एकता – आरती झा आद्या : Moral stories in hindi

दोपहर का समय श्याम अपने घर एक पुलिया के नीचे बनी छोटी सी झुग्गी में आकर टूटे हुए खाट, जिसके एक ओर का पाया टूट जाने के कारण ईंट लगाकर कामचलाऊ बना लिया गया था, उस खाट के बग़ल में जमीन पर सिर घुटनों में डाल बैठ गया। श्याम के नौ और दस साल के दो बेटे थे, दोनों श्याम को चीजों की आस में देख रहे थे। श्याम की पत्नी शामली मजदूरी करती थी, वो अभी तक आई नहीं थी। श्याम ने एक नजर दोनों बच्चों को देखा और उठ कर खाट पर लेट सिर पर हाथ रखे झुग्गी के छत को देख जाने क्या सोच लगा। बच्चे निस्तब्ध थोड़ी देर अपने बापू को देखते रहे, फिर झुग्गी के बाहर खेलने चले गए। 

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कुछ ही देर बाद माँ की ऊँगली थामे बच्चे उछलते कूदते अपने अपने हाथों में पाँच रूपए वाले कुरकुरे का एक एक पैकेट लिए बहुत खुश होकर आ रहे थे। आज माँ को दिहाड़ी जो मिली है, आँखों ही आँखों में दोनों बच्चों ने पैकेट घर जाकर खोलने और खाने का निर्णय लिया, क्यूँकि अगर कुरकुरे का एक टुकड़ा भी गिर गया तो बर्बाद हो जाएगा… दूसरा तो मिलने से रहा। तीनों हँसते बोलते घर आ गए। श्याम अभी भी उसी मुद्रा में लेटा छत की ओर देखे जा रहा था।

“बुखार तो नहीं है.. कोनो बात हुई का”.. शामली ने श्याम को देखा और थैला एक तरफ रखकर श्याम के सिर पर हाथ रख कर पूछा।

शामली को देख श्याम उठ बैठा। उसे बैठते देख बच्चों ने कुरकुरे का पैकेट खोल श्याम की तरफ बढ़ाया।

“ना तुम लोग खाओ.. भूख लगी होगी ना”.. श्याम ने बच्चों को पुचकारते हुए कहा।

“तुम भी तो जब से कुछ नहीं खाए हो बापू”.. बच्चों ने स्नेहसिक्त आवाज में कहा।

“ना तुम्हीं दोनों खाओ”.. भर्राई आवाज में श्याम ने कहा। 

दोनों बच्चे झुग्गी के एक कोने में बैठ कुरकुरे का आनंद लेने लगे। 

“का हुआ है”… शामली ने फिर से पूछा। 

“आज फिर मेरे हाथ कुछ नहीं लगा शामली। जो भी कमाया वो लोग हफ्ता वसूल कर ले गए। कितनी मेहनत कर हमने अपना रिक्शा खरीदा था कि किसी को किराया नहीं देना पड़ेगा। इसके बाद सिर छुपाने के लिए एक ठौर ले लेंगे। फ़ीस भरने के पैसे नहीं होने के कारण पंद्रह दिन से बच्चे स्कूल नहीं जा सके हैं। सोचा था बच्चों को पढ़ा लिखा कर इंसान बनाएंगे। हमारी तरह आवारागर्दी ना करें। कुछ भी नहीं हो रहा है हम से”.. श्याम भविष्य की चिंता करते हुए रुआंसी आवाज में कहता है। 

“कितनी बार तो कहा है बच्चों को सरकारी स्कूल भेजो। लेकिन तुम्हें भी जाने इसी स्कूल में पढ़ाने की कौन सी जिद्द है।”

श्याम गहरी नजरों से शामली को देख नजर झुका लेता है। 

 

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उधर पुलिस की वर्दी पहने हुए चार लोग श्याम से लूटे हुए पैसों को आपस में बाँट कर कहकहे लगा रहे थे। “अंग्रेजों ने फूट डालो शासन करो की नीति इजाद कर बहुत अच्छा काम किया”.. उनमें से एक ने कहा। 

