवी जी की नजरें भी झुकी हुई थी बोली मीता बेटी मैं भी तुम्हारे प्रति गलत सोच रखती थी मुझे भी माफ कर दो ।

मीता नहीं मम्मी जी आप बड़ी हैं मुझसे माफी मांग  कर मुझे शर्मिंदा न करें। आप तो आशीर्वाद दें कि दोनों परिवारों  को वक्त पड़ने पर सम्हाल सकूँ, और पत्नी, बहू और बेटी होने के तीनों फर्ज निभा सकूं।

 मनोज जी आज  इस मिलन पर खुश थे और बैठे-बैठे मुस्करा रहे थे।

शिव कुमारी शुक्ला

स्व रचित, मौलिक, अप्रकाशित

1 thought on “फर्ज – शिव कुमारी शुक्ला : Moral Stories in Hindi”

  1. क्या सही वैचारिक कहानी है जो जिम्मेदारी निभाने का एहसास करवाती है

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