एक गलती की सजा –  सविता गोयल

” सर आप क्या लेंगे? ,, वेटर ने आर्डर लेते हुए जतिन से पूछा।

” काॅफी और एक सैंडविच ” जतिन ने अपना आर्डर बता दिया ।

थोड़ी देर में एक वेट्रेस उसका आर्डर लेकर आई ,” सर, योर आर्डर ,,

  मोबाइल में नजरें गड़ाए  जतिन की नजरें जैसे ही उस लड़की की तरफ उठीं वो चौंक गया। वो वेट्रेस भी सकपका कर जल्दी से ट्रे रखकर वहा से चली गई। 

”   सुरभि यहां !! ,,

जतिन का चेहरा तनाव से भर उठा ।  अगले ही पल वो वितृष्णा से बड़बड़ा उठा, ” कहीं भी हो.…. मुझे उससे क्या …. अब मेरा उससे कोई रिश्ता नहीं ….. मर चुकी है वो हमारे लिए ….. ,,

   जतिन अपने आफिस के काम से नागपुर गया था जहां एक कैफे में काफी पीने के लिए रूक गया।

  उसे अंदाजा भी नहीं था कि इस तरह सुरभि से उसका सामना हो जाएगा । उसको देखने के बाद उसके लिए काॅफी पीना भी मुश्किल लग रहा था । बहुत सी पिछली बातें उसके जहन में घूम कर उसका मन कसैला कर रही थीं ।  वो तो वहां से निकल गया  लेकिन मन था कि उन यादों से निकल ही नहीं रहा था। पिछले सारे घाव जो मुश्किल से थोड़ा भरने लगे थे वो फिर से हरे हो गए थे।

   बात चार साल पहले की थी ….. खुशहाल परिवार था उनका…  पिता राकेश जी, मां शालिनी जी और दो बच्चे जतिन और सुरभि …. दोनों भाई बहन एक दूसरे पर जान छिड़कते थे । जतिन सुरभि से बड़ा था लेकिन उसकी जिद्द थी कि पहले सुरभि की शादी करेंगे फिर ही मेरे बारे में सोचना। सुरभि के लिए एक अच्छे लड़के की तलाश हो ही रही थी कि एक दिन उन्हें जोरदार झटका लगा जब सुरभि रात तक घर नहीं आई । रमेश जी और जतिन ने खूब खोज की, उसकी सहेलियों के पास फोन किए लेकिन सुरभि का कोई पता नहीं चला ।  घर में ना किसी को खाने पीने की सुध थी ना किसी चीज की… शालिनी जी का रो रोकर बुरा हाल था। दो दिन बाद एक अनजान नंबर से फोन आया  । जतिन ने फोन उठाया तो उधर से आवाज आई, ” मैं सुरभि बोल रही हूं … मैंने अपने पसंद के लड़के से शादी कर ली है और मैं बहुत खुश हूं …  मुझे ढूंढने की कोशिश मत करना । ,,

जतिन ने गुस्से में फोन पटक दिया।  किसी को सुरभि से ये उम्मीद नहीं थी । जतिन ने तो कसम खा ली थी आज के बाद वो कभी सुरभि का नाम भी नहीं लेगा । 




सुरभि अपने घर वालों के मुंह पर कालिख मलकर घर से भाग चुकी थी ये बात सहन करना सबके लिए बहुत मुश्किल था।  लेकिन ना उसका कोई ठिकाना था ना खबर उन्होंने सुरभि को उसके हाल पर छोड़कर उससे सारे रिश्ते तोड़ लिए।

मुश्किल से इस बात का दर्द थोड़ा कम हुआ था और जतिन अपने जीवन में आगे बढ़ा था कि अचानक से आज फिर से सुरभि की झलक देखकर वो दर्द फिर उभर आया था।

   पार्क के बेंच पर बैठा जतिन विचारों के झंझावात में घिरा था , सुरभि यहां कैसे ?? , वो यहां इस कैफे में वेट्रेस का काम क्यों कर रही है??  उस लड़के ने जिसके साथ उसने भागकर शादी की थी  क्या उसने इसे छोड़ दिया ??  हमारे घर के सारे सुखों को छोड़कर ये ऐसी जिंदगी क्यों जी रही है ??