“हाँ.. वो शेर और भेड़िये वाली कहानी सुनी है तुम लोगों ने”.. दूसरे ने पूछा। 

“कौन सी कहानी.. सुनाओ जरा”.. जाम से जाम टकराते सबने कहा। 

“तो सुनो.. एक शेर होता है.. उसकी चार भेड़िये से दोस्ती हो जाती है.. एक भेड़िये के पास जाकर शेर कहता है.. मैं तुम्हें कुछ नहीं कहूँगा.. तुम्हारा हमेशा साथ दूँगा.. किसी और को कुछ कहूँ तो तुम नजरअंदाज कर देना। उस भेड़िये को अपना फायदा नजर आता है तो सहमत हो जाता है। इसी तरह वो शेर तीनों भेड़िये को भी अपने वश में कर लेता है। सभी उसे अपना हितैषी समझने लगते हैं। धीरे धीरे शेर सबको मार कर अपनी भूख की तृप्ति करता है और सब अन्त समय तक उसे अपना ही समझते रहते हैं। यही तो हमने भी किया है… बुद्धिमान जो ठहरे हम। कभी इससे झटको.. कभी उससे.. साथ रहते हुए भी उनमें से कोई चूं चपड़ तक नहीं करता है… हाहाहाहा… चारों के एक साथ लगाए गए जोर के ठहाके से पूरा परिवेश थर्रा गया।”

 

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“जाने उन्हें क्या अदावत है हम गरीब लोगों से”.. श्याम भरे मन से कहता है। 

“मन छोटा ना करो। मुझे आज दिहाड़ी मिली है, कुछ तरकारी ले आते हैं.. बच्चों के लिए कुछ अच्छा बना दें”… शामली उठ खड़ी होती है और झुग्गी का भिड़का हुआ दरवाज़ा खोलती है तो सामने ही उसके बच्चों की टीचर आती दिख जाती हैं.. जो कि शामली के घर का पता पूछ इधर ही आ रही थी। 

शामली जल्दी जल्दी उन तक पहुँच कर राम राम कर अपनी झुग्गी में लाकर बैठने के लिए एक कुर्सी देती है, जिसका एक हाथ उखड़ चुका होता है। श्याम भी टीचर को देख आदर से खड़ा होकर राम राम करता है। बच्चे अपनी टीचर को देख उत्साह में आकर बग़ल में खड़े हो जाते हैं। शामली पानी लाकर देती है, साथ ही चाय के लिए पूछती है, जिसे टीचर मना कर उससे बच्चों के स्कूल नहीं भेजने का कारण पूछती है। 

शिक्षिका के प्रश्न पर शामली श्याम की ओर देखने लगी।

“मैडम जी… हमारे पास फीस के पैसे नहीं हैं। जो थे वो तो उन लोगों ने ले लिए” बोल कर श्याम मैडम जी को हफ्ता वसूली की जानकारी देता है। 

“ये तो सरासर गलत है। आप लोग शिकायत क्यूँ नहीं करते हो।” शिक्षिका पूछती हैं। 

“किससे शिकायत करें मैडम जी। पुलिस की शिकायत पुलिस से कैसे करें।” 

“यहाँ आपके साथ साथ औरों से भी उगाही की जाती होगी ना”.. मैडम जी पूछती हैं। 

“क्या कहे मैडम जी यहीं के हम दस लोग हैं। सब अलग अलग धंधों में हैं, कोई रेहड़ी लगाता है.. कोई मोची का काम करता है… हम भी रिक्शा चलाते हैं। हम से तो उन पुलिस वालों ने कहा था कि हम से कुछ नहीं लेंगे क्यूँकि हम ज्यादा कमा नहीं पाते हैं, जो भी लेना होगा उन लोगों से लेंगे। हमें लगा सही ही बोल रहे हैं.. लेकिन वो हमारी कमाई भी लेने में नहीं हिचकते”…श्याम बताता है। 

“औरों से नहीं लेते क्या”.. टीचर पूछती हैं। 

“लेते तो सबसे ही हैं मैडम जी, पर उनके डर से हम में से कोई एक दूसरे को कुछ नहीं बताता है।” 

“मतलब सबके साथ उनलोगों ने एक ही खेल खेला और आप सब दूरगामी ना सोच अपना अपना फायदा देख फँस गए”… मैडम जी कुछ सोचते हुए कहती हैं। 

श्याम कोई जवाब नहीं दे पाता है… 

“आप ऐसा कीजिए जो भी अपने काम पर से लौट आए हो.. उनको यहाँ बुला लाईए। आप सबके साथ कुछ बात करनी है”.. मैडम जी कहती हैं। 

