फ़ैसला – निशा जैन : Moral stories in hindi

“पिताजी मैं कितनी बार कह चुकी हूं मुझे अभी शादी नहीं करनी, मैने फैसला कर लिया है कि मैं  आगे पढ़ना चाहती हूं ,अपने पैरों पर खड़ी होने की योग्यता हासिल करना  चाहती हूं। क्या पता भविष्य में कब जरूरत पड़ जाए इस योग्यता की, कम से कम डिग्री तो रहेगी मेरे पास जो मेरे आत्मनिर्भर बनने में मुझे एक कदम बढ़ाने के लिए प्रेरित करेगी।

 आप बबिता की शादी कर दीजिए पर मुझसे बार बार शादी करने की बात भी मत करना अब”

कविता बोले ही जा रही थी शायद कई दिनों से अपने मन की बात कहने का मौका जो  नही मिला था

     “अरे छोरी जे का बोल रही है तू, बबिता की शादी कर देवें और तू बड़ी होके भी कुंवारी बैठी रहगी, जग हंसाई करावेगी का, “कविता और बबिता की दादी बोली

     ” हां तो क्या हुआ दादी दो मिनट ही तो बड़ी हूं उससे, मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता , वो राजी है तो कर दो उसका ब्याह, मुझे तो नही करना जब तक मैं एस टी सी नही कर लूं” कविता ने अपना फैसला सुना दिया

       रहने दो मां जी ,ये नही मानेगी, पूरी जिद्दी है आपकी तरह कविता की मां सावित्री बोली

       “अरे बहू माना हम जिद्दी हैं पर ऐसी कोई बेतुकी ज़िद कभी न करी हमने, पर जे छोरी तो फालतू की जिद लिए बैठी है।”

कोई बात नही मां ,पहले बबिता की शादी कर देते हैं, इसका पढ़ाई में वैसे भी मन नहीं है।कविता की एस टी सी हो जायेगी तब रिश्ते भी अच्छे मिल जायेंगे   रामबाबू जी बोले( कविता के पिताजी)

       (कविता  और बबिता दोनो जुड़वां बहनें थी। कविता रंग रूप में थोड़ी सांवली पर गुणों की खान थी। पढ़ने,लिखने सिलाई कढ़ाई, बुनाई सब मे होशियार । एक बार जो चीज देख ले उसको कभी भूलती नही   पर रसोई में थोड़ा हाथ कच्चा था उसका।

       जबकि बबिता दिखने में गोरी भूरी सुंदर पर आठवीं के बाद  पढ़ने में मन नहीं लगा उसका बाकी घर के सारे काम बखूबी करती  थी।

       उन दोनो की शादी की उम्र हो गई। दोनो 18 साल की हो चुकी थी तो घर वालों ने  रिश्ता देखना शुरू कर दिया।)

        कविता ने शादी से  मना कर दिया इसलिए वो अपनी आगे की पढ़ाई में जुट गई। उसने बी ए (स्नातक) का फॉर्म भर दिया साथ ही एसटीसी की तैयारी में जुट गई । 

वहीं बबीता की किस्मत से उसका  एक सरकारी कंपाउंडर से रिश्ता तय हो गया और कुछ दिनों बाद शादी ।

 कविता की मेहनत  रंग लाई अगले साल ही उसका एस टी सी में नंबर आ गया और उसे अपने फैसले पर गर्व हो रहा था । वो अपने पैरों पर खड़े होना चाहती थी इसलिए अभी तक शादी के लिए राज़ी नही थी सोच रही थी एक बार नौकरी लग जायेगी उसके बाद ही शादी करेगी पर घर वाले इस बात से बिल्कुल सहमत नही थे क्योंकि वैसे ही उसकी शादी की उम्र हो चुकी थी और अब नौकरी के चक्कर में पता नही कितने साल और रुकना पड़ता  इसलिए घर वालों ने अब रिश्ते देखने शुरू कर दिए थे  ।कविता ने आत्मनिर्भर बनने के लिए एक कदम बढ़ाना चाहा और सरकारी नौकरी का आवेदन भरना चाहा पर घर वालों का साथ नही मिला और उस दौर में लड़कियां ज्यादा बोल भी नहीं सकती थी ,ना ही अपने मन की इच्छा से कुछ कर सकती थी जैसे आजकल लड़कियां कर पाती है तो बस कविता ने भी घर वालों की जिद के सामने अपने घुटने टेक दिए और आत्मनिर्भर बनने के लिए निकाला गया कदम पीछे खींच लिया। आखिर में उसने अपने फैसले से समझौता कर ही लिया।

