फर्क – : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi : क्या फ़र्क है तुममें और तुम्हारी बहन में, वो भी तुम्हारी ही तरह ज़िद्दी और बदजुबान थी, और तुम तो ख़ैर से उससे दो हाथ आगे ही हो मम्मी ने जरा सा सवेरे जल्दी उठने को कह क्या दिया, पूरा घर सर पर उठा लिया तुमने” संजय मीनाक्षी को तेज सुनाते हुए बोला।

संजय, तुम्हें कभी पूरी बात पता होती है या बस जो मम्मी ने कह दिया उस पर ही आँख मूंद कर विश्वास करना तुम्हारा काम है…” मीनाक्षी भी गुस्से में थी।

हो तो आखिर बहू ही सास बर्दाश्त थोड़ी ना होगी.. चाहे जितनी मर्ज़ी तुम्हारा ध्यान रख लें…” संजय व्यंगात्मक स्वर में बोला।

कभी सास जैसा व्यव्हार किया है उन्होंने की उनके बेटे की जीवनसंगिनी हूं, मुझसे भी वैसा ही व्यव्हार रखें जैसे अपने बेटे से रखतीं हैं या ऐसा कहना चाहिए कि हां सच में सास जैसा ही व्यव्हार करती हैं मुझसे, सारी गलती मेरी, सबसे बुरी मैं.. मैं आज कुछ देर से उठी तो मैं ही गैरजिम्मेदार, मैं ही आलसी…” मीनाक्षी मशीनी तेज़ी से घर के कामों को निपटाती हुई बोली।

इन बातों में कुछ नहीं रखा, बहू हो, पत्नि हो, वही बनकर रहो, ज्यादा हमारे सर पर सवार होने की ज़रूरत नहीं है..” संजय अधिकार भरे स्वर में बोला।

सोच समझ कर बोलो संजय,बहू भी हूं, पत्नि भी हूं, पर सबसे पहले मेरा अपना भी वजूद है, मैं भी आईने में अपना चेहरा देखते हुए खुद से आँखें मिलाना चाहती हूं” मीनाक्षी आत्मविश्वास भरे स्वर में बोली।

अच्छा, तब कहा था तुम्हारा वजूद जब बिना जब तुम्हारे बाप ने एक ही बार में तुम्हारा रिश्ता मांगने पर चट से हां कर दी सिर्फ़ इसलिए कि इस शादी में उन्हें कुछ देना नहीं होगा.. पूरा खानदान ही झूठा और नाटकबाज है…” संजय मज़ाक सा उड़ाता हुआ बोला।

खबरदार जो मेरे घर के लिए,मेरे पापा के लिए बदतमीजी से बात की.. जीजी नहीं रही, उनके दुधमुंहे बेटे को यूं उसके ही घर में अनाथ सा नहीं देख पा रही थी इसलिए इस शादी के लिए मैंने अपनी मर्ज़ी से हां की थी…” मीनाक्षी की चेहरा गुस्से से तमतमा उठा था।

तो उसका ही ध्यान रख लो.. उसके प्रति ही कितनी लापरवाह हो.. पड़ा है ना बुखार में…” संजय बेशर्मी से बोला।

उसी का ध्यान रखती हूं, उसी के लिए हूं यहां पर तुम्हारी बहन अपने पति के साथ रात खाने पर आने वाली है, कल उन्हीं की खातिरदारी के लिए बाजार से सामान लाने गई थी, पीछे से घंटा भर भी अजय का ध्यान नहीं रख सकीं मेरी सासू मां.. बच्चा पानी में खेलता रहा.. मेरे आने तक भीगे कपड़ों में पड़ा रहा

उन्हें ये सब नहीं दिखा क्या वो अजय की दादी नहीं हैं उनका कोई फर्ज़ नहीं अजय के लिए और जब मैं आई तो मुझ पर ही टूट पड़ी, तुम भी देर से आने वाले थे, अजय बुखार में तपने लगा था.. डॉक्टर के पास लेकर गई, मुझे बिल्कुल छोड़ नहीं रहा था वो तब भी सासू मां ने मुझे उसके पास से उठवा कर रात का खाना बनवाया.. क्या सिर्फ़ एक रात वो नहीं कर सकतीं थीं अजय का बुखार कम होने का नाम नहीं ले रहा था,

