ख़्वाहिशों का कोना इस मन के अंदर भी है – रश्मि प्रकाश

“कभी कभी प्यार से भरा मन भी रिक्त होता है.. हमारे पास सुख सुविधा की हर चीज उपलब्ध होती हैं फिर भी हमारे मन का एक कोना जाने क्यों खाली खाली सा रह जाता। जानती है मैं कितनी खुश रहा करती थीं पर अब चिड़चिड़ी सी रहने लगी हूं।मेरा मन नहीं करता अब कही भी जाने का तुमलोग जाओ। मैं नहीं आ सकती। पति और बच्चों को छोड़कर जाना वैसे भी मुश्किल होगा।”राधिका अपनी दोस्त शालिनी से फोन पर कह रही थी जो उसे पुराने दोस्तों के साथ शिमला चलने के लिए फोन