फर्क – डॉ संगीता अग्रवाल : hindi stories with moral

hindi stories with moral : कैसी बात कर रही हैं आप भाभी?हमारा घर होते आप बाहर रहेंगी?आपने ये सोचा भी कैसे,खून के रिश्ते अभी इतने कमजोर नहीं पड़े हैं भाभी…रिचा ने कहा तो उसकी भाभी आरती के आंसू बह निकले।

मुझे माफ कर दें रिचा दीदी,आप महान हैं,एक मैंने आपसे व्यवहार किया था,कोई और होता तो मुझे धक्के मार कर निकाल देता और एक आप हो जो मुसीबत के वक्त मेरी ढाल बन गई हो।

पुरानी बातें भूल जाओ…मै भी भूल चुकी हूं भाभी,देखो!आपका मोनू बेटा,कितना बड़ा ऑफिसर बन गया है,सब बड़ों के आशीर्वाद से ही तो हो सका।

तुम कुछ भी कहो पर आज तुम्हारी कही बात मुझे बार बार याद आ रही है जब तुम्हारे बुरे वक्त में मैंने तुमसे दुर्व्यवहार किया था तुमने रोते हुए कहा था,

“इतना गुरूर अच्छा नहीं भाभी,न जाने कब किसकी जिंदगी में कौन सा मोड़ आ जाए…आज मुझे आपकी जरूरत है,कल आपको कहीं मेरी न पड़ जाए।”

ओह!आपको याद है, पता नहीं दुखों से घिरी मै क्या क्या बोल गई थी,सॉरी!रिचा बोली।

आप क्यों सॉरी कहती हैं,गलती मेरी है,शर्मिंदा मैं हूं,भगवान ने मुझे खूब सबक सिखाया…

कहते कहते,आरती,अतीत की गलियों में विचरण करने लगी।

रिचा,उसके पति सागर की बड़ी बहन थी जिसकी नई नई शादी हुई थी,वो बहुत खुश थी अपने पति दीपक के साथ और जल्दी ही अपने छोटे भाई सागर की शादी में शामिल हुई जो कई सालों से रिचा की शादी होते ही अपनी करने की जुगाड में था।

दोनो कपल्स साथ ही घूमने भी गए और खूब एंजॉय किया।पर रिचा की खुशियों को बहुत जल्दी ग्रहण लग गया जब एक दिन शाम को उसका दीपक ऑफिस से लौटते हुए दुर्घटना का शिकार बन उसके जीवन को अंधकारमय कर गया।

कोढ़ पर खाज ये हुआ कि उसकी ससुराल वालों ने भी रिचा से पल्ला झाड़ लिया,जब बेटा न रहा तो बहू कैसी,हमारे बेटे को आते ही खा गई जैसी बातें बोलकर उसे घर से बेदखल कर दिया।

मरती क्या न करती,अपने पीहर की चौखट पर आ कर पनाह मांगी रिचा ने।पढ़ी लिखी थी,अकेली रह सकती थी पर भावनात्मक रूप से टूटी हुई,उसे पता चला वो दीपक के अंश को कोख में ला चुकी है,उसे सहारे की जरूरत थी।

शुरू शुरू में भाई भाभी ठीक थे पर भाभी की तंगदिली जल्दी ही सामने आने लगी और भैया की बेबसी का कारण बनने लगी।बूढ़े मां बाप,उसकी भाई भाभी के सामने बेबस हो जाते और मुंह सी लेते।

रिचा अपने ही घर में पराई हो गई,उसकी हैसियत एक नौकरानी से अधिक नहीं रह गई थी,बात बात पर,उसकी भाभी उसे जलील करती।

उसकी डिलीवरी सिजेरियन थी,उसे अब भी घर और सहारा चाहिए था, उन लोगों की ज्यादितयां सहती रही।जब कभी ज्यादा हुआ तो रो देती और ऐसे ही किसी कमजोर क्षणों में कह गई होगी

जाने कब जिंदगी में कौन सा मोड़ आ जाए,कोई कुछ कह नहीं सकता।

पर उसकी पत्थर दिल भाभी आरती का दिल नहीं पसीजा,वो तो भगवान को रिचा पर दया आ गई और उसे स्वाभिमान से जीने का रास्ता दिखाया,एक बढ़िया जॉब के ऑफर ने।

एक कमरे के मकान में वो अपने नवजात शिशु के साथ अलग हो गई और संघर्ष करते करते,आज उस मुकाम पर थी जब वो अपनी अहंकारी भाभी को पनाह देने लायक थी।

हुआ ऐसा कि वो अपनी सहेली को देखने सिटी हॉस्पिटल गई ,वहां अपनी भाभी आरती को इतने समय बाद देखकर चौंक गई।

आप यहां कैसे?और ये क्या हाल बना रखा है…सूख के कांटा हुआ बदन,बदहाल और मुरझाई हुई।

तुम्हारे सागर भैया जीवन और मौत के बीच झूल रहे हैं,उन्हें कैंसर हुआ,घर की पाई पाई उनके इलाज में बिक गई,बच्चे कोई साथ नहीं,अम्मा पिताजी के जाने के बाद,एक दिन चैन की सांस नहीं लीं रिचा दी,भाभी सिसक पड़ी,मैंने बहुत बुरा किया सबके साथ,उनकी हाय मुझे ले डूबी।

रिचा ,आरती को अपने साथ घर ले आई।

कैसी बात करती हो भाभी,आपकी ननद है जिंदा,उसके होते आप और भैया बेघर नहीं हो..और मैं कुछ नहीं कर रही,अब आपका बेटा मोनू कमा रहा है।

मोनू ने मामी के पैर छू लिए।

आरती वर्तमान में आ गई,उसने मोनू को गले लगा लिया,वो फर्क देख रही थी खुद में और रिचा में,दोनो ने मुसीबत में पड़े व्यक्ति के साथ कैसा व्यवहार किया था।

जीवन में सब कुछ अनिश्चित होता है,अपने अच्छे वक्त में,अपने खून के रिश्तों की तो कद्र कर लीजिए,शायद कल आपको किसी से मदद न लेनी पड़ जाए।

संगीता अग्रवाल

वैशाली,गाजियाबाद

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