डस्टबिन – नीरजा कृष्णा

सुधांशु जी के घर में आज खूब रौनक है। तीन बेटों के विवाह के बाद आज उनकी इकलौती बिटिया निशा की बारात आने वाली है। उनके इतने बड़े बंगले में ही विवाह का आयोजन होने जा रहा है। वरपक्ष की इच्छानुसार एकदम देशी खाने पीने की व्यवस्था हो रही है। आँगन के एक कोने में शामियाना लगा कर हलवाई बैठा दिया गया है।चार बोरे मटर आई है। वर अनुज के दादा जी को मटर के समोसे बहुत पसंद हैं ना। निशा की दुलारी दादी पूरे जोश से आवाज दे रही हैं,”अरे ये तीनों बहुएँ कहाँ छिपी हैं…जरा आओ भई…जल्दी से मटर छिलवा डालो।”

घर की नौकरानी खुश हो गई,”हाँ माँजी, मैं अकेली क्या क्या करूँगी। वो तीनों आ जाएँ तो मंगलगीतों के साथ मटर भी छिल जाऐगी।”

मिश्राणीजी एक दरी पर ढोलक के साथ विराजमान हो गई थी। उनकी ढोलक पर एक थाप से तीनों बहुएँ दौड़ी आई और जल्दी जल्दी मटर के दाने निकलवाने में सहयोग करने लगीं। पूरा वातावरण ही मंगलमय हो  चुका था। पान के बीड़े सजाते हुए दादी जी की आँखें छलकी जा रही थी। तभी वो हुंकार कर उठी,”अरे तुम तीनों तो खींखीं करने में लगी पड़ी हो। चुहलबाजी के लिए बहुत समय है…अभी जल्दी से मटर छीलने पर ध्यान दो। हलवाई का काम रुका हुआ है।”

छोटी बहू मधु तनिक मुँहलगी और हँसोड़ थी…दादीजी को छेड़ते हुए बोल पड़ी,”अरे वाह दादी, आपको तो अनुज जी के दादा जी की ही ज्यादा चिंता है। उन्हें ही तो मटर के समोसे बहुत पसंद है ना।”

पहले तो वो कुछ समझीं नहीं पर सबके चेहरों की मुस्कान ने उन्हें सब समझा दिया था। हल्की मुस्कान से वो भी नहा गई थीं। हँसकर बोलीं,”निगोड़ी बड़ी शैतान है। छेड़े बिना बाज नहीं आती। ये यू.पी. का पूरा कचरा हमारे लल्ला के आँगन में ही आ गिरा है।”

दरअसल तीनों बहुएँ उत्तरप्रदेश से ही आई थीं। मधु ने तुरंत नैन मटका कर उत्तर दिया,”दादी, आप भी तो मैनपुरी की हैं। जब डस्टबिन ही उत्तरप्रदेश का है तो उत्तरप्रदेश का कचरा भी तो वहीं ही गिरेगा ना।”

दादीजी को याद आ गया …हाय उनकी जन्मस्थली मैनपुरी ही थी। वो ठठा कर हँस दी और उसकी पीठ पर धौल जमा कर बोल पड़ीं,”बड़ी मसखरी है। बचपन याद दिला दिया।”

उसी समय मिश्राणीजी ने जोर से ढोलक पर थाप देनी शुरू कर दी। दादी जी चुपचाप अपनी आँखें पोंछने लगी थीं।

नीरजा कृष्णा

पटना

स्वरचित मौलिक

 

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