एक मुट्ठी आसमान – कमलेश राणा

यश को जब मैंने पहली बार देखा था तब वो गोरा चिट्टा प्यारा सा शर्मीला सा 10-12 साल का बच्चा था,, जो मेरे सामने आने में भी शरमा रहा था और अपनी माँ के पीछे दुबका ही जा रहा था,, उसकी वो भाव भंगिमा आज भी मुझे वैसी ही याद है जैसे कल की ही बात हो,,

अभी हाल ही में जब उससे मिली तो वह एक छः फुट का सुंदर, स्वस्थ, आत्मविश्वास से भरपूर नवयुवक था,, चेहरे पर हमेशा रहने वाली मुस्कुराहट उसे और भी अधिक आकर्षक बना रही थी,,

पहली मुलाकात तो अतीत के गर्त में विस्मृत हो चुकी थी लेकिन यह मुलाकात बहुत खुशनुमा अहसासों के अथाह भंडार में दर्ज हो गई है मेरे,,

उसके बारे में जितना जाना,, वह बहुत ही प्रेरणास्पद है,, किसी किसी को एक मुट्ठी आसमान पाने के लिए जीवन में कितने अवरोधों का सामना करना पड़ता है,, उसका जीवन इसका साक्षात उदाहरण है,,

तीन भाई और माता पिता,, बहुत ही खुशहाल परिवार है उसका,, आपस में प्यार और सहयोग इतना कि देखकर रश्क होने लगे,, जरूरत पड़ने पर तीनों भाई तन मन धन से एक दूसरे की मदद करते हैं और बड़ी से बड़ी परेशानी को भी चुटकियों में सुलझा लेते हैं,, आज के समय में एक आदर्श परिवार की मिसाल है वो,,

धन्य हैं वो माता पिता, जिन्होंने अपने बच्चों को इतने अच्छे संस्कार दिये ,, आज वो फूले नहीं समाते जैसे किसान खेत में लहलहाती हुई फसल को देखकर खुश होता है वैसे ही वो भी अपने बच्चों को तरक्की करते देखकर खुश होते हैं,,

लेकिन हालात हमेशा से ऐसे ही नहीं थे,, आमदनी सीमित थी,, तीनों बच्चों की फीसें,, गाँव में रहते थे पर बच्चों को पढ़ने के लिए बाहर भेजना ही था तो रहने खाने का खर्च अलग से,, किसी भी बच्चे के लिए कमी करने का मतलब था जीवन भर के लिए उसके साथ किये गए पक्षपात का दंश झेलना,,

यश का इंटर हो गया तो पिता के जोर देने पर उसने BA में एडमीशन ले जरूर लिया पर पढ़ाई में लेशमात्र भी मन नहीं लग रहा था उसका,, वह इंजीनियर बनना चाहता था और इसीलिए हाई स्कूल के बाद मैथ लिया था उसने,, मन में विचारों की जद्दोजहद चलती रही,, आखिर में एक कठोर फैसला लिया उसने और पढ़ाई छोड़ दी,,

इसके लिए उसे सबके कोप भाजन का शिकार भी बनना पड़ा,, होना भी यही था,, साल खराब कर ली थी उसने पर अब वह जी जान से तैयारी में जुट गया और अगले साल ही उसका एडमिशन अच्छे इंजीनीयरिंग कॉलेज में हो गया,,


कुछ दिनों तक सब ठीकठाक चलता रहा,, थर्ड सेमेस्टर के एक्जाम नज़दीक थे,, एक दिन बुखार आ गया उसे,, मेडिकल से दवाई ले कर खा ली पर कोई आराम नहीं,, डॉक्टर को दिखाया,, चेकअप भी कराये फिर भी लाभ होता नहीं दिख रहा था,,

दरअसल उन दिनों वायरल फीवर फैला हुआ था,, हॉस्टल के करीब 200 बच्चे एक साथ इसकी चपेट में आ गये थे,, रोज एम्बुलेंस उनको लेकर होस्पिटल जाती पर न जाने क्यों, कोई दवाई असर नहीं कर रही थी,,

घरवालों को भी कुछ नहीं बताया,, सोच रहा था कि किसी तरह सेमेस्टर क्लीयर कर लूँ फिर घर जाऊँ पर हालत दिन पर दिन खराब होती जा रही थी,, हॉस्टल में कमरे में खाना ले जा कर खाने की परमीशन नहीं थी और मैस तक जाने की हिम्मत नहीं थी उसमें,, पूरे छः दिन उसने बिस्किट खा कर गुजारे,, पैसे भी खत्म हो चले थे,, एक दिन हिम्मत करके घर फोन किया तो मां को आवाज़ से महसूस हुआ कि उसकी हालत ठीक नहीं है,,