एक पल को वो अपने दिमाग को झटक कर इस मसले से दूर होना चाहता था लेकिन फिर भी एक भाई का दिल रह रहकर सुरभि की चिंता करने लगता था ।

  गुस्से में चाहे उसने सुरभि से सारे रिश्ते तोड़ दिए थे लेकिन फिर भी जिस बहन से बचपन से कलाई पर राखी बंधवाकर उसकी रक्षा का वचन दिया था वो वचन आज याद आ रहे थे।

ये तो उसे पता चल गया था कि वो इस कैफे में नौकरी करती है। शाम तक वो कैफे बंद होने का इंतजार करने लगा। सभी स्टाफ बाहर निकल गए थे । सुरभि भी अपने चेहरे पर दुपट्टा लपेटे सहमी हुई बाहर आई और फटाफट एक गली की तरफ मुड़ गई । जतिन भी छिपाकर उसका पीछा कर रहा था। चलते चलते वो एक छोटी सी बस्ती में पहुंच गई। 




खोली नुमा घर में घुसते ही एक आदमी जोर से चिल्लाया ,” निकम्मी औरत….. आज फिर देर से आई??  बदचलन कहीं की….. मैं यहां भूखा बैठा हूं और तूं गुलछर्रे उडा रही थी? ,,  चटाक से एक थप्पड़ की आवाज भी आई । जतिन के सब्र का बांध टूट चुका था । वो दरवाजे को धक्का देते हुए अंदर गया और उस आदमी को पकड़कर दो चार थप्पड़ रसीद कर दिए ।  सुरभि घबराई सी एक कोने में जा दुबकी और मुंह छिपाकर रो पड़ी । जतिन ने उसे उठाया और उसका हाथ पकड़ कर खिंचते हुए बाहर ले गया  ,” क्या इसी आदमी के लिए तूं हम सबको धोखा देकर भाग आई थी?? क्या कमी थी हमारे प्यार में जो तूने ऐसी जिंदगी चुन ली? जतिन गुस्से में फुफकारते हुए बोला ।

  सुरभि अपनी हिचकियों पर काबू करते हुए बोली ,” मुझे माफ कर दो भाई, मैं बहक गई थी ….  लेकिन इस आदमी की असलियत जानने के बाद मुझमें इतनी हिम्मत नहीं थी कि दोबारा आप लोगों का सामना कर पाती ….. इसलिए मैंने इसे ही अपनी किस्मत मान लिया और अपनी जिंदगी काट रही थी। आखिर करती भी तो क्या ….. मैंने ये नरक भी तो खुद ही चुना था ।,,

कहकर सुरभि फफक कर रो पड़ी।

जतिन ने बहन को सीने से लगा लिया ,” पगली , एक बार बात तो करके देखती …..  तेरी एक गलती के पीछे तूने इतने सालों का विश्वास तोड़ दिया …. लेकिन तूं चिंता मत कर ….  तेरा भाई अभी जिंदा है ….. अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा… जो हुआ उसे एक बुरा सपना समझकर भूल जा और चल मेरे साथ । ,,

” लेकिन भाई, सबको क्या जवाब देंगे?? मेरे चलते पहले ही आप लोगों की बहुत बदनामी हुई है…. अब एक बार फिर लोग बातें बनाएंगे। ,,

  ” लोगों के चलते मैं तुझे इस नरक में नहीं झोंक सकता , जो होगा देखा जायेगा …. तेरा भाई तेरे साथ है । ,, एक विश्वास से जतिन बोला।

  सुरभि का रोम रोम इश्वर का आभार प्रकट कर रहा था जिसने उसे ऐसा भाई दिया था।  वो जतिन के साथ चल पड़ी अपने घर की ओर। अपने जीवन की सबसे गलती की सजा वो भुगत चुकी थी । 




  नाराजगी तो बहुत थी लेकिन सुरभि की हालत देखकर सबने सबकुछ भूलकर उसे अपना लिया । सुरभि ने भी संकल्प ले लिया कि अब वो कभी अपने परिवार को निराश नहीं करेगी …….  उसने आगे पढ़ने की इच्छा जाहिर की तो उसका एडमिशन करवा दिया गया ।

    सुरभि ने मन लगाकर पढाई की और कालेज में लैक्चरार लग गई।   एक बार फिर घर में रक्षाबंधन का त्यौहार मनाया जा रहा था । जतिन की कलाई पर राखी बांधते हुए सुरभि और जतिन दोनों की आंखें छलक आईं । सुरभि को इस रेशम की डोर पर गर्व था जो नाजुक होकर भी अटूट बन गई थी । जतिन भी खुश था कि उसने अपनी बहन को दिए वचन की लाज रख ली ।

#जिम्मेदारी 

   सविता गोयल

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!