पूरी रात उसे गोद में लिए रही में, मोबाईल तुम्हरा ऑफ, देर से क्या आते तुम अब सवेरे घर में कदम पड़े हैं तुम्हारे.. सवेरे छः बजे के करीब जब अजय की हालत कुछ संभली तो उसके पास ही आंख लग गई मेरी तो क्या गुनाह हो गया मुझसे कि पूरी रात बाहर गुजारने के बाद सुबह के सात बजे तुम घर आए हो में तुम्हारे लिए गरमागरम चाय बनाने के लिए उठ नहीं सकी

अगर सासू मां एक कप चाय बना देती तो क्या हो जाता.. पर नहीं उन्हें तो चाय के साथ नमक मिर्च लगी बातें भी परोसनी थी तुम्हें कि तुम्हारे नाश्ते में कहीं कोई कोर कसर ना छूट जाए..” मीनाक्षी भीतर से जैसे टूट कर बोल रही थी।

और उंगली उठा रहे हो मेरे खानदान पर, खानदान सिर्फ़ अमीरी गरीबी से नहीं तौला जाता, खानदान प्रशंसा का पात्र बनता है अपने संस्कारों से, अपनी तहज़ीब से,इंसानियत, दयालुता और सबसे बढ़कर आपसी प्रेम से और इन सारी बातों का मेरे ख्याल से तुम्हारे खानदान से कोई सरोकार नहीं है” मीनाक्षी खुल कर बोलने को मजबूर हो चुकी थी।

तभी अंदर कमरे से अजय की आवाज़ आई।

मम्मी, मम्मी कहां हो..!” 

मीनाक्षी भाग कर कमरे में पहुंची और कुछ देर बाद कंबल में लिपटे अजय को लेकर बाहर आई और संजय और अपनी सास को देखती हुई बोली, “ मैं अजय को लेकर अपने घर जा रही हूं, तब तक इसे वापिस नहीं लाऊंगी जब तक ये ठीक नहीं हो जाता उसके बाद भी यदि आप लोगों से इसके प्रति अपना फर्ज़ निभाने में कोई तकलीफ़ हो रही हो तो बता दीजिएगा, मेरे खानदान में मेरे बच्चे का मेरे साथ दिल खोल कर स्वागत होगा क्योंकि कुछ तो फर्क है दोनों खानदानो में और संजय अगर तलाक की अर्जी देकर अजय पर अपने पिता का अधिकार जताने कि कोशिश कि तो समझ लेना कि लड़ाई लंबी चलेगी औरइस बारे में अपनी मां से विचार विमर्श कर लेना क्यूंकि फिर तो वहीं पालेंगी ना बच्चे को, क्यूं मम्मी जी..” मीनाक्षी सास को देखती हुई बोली।

सासू मां का मुंह जरा सा होकर रह गया था।

संजय मीनाक्षी के तेवर समझ चुका था और कहीं ना कहीं अपनी मां का स्वाभाव भी जानता था। पता था उसे कि भविष्य में होने वाली मुसीबतों से मीनाक्षी उसे आगाह कर रही थी।

मीनू,रुको, मत जाओ, आई एम सॉरी, मुझे ऐसा नहीं करना चाहिए था, लाओ, अजय को दो मुझे” उसने अजय को गोद में लेने की कोशिश की।

पलक झपकते ही कैसे तुम्हारा मिजाज़ बदल गया..?”

गलती हुई मुझसे मीनू, अल्पना को तो खो चुका हूं अब अजय और तुम्हें नहीं खोना चाहता.. एक मौका तो दो.. “ संजय गंभीर था।

, जोरू के गुलाम, हमारे खानदान में ऐसे पत्नियों के आगे झुकने का रिवाज़ नहीं है, दिमाग चल गया है क्या तेरा..?” संजय की मां चिल्लाने के से स्वर में बोली।

तो ठीक है मम्मी, अब से इस खानदान में ऐसा ही होगा और ये झुकना नहीं बल्कि बराबरी का दर्ज़ा देने की बात है, अजय भी अब सही शिक्षा के साथ इस खानदान का नाम रोशन करेगा” 

संजय ने अजय को अपनी गोद में लिया और मीनाक्षी के साथ कमरे की ओर बढ चला और सासू मां केवल भृकुटी तानती और दांत पीसते रह गई।

 

 

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