एक फौजी के अरमान – वीणा सिंह : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi : शंकर की नौकरी फौज में क्या लगी रामनाथ काका और कुंती काकी के पैर जमीन पर नहीं पड़ रहे थे.. उनके बरसों के अरमान  आज पूरे हो रहे थे..काकी बतासा अंकुरी अरवा चावल से शीतला मईया के मंदिर में जाकर सातों बहिनियां की पूजा की…

  फिर डीह बाबा और ब्रह्म स्थान जाकर माथा पटका.. बेटा की नौकरी जो लगी थी.. रिश्ते आने लगे.. बहुत सोच विचार के बाद आरती के साथ  शंकर का रिश्ता तय हो गया.. एक मोटरसाइकिल टीवी पलंग सोफा सारा फर्नीचर लड़की को पांच थान गहना शंकर को घड़ी अंगूठी सब कुछ कबूल किया लड़की वालों ने… और नकद किसी को बताया नही क्योंकि गांव वालों की नजर जो लग जाती…

धूमधाम से विवाह संपन्न हुआ.. पूरी शादी घूंघट में संपन्न हुई शंकर की दुल्हन को भर नजर देखने की इच्छा पूरी नहीं हो पाई..चौठारी  होने के बाद हीं दुल्हा दुल्हन एक दूसरे से मिल पाएंगे शादी में आई महिलाओं ने घोषणा कर दी.. बेचारा शंकर … पूरी रात करवटें बदलते छत पर चांद को निहारता रहा…

आज रात को आरती से मिल पाएंगे शंकर  बेसब्री खुशी थोड़ी झिझक के साथ रात का इंतजार करने लगा.. रात आई खाना पीना खत्म होते होते रात के ग्यारह बज गए..

अब तो आओ आरती मन हीं मन शंकर बुदबुदा रहा था.. इंतजार का बदला जरूर लूंगा.. मंदिर के किनारे बैठने वाले माली के लड़के से छुप छुपा के जो गजरा लिया था गरमी और इंतजार के कारण अपनी ताजगी और महक खो रहा था.. बेशर्म हो कर बाहर आंगन में आरती को देखने आया पर आरती तो  आजी से लेकर शादी में आई रिश्ते की मौसी चाची काकी मामी फूआ सब के पैर दबा रही थी बारी बारी से.. शंकर को देखते हीं औरतों का एक जोरदार ठहाका गूंजा और शंकर गुस्से में कमरे में चला गया.. कितना कुछ सोचा था कैसे घूंघट उठाएगा गजरा चोटी में लगाएगा और सीने से लगाकर अपने बेकरार धड़कनों को थोड़ा  …. पर  सोचते सोचते शादी के थकान के कारण उसे नींद आ गई.. और सुबह नींद खुलने पर आरती जा चुकी थी अपनी रसोई छूने की रस्म पूरी करने के लिए.. मुरझाया हुआ गजरा  शंकर का मुंह चिढ़ा रह था…

 और फिर अचानक ड्यूटी ज्वाइन करने की सूचना आ गई छुट्टी कैंसिल कर दी गई थी कुछ सुरक्षा व्यवस्था के कारण… शंकर का दिल गुस्सा बेबसी और दुःख के मिले जुले भाव अपने अंदर दबाए आंखों के गीले कोरो को छुपाते अपने #अरमानों# का गला घोंटते ड्यूटी पर चला गया.. और आरती किससे कहती अपनी ब्यथा ! गजरा जो बेणी की शोभा बढ़ाए बिना मुरझा गया.. कहीं रेडियो पर गाना बज रहा था सुनी हो गई सेज पिया बिन…

छः महीने बाद शंकर आया.. आरती छः महीने कैसे बिताए ये सिर्फ वही समझ रही थी.. ब्याहता थी पर पति के प्रेम को महसूस करना तो दूर भर नजर देख भी नहीं पाई थी..

पर उसकी ब्यथा को समझने वाला कोई नहीं था.. शंकर आया दुआर पर हीं बाबूजी बड़का बाबूजी और चाचा के साथ बैठा रहा नाश्ता पानी सब दुआर पर हीं हुआ..

रात में खाने के बाद अंदर आया.. आरती सारे काम निबटाकर मां आजी चाची और बबूनी सब के पैर दबाकर  देर रात कमरे में आई.. पर खीज यात्रा की थकावट और इंतजार के मिले जुले भाव ने पहली मुलाकात का माहौल नहीं बनने दिया.. थोड़ी देर बाद दोनो सो गए.. सुबह नींद में हीं हाथ बढ़ाया आरती के तरफ तो जगह खाली पाया.. आरती जा चुकी थी अपने कर्म-क्षेत्र में..

