दिव्या को देखकर रमा को लगा , मेरी सोच गलत है । वरना आज जो कुछ वो देख रही उसे स्वीकारने की जगह नकार देती अब नकार नहीं सकती क्योंकि आंखों देखा हाल है।
इसी दृश्य को तो देखकर उसे वर्षों पुरानी स्वयं बीती घटना याद आ गई।
हुआ ये था कि आर्थिक तंगी के कारण उसकी प्रारंभिक शिक्षा प्राथमिक विद्यालय से हुई।
और फिर हाईस्कूल ,इंटर भी उसने सरकारी स्कूल से ही किया।
और अंततः उसकी मेहनत और लगन रंग लाई कि वो अच्छे नम्बरों से पास होकर विश्वविद्यालय पहुंच गई।
और उसका दाखिला भी बिना किसी सोर्स सिफारिश के हो गया।
वजह सिर्फ इतनी थी कि एक तो नम्बर अच्छे आए और दूसरे इंट्रेंस टेस्ट में टाप टेन में रही , इसलिए मनचाहा विषय भी मिल गया।
उसे अच्छे से याद है उसके इस कामयाबी की ओर बढ़ते कदम से घर परिवार ही नहीं नाते रिश्तेदार भी बहुत खुश थे । जो भी आता सराहना करते न थकता साथ ही ढेरों आशीर्वाद देता और जो भी होता घर में का पीकर चला जाता।।
पर उसके लिए वो सबसे गर्व का रहा जब विश्व विद्यालय में पहला कदम रखा ।सुडौल देह तीखे नयन नक्श,मध्य आवाज की पूरे वातावरण में मिश्री घोली दे।
कक्षा में प्रवेश किया तो लोगों की आंखें नहीं हट रही थी।
पर वो इससे बेखबर सीधे प्रोफेसर के पास गई और उनके चरण छूकर आशीर्वाद लिए। इस पर महिला प्रोफेसर ने उसे उठा सीने से लगाते हुए बोली।
किसी सभ्य घर की लगती हो।
संस्कार कूट कूट कर भरे हैं।
क्या करते हैं मम्मी पापा,इस पर वो बोली मां घरेलू महिला है और पापा चपरासी।
इस पर वहां उपस्थित तमाम लड़के और लड़कियां हंसने लगे ,तो कोई मजाक बनाने लगे।
पर प्रोफेसर ने उसे आगे की खाली सीट पर बैठने का इशारा कर लेक्चर शुरू कर दिया।
चालिस मिनट का लेक्चर समाप्त कर वो जाते जाते उसे चैम्बर में मिलने को कह गई।
फिर क्या था, सारे लेक्चर खत्म होते ही वो उनसे मिलने चली गई।
और बातों ही बातों में कुछ दिनों बाद उसका वजीफा लग गया।
दूसरे दिन फिर जब वो यूनिवर्सिटी गई तो कक्षा प्रवेश से पहले ढेहरी का पैर छुआ।
इस पर सभी हंसने लगे पर एक लड़का कोने में बैठा खामोश चुपचाप सिर्फ देख रहा था।
जिसपर इसकी नज़र टिक गई।
और क्लास ओवर होने के बाद इसने चुप रहने की वजह पूछा ।
तो वो खामोश रहा।
खैर धीरे धीरे दोनो के बीच एक अच्छी दोस्ती हो गई।
होती भी क्यों न वो थोड़ा पढ़ने में कमजोर था।सो इसने उसकी मदद जो की।
फिर क्या दोनों में कम्पटीसन हुआ और आगे पीछे करके दोनों ही अच्छे नम्बर से पास हुए।
वक्त के साथ दोस्ती कब प्यार में बदल गई।ये तो उन दोनों को भी पता न चला।
पर जब आभास हुआ तो दोनों ने ही पहली वरियता मां बाप को दी।
कि यदि वे लोग स्वीकार करेंगे तो हम शादी के बंधन में बंधेंगे ,वरना प्रेम तो वैसे भी अधूरेपन का नाम है तो हम लोग सीने में दफन पर उनकी मर्जी के अनुसार ब्याह कर लेंगे।
और हुआ भी यही दोनों के मां बाप ने इस रिश्ते को मंजूरी नहीं दी।
तो इन दोनों ने खुशी खुशी अपने प्यार को सीने में दफन कर कहीं और वैवाहिक बंधन में बंध गए।
फिर तो पलट कर कभी एक दूसरों को नहीं देखा।
और अपने अपने वैवाहिक जीवन में खुश रहने लगे।
पर अचानक एक विद्यालय में अध्यापक के पद पर जहां रमेश था वहीं ये भी पोस्टिंग पर गई।
और जब दोनों का आमना सामना हुआ तो दोनों ही एक दूसरे को देखकर हतप्रभ रह गए।
फिर घंटों बात कर एक दूसरे को फिर मिलने का वादा करके विदा लिया।
मिलना ही है, एक ही विद्यालय में कार्यरत जो है।
इस बीच तमाम तरह के लोगों से संपर्क हुआ।
इस बीच इसने महसूस किया कि वक्त के साथ बहुत कुछ बदल गया है।
क्योंकि पहले जैसा वातावरण नहीं रहा।
आधुनिक युग जो है और इस युग में पश्चिमी सभ्यता का खासा असर लोगों के दिलोदिमाग पर देखने को मिल रहा क्या वो बच्चे हैं या जवान या फिर बूढ़े।
सब इसी रंग में रंगे हुए हैं।
पर आज के इस कंप्यूटर युग जो आज जो कुछ उसे देखने को मिला वो उसकी सोच पर मिट्टी डालने लायक था।
वो स्कूल में आकर बैठी ही थी कि एक इंटर में पढ़ने वाली बच्ची ने प्रवेश किया।
और करने से पहले उसने कालेज के मुख्य द्वार को सिर माथे लगाया फिर इसके पैर की तरह बढ़ी।तो इसने उठाकर सीने से लगा लिया और बोली ,मैं ग़लत सोचती थी भले कम ही सही पर आज भी संस्कार , सम्मान और समर्पण के भाव कहीं न कहीं हैं।
स्वरचित
कंचन श्रीवास्तव आरज़ू