वैसे भी मां तो मां है,, बच्चों के दिल की बात बिना कहे ही समझ जाती है,, उन्होंने यश से बड़े बेटे को फोन किया ,, तुम खुद जा कर उससे मिल कर आओ और जितने पैसोंं की जरूरत हो वो भी दे आना,,

जब वो वहाँ पहुंचे तो उसकी हालत देखकर पैरों तले से जमीन खिसक गई उनके,, यश के शरीर में करवट लेने की भी ताकत नहीं थी,, घबरा गये वो और तुरंत वहाँ से घर ले आये,,ऑफिस से छुट्टी न मिलने के कारण उन्हें तुरंत वापस लौटना पड़ा,,

जब घर पहुँचा तो पिता उसकी हालत देखकर दंग रह गये,, तुरंत शहर के बड़े हॉस्पिटल ले कर गये,, यश में इतनी भी ताकत नहीं थी कि डॉक्टर के पास तक चलकर जा सके,, तब पिता ने उससे कहा,, बेटा मेरे गले में हाथ डाल ले मैं तुझे पीठ पर लाद कर ले चलता हूँ,, दर्द से तड़प उठा वह,,

हालांकि व्हील चेयर भी मिल सकती थी पर बेटे की हालत देखकर पिता का दिमाग सुन्न हो गया था,, कुछ सूझ नहीं रहा था उन्हें तभी एक वार्ड बॉय व्हील चेयर ले आया और एडमिट करा दिया उसे,, बहुत दिन लगे स्वस्थ होने में,,


अब अगले सेमेस्टर में उसे थर्ड सेमेस्टर के पेपर भी क्लीयर करने थे,, खैर सब ठीक चलता रहा,, फाइनल ईयर था उसका,, मन में उमंगें जन्म लेने लगीं थी,, बस कुछ दिन और,, उसके बाद तो वह अपने पैरों पर खड़ा हो जायेगा,,पर अभी किस्मत की परीक्षा बाकी थी,,

जब वह हाई स्कूल में था तो एक टीचर ने उससे कहा था कि कई बार सप्लीमेंट्री की कॉपियां गुम हो जाती हैं अत: वह हर पेज़ पर अपना रोल नम्बर डाल दिया करे,, वह हमेशा से ऐसा ही करता आ रहा था पर फाइनल में किसी टीचर ने पता नहीं इसका क्या अर्थ निकाला और इस पर ओब्जेक्शन लगा दिया,, और रिजल्ट रोक दिया,, अनजाने ही वह गुनहगार साबित हो गया था,,

फिर यूनिवर्सिटी जाकर उसने सारी बात बताई,, वह अधिकारी उसकी बात को समझे और बोले हम आपका भविष्य खराब नहीं करेंगे और इस तरह बड़ी कठिनाइयों के बाद आखिर वह इंजीनियर बन ही गया,,

अच्छी कंपनी में जॉब भी मिल गई,, बड़े लाड़ प्यार से पालन पोषण हुआ था उसका,, कभी किसी की सुनी नहीं पर यहाँ भी उसका अधिकारी बहुत ही खडूस था,, बात बात पर चिल्लाना और गाली देना उसकी आदत में शुमार था,, एक दिन जब सहनशक्ति ने जवाब दे दिया तो उसने इस्तीफा दे दिया और घर आ गया,, परिणाम वह जानता था पर आत्मसम्मान के साथ समझौता उसे मंजूर नहींं था,,

पिता और भाई ने पूछा,, अब क्या करोगे,,

प्राइवेट नौकरी का अनुभव इतना कड़वा था कि अब मन भर गया था उसका,, बोला,, मैं सरकारी नौकरी की तैयारी करूँगा,, वैसे भी पापा चाहते थे कि उनका एक बेटा देशसेवा के लिए आर्मी में जाये,, अब उसी की तैयारी करूँगा,,

बड़े भाई ने पूर्ण सहयोग किया उसका इस कठिन समय में,, आखिर मेहनत रंग लाई और उसका चयन भारतीय सेना में एस आई के पद के लिए हो गया,,

इस उपलब्धि पर सारा परिवार बहुत खुश था,, बहुत सारी तकलीफों के बाद ही सही आखिर उसने अपने हिस्से का एक मुट्ठी आसमान जो छू लिया था,,

उसका दिल झूम रहा था,,

              मेरे दिल ने जो मांगा, मिल गया,

मैंने जो कुछ भी चाहा मिल गया,

हो गयी जिंदगी की, हर तमन्ना तमन्ना जवां,,

कमलेश राणा

ग्वालियर

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