बहुत कोशिश की कि सरकारी नौकरी वाला कोई मिल जाए तो जिंदगी सुधर जायेगी पर शायद उसकी किस्मत में एक व्यापारी ही लिखा था ।

 

अच्छा खासा बिजनेस था लड़के का, सरसों के तेल की मिल थी । कविता के ससुर जी भी जाने माने व्यापारी थे अपने शहर के । सब कुछ देख परख कर गण वर्ग मिलाकर कविता की शादी कर दी।

          ससुराल आकर कविता बहुत खुश थी । अच्छा खासा खाता पीता घर था, सब तरह की सुख सुविधाएं थी। किसी चीज की कोई कमी नही थी पर कविता अपना समय बिताने के लिए घर की या परिवार की महिलाओं के ब्लाउज भी सिल देती क्योंकि उसे कुछ न कुछ करना , नई नई चीजें सीखना बहुत पसंद था।जब भी समय मिलता  वो  हाथ के बने स्वेटर भी सब लोगों को उपहार में देती रहती। जिंदगी बड़ी खुशनुमा चल रही थी           

            सब कुछ बहुत अच्छा चल रहा था कि एक दिन कविता के पति का अचानक एक्सीडेंट हो गया और उनके शरीर के एक हिस्से ने काम करना बंद कर दिया ।धीरे धीरे मिल का काम भी बंद हो गया और आर्थिक स्थिति बद से बदतर होती गई। कविता के भी दो बच्चे हो गए थे और खर्चे बढ़ गए थे। शुरू शुरू में तो कभी ससुराल से मदद मिलती तो कभी मायके से पर धीरे धीरे मदद भी कम होती गई । सबके अपने परिवार ,अपने खर्चे जो थे।

बबिता से भी उसकी हालत छुपी नहीं थी वो अभी तक भी जितना कर सकती करती। उसके महीने का राशन , बच्चों के कपड़े, जूते सब वो ही व्यवस्था कर देती । उसके पति बहुत समझदार थे और सरकारी नौकरी में थे तो बंधी बंधाई तनख्वाह तो आती ही थी महीने की। उन्होंने अपने स्तर पर उसकी हरसंभव मदद की । कविता बहुत एहसान मानती थी बबिता का ।इस हालत में भी उसने उसका साथ कभी नही छोड़ा

             कविता की सारी जमा पूंजी अब खत्म होने को थी क्युकी पति के इलाज में बहुत खर्चा हो गया था बाकी बच्चों का स्कूल, घर का खर्चा……

               कविता अंदर से बहुत टूट चुकी थी । इतनी पढ़ाई की, योग्यता हासिल की पर क्या फायदा। शादी से पहले आत्मनिर्भर बन जाती और अपने फैसले से समझौता नहीं करती  तो शायद ये दिन देखने नही मिलता। यही सोचकर दिन रात रोती।

               असल में उसने एस टी सी की डिग्री दूसरे राज्य से ली थी और उसका ससुराल दूसरे राज्य में आता  और  उस समय सरकारी नौकरी के लिए उसी राज्य का होना जरूरी था तो वो कर नही सकती और प्राइवेट वो करना नही चाहती क्यूंकि दो बच्चे, घर सब अव्यवस्थित हो जाता और पति की हालत भी इतनी अच्छी नहीं हुई थी की वो बच्चों को अकेले संभाल सके। उसने घर पर ही सिलाई का काम शुरू कर दिया पर कुछ दिनों बाद उसको बहुत बैक पेन होने लगा और उसकी आंखे भी कमजोर हो गई जिससे सिर में दर्द रहने लगा और धीरे धीरे ये काम भी बंद हो गया।