जी मैडम जी बोल कर श्याम चला गया और श्याम पाँच मिनट में ही काम से लौटे आठ लोगों के साथ लौट आया।

मैडम जी के पूछने पर सारे लोग अमूमन शब्दों के हेर फेर के साथ श्याम की कही बातों को ही दुहराते हैं। 

“आपलोग की सबसे बड़ी समस्या है आपमें एका का नहीं होना। आप सभी जब एकत्रित होकर अपनी एकता दिखाएंगे तो कोई भी आपको परेशान नहीं कर सकता है”.. मैडम जी अपने विचार देती हैं। 

“क्या बात कर रही हैं मैडम जी! वो पुलिस वाले हैं, हमारी क्या औकात जो उनसे टक्कर ले सके।” उनमें से एक कहता है। 

“देखिए जैसे मेरी कलम के कारण, शिक्षिका होने के कारण आप मेरी बातों को सुन रहे हैं। अगर मैं यूँ ही रास्ते पर चलती होती और आप से ये सब कहती तो आप लोगों को समय की बर्बादी लगती। आप मेरी बातों को सुनकर मुझे नहीं मेरी कलम को सम्मान दे रहे हैं, उसी तरह आप लोग किसी इंसान की नहीं उसकी वर्दी की इज्जत कर रहे हैं। अगर बिना वर्दी वाला आम आदमी आपसे उगाही करे तो क्या आप एक नहीं हो जाएंगे…गलत कह रही हूँ मैं”… मैडम जी पूछती हैं। 

“कह तो आप सही रही हैं मैडम जी। हमें क्या करना चाहिए?” अपने साथियों की ओर देखता हुआ श्याम पूछता है। 

“पहली बात तो हर पुलिस वाले ऐसे नहीं होते। हर जगह कुछ गिने चुने लोग ऐसे होते हैं, जिनके कारण उस पूरे समाज को लोग बुरा समझ लेते हैं। मेरे कुछ दोस्त वकील भी हैं और पुलिस में भी हैं। कुछ एनजीओ भी आप सब की सहायता कर सकती है। सभी आप सबों की निःशुल्क सहायता करेंगे। मैं आप लोग के साथ हूँ.. लेकिन ये याद रखिएगा कि ये लड़ाई सिर्फ आपलोग की नहीं होगी। आप जैसे कई लोगों के लिए आप लड़ रहे होंगे। कदम पीछे खिंचना असंभव होगा। इसीलिए समझ बूझ कर मुझे श्याम के द्वारा जवाब दीजिएगा और श्याम कल से बच्चों को स्कूल भेज देना। मैं स्कूल प्रशासन से बात कर लूँगी।”

श्याम और उसके साथी आए दिन की बदसलूकी से आजिज आ चुके थे। सभी को मैडम जी की एकता बना कर रखने वाली बात भी भा गई। अब एक दूसरे का हाथ थामे आर या पार ठान लिया सबने। 

अब शुरू हो गई कानूनी लड़ाई। सबसे पहले जबरन वसूली की शिकायत दर्ज करवा दिया गया। श्याम और उसके दोस्तों को कई तरह से धमकाया जाने लगा। उनके कदम लड़खड़ाने की कोशिश में कोई कसर नहीं छोड़ा गया। लेकिन जब राह एक हो और कदम एक साथ उठते हो तो मंजिल मिलते देर नहीं लगती है। मीडिया ने भी इस मुद्दे को पुलिस महकमे से जुड़े होने के कारण खूब उछाला और हर उस जगह से जहाँ जहाँ उन चारों की पोस्टिंग रही थी, वहाॅं से तरह तरह के साक्ष्य और गवाह इकट्ठे किए। साथ ही कई पुलिस ऑफिसर भी उन चारों के कृत्य से पुलिस महकमे की हो रही बदनामी से काफी खफा थे, इसलिए उनका साथ देने के लिए कोई तैयार नहीं हुआ। 

कि “रक्षक ही जब भक्षक बन जाए तो समाज में दुर्दिन आते वक़्त नहीं लगता है”  आखिरकार कोर्ट ने ये कहते हुए चारों पुलिसकर्मी को उनकी नौकरी से हमेशा के लिए बर्खास्त करते हुए जेल और मुचलके की सजा सुनाई। साथ ही श्याम और उनके दोस्तों को “एकता में ही बल है” का संदेश का अभिप्राय भी अच्छे से समझ आ गया। 

 

आरती झा आद्या

दिल्ली

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