और छुट्टियां खत्म होते हीं शंकर वापस चला गया.. अपनी खीज और गुस्सा शंकर अब आरती पर उतारने लगा था.. बेचारी आरती पति और परिवार के बीच पिस रही थी.. अरमान तो आरती के दिल में भी थे पति के साथ थोड़ा समय गुजारे.. पर मजबूर थी..

घर के कामों में कोताही करती तो सब के ताने उलाहने व्यंग पूरे दिन सुनना पड़ता.. और इधर पति की बात नहीं मानने पर…

शंकर देख रहा था मां चाची और बड़की अम्मा सब बैठ के गप्पे मारती सारा काम काज का जिम्मा आरती के उपर डाल कर बिलकुल निश्चिंत हो गई थी… उनका कहना था ढुकते बहुरिया और जन्मते बच्चे को जैसे रखेंगे आजीवन वैसे हीं रहेगा… गांव की बूढ़ी बुजुर्ग की बैठक चलती और आरती काम में पीसी रहती.. पति पत्नी के रिश्तों में धीरे धीरे अजीब सी उदासी भरती जा रही थी… 

शंकर को अब छुट्टियां हर्षाती गुदगुदाती नही थी..

शादी के तेरह साल बीत चुके हैं.. रवि और रितिका दो बच्चों के माता पिता बन चुके हैं दोनो…

गांव में पढ़ाई की व्यवस्था ठीक नही होने के कारण शहर में अच्छे स्कूल में दाखिला करा शंकर ने हॉस्टल में दोनो को डाल दिया..

अगली छुट्टी में शंकर घर आया .. दुआर पर नहीं बैठ सीधे कमरे में चला गया पीछे से आती आवाजों को अनसुना करते हुए.. रात में सब को सुनाते हुए बोला आरती  खाना पीना सारे काम दस बजे तक खत्म कर कमरे में आ जाना वरना हाथ खींच कर ले जाऊंगा..

 घर में सब आवक! आज क्या हो गया है शंकर को शादी के इतनेसालों बाद.. किसी ने कुछ पढ़वा कर खिला दिया है मति भ्रष्ट हो गई है.. 

और शंकर सोच रहा था जो मां बिना कहे बच्चे के मन की बातें समझ जाती है वो मां मेरी मनोदशा क्यों नही समझ पाई.. एक फौजी के अंदर भी दिल धड़कता है, जिसमें कुछ अरमान छुपे होते हैं..अपने अरमानों  का गला आखिर कब तक घोटेंगे..साल में मुश्किल से एक या दो बार छुट्टी मिलती है.. कुछ वक्त अपनी पत्नी के साथ बिताना चाहता हूं हर उम्र की जरूरत अलग अलग होती है..

बचपन में मां के सिवा कोई नही भाता.. नई नई शादी होने पर पत्नी का ज्यादा से ज्यादा साथ रहना बहुत अच्छा लगता है.. ये पड़ाव हर किसी की जिंदगी में आता  है पर लोग अपना वक्त भूल जाते हैं.. अब मुझे बेशर्म बनना हीं होगा.. और मैं जब इस घर का बेटा होकर कुछ नही बोल पाया अब तक बेचारी आरती तो बिल्कुल निरीह प्राणी है, मेरे जाने के बाद घरवालों के साथ ही इसे रहना है .. फिर भला कैसे इनके मर्जी के बिना जल्दी कमरे में आ जाती.. 

अपराधबोध से भर उठा शंकर… और इस छुट्टी में मैं आरती को लेकर उसके मायके और फिर वहीं से बनारस ले कर जाऊंगा… आरती के साथ अब जीवन की नई शुरुआत करूंगा..

 बहुत वक्त गवां दिया शर्म और लिहाज में… वक्त बहुत बदल गया है.. इसकी शुरुआत मुझे अपने घर से करनी होगी…. अपने अधूरे अरमानों को  अब पूरा करना  है..और इसके लिए मुझे खुद हीं पहल करनी होगी..दृढ़ संकल्प के साथ मुस्कुरा उठा शंकर …

 #  स्वलिखित सर्वाधिकार सुरक्षित #

    # एक फौजी के अरमान #

        Veena singh

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