               अब वो बच्चों को लेकर चिंतित रहने लगी और सोचती भगवान मेरी किस्मत तो अच्छी नहीं निकली, पढ़ी लिखी होते हुए भी मुझे अनपढ़ों जैसी जिंदगी गुजारनी पड़ रही है पर मैं चाहती हूं जो दर्द मैने सहा वो मेरे  बच्चे न सहे और अपने पैरों पर खड़े हो सके पर कैसे होगा ये सब, कहां से आयेंगे इतने रुपए…….? सोचकर दिन रात चिंतित रहने लगी

कविता की उम्र भी बढ़ती जा रही थी और उसके सरकारी नौकरी लगने के अवसर कम हो रहे थे क्युकी एक दो साल में वो ओवर एज होने वाली थी।

                तभी एक दिन रामबाबू जी का फोन आया……

कविता यहां औरतों के लिए टीचर की वेकेंसी निकली हैं बेटा, तेरा फॉर्म भर दूं।?

            

पिताजी ये बात आप कह रहे हैं पर आप तो मेरे फैसले के खिलाफ थे और पिताजी मैं कैसे कर पाऊंगी ये सब ? नौकरी के लिए तो वहीं रहना पड़ेगा । हां बेटा , लेकिन बड़ी मुश्किल से  जिंदगी ने ये दूसरा मौका दिया है तुझे जो कम ही लोगों को मिलता है, इस बार मैं तेरे फैसले के  साथ हूं बस तुझे कदम बढ़ाने की देर है । तू ज्यादा सोच मत बस  दामाद जी से बात कर ले और जल्दी निर्णय लेना ।

          कविता अपने पति संतोष से बात करती है तो संतोष गुस्से से  बोला , “अब मुझे घर जवाई रहना पड़ेगा इसका मतलब। मै लाचार क्या हो गया तुमने तो मुझे नौकर ही समझ लिया। मै नही जाऊंगा अपना घर छोड़कर , तुम्हे जाना है तो जाओ …..

          सुनिए जी  यहां रहकर कुछ नही हो पा रहा तभी तो वहां जाने का सोच रही हूं। बड़ी मुश्किल से ऐसा सुनहरा मौका मिला है , इसे मैं किसी कीमत पर नहीं गवाना चाहती। आप रहो यहां , मैं अपने बच्चों के साथ जा रही हूं और भगवान ने चाहा तो  मेरी नौकरी लग जायेगी फिर कभी लौटकर नहीं आऊंगी अब कविता ने अपना फैसला सुना दिया

          (बचपन से जिद्दी तो थी ही, जो सोच लिया वो करके ही रहती थी)

          कविता आ गई दोनो बच्चों के साथ मायके और फॉर्म भर दिया। उसकी किस्मत ने साथ दिया और उसकी ओवर एज होने से पहले  अध्यापिका के रूप में एक  छोटे गांव में पोस्टिंग हो गई। कुछ महीने  बच्चों को अपने माता पिता के पास छोड़ा और तबादला कराने की कोशिश में जुट गई। रामबाबू जी ने पूरा साथ दिया उसका  आठ महीने में  किसी जान पहचान से उसका तबादला एक कस्बे में हो गया जहां बच्चों को अच्छा स्कूल मिल गया और कविता की फिक्र भी कम हो गई। उसकी जिंदगी पटरी पर आने लगी थी अब

 

 कविता की दादी तो अब रही नही पर रामबाबू जी को अपनी बेटी की बात बहुत याद आ रही थी जो उसने कही थी” क्या पता कब जरूरत पड़ जाए योग्यता की और डिग्री मेरे पास रहेगी तो मेरे आत्मनिर्भर बनने में मुझे आगे कदम बढ़ाने में  मेरी सहायता करेगी, मुझे आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करेगी

            उस समय कविता ने व्यावसायिक योग्यता हासिल करने का फैसला नही लिया होता तो आज क्या होता ये सोचकर रामबाबू जी सिहर उठे।

            उन्होंने अपनी बेटी के सिर पर एक प्यार भरा हाथ फेरा ,जो कविता को और आत्मविश्वास से भर गया।

            कविता के पति को भी उससे अलग रहने पर उसकी कीमत पता चल चुकी थी। उसने कविता से माफी मांग उसके साथ रहने का फैसला किया।

कविता ने अब सोच लिया था और फैसला कर लिया कि अपने दोनो बच्चों ( एक बेटा, एक बेटी) को शादी से पहले आत्मनिर्भर बनने के पूरे कौशल सिखाएगी और हो सका तो आत्मनिर्भर जरूर बनाएगी क्युकी उससे बेहतर और कौन समझ सकता था आत्मनिर्भरता की अहमियत…..

 

              समय के साथ  कविता  को तरक्की भी मिलती रही और वो प्रधानाध्यापिका बन चुकी थी उसका बेटा भी अपनी मेहनत से  सी ए बन गया था जबकि बेटी ने भी बी एड कर ली।  उसके पति ने भी अपनी खुद  की किराने की दुकान अपने घर में ही खोल ली क्योंकि उनसे ज्यादा चला फिरा नही जाता इसलिए एक हेल्पर( सहायक) भी रख लिया जो घर और बाहर दोनों जगह का काम कर देता था।

            कविता अपने स्कूल में भी आत्मनिर्भर बनने के गुर सिखाने के कैंप समय समय पर आयोजित करवाती रहती थी और ज्यादा से ज्यादा लड़कियों को इसमें भाग लेने के लिए प्रोत्साहित करती ।वो खुद अपना उदाहरण भी देती थी ताकि लड़कियां समझ सके कि आत्मनिर्भर बनना कितना जरूरी है।

              

            दोस्तों मुझे लगता शादी से पहले आत्मनिर्भर न बन पाएं, न सही पर आत्मनिर्भरता के सारे कौशल सीखने बहुत जरूरी है। क्या पता भविष्य में कब जरूरत पड़ जाए । कविता के पास व्यवसायिक डिग्री थी तो समय रहते वो आत्मनिर्भर बन पाई और अपने बच्चों को भी आत्मनिर्भर बना पाई। उसने जिंदगी में जो फैसला लिया वो उसके और बच्चों के लिए सही साबित हुआ।

 

कभी कभी परिस्थितियां ऐसी बनती हैं कि हम शादी के बाद जिम्मेदारियों के चलते चाहते हुए भी नौकरी नहीं कर पाते पर जब बच्चे बड़े हो जाते हैं और हमारे पास खाली समय रहता है तब हम अपने सीखे गए कौशलों का या अपनी व्यवसायिक डिग्री का  उपयोग आसानी से कर सकते हैं और परिवार की आर्थिक सहायता  भी हो जाती है

परिवार में शांति भी बनी रहती है और हमारी शिक्षा भी बेकार नहीं जाती।आत्मविश्वास बढ़ता है वो अलग। 

तो बस हर दिन के साथ अपनी नई शुरुआत कीजिए और अपने कौशलों का प्रयोग अपने और दूसरों के जीवन को संवारने में कीजिए। अपने  लिए ऐसे फैसले का चुनाव करिए जो जिंदगी में आपको आगे बढ़ने में मदद करे न कि किसी से प्रेरित होकर कोई भी ऐसा फैसला लें जिसके बाद आपको पछताना पड़े।

              आपकी क्या राय है? अपने विचार कमेंट के द्वारा जरूर बताएं और मेरा उत्साहवर्धन करना न भूलें

धन्यवाद

निशा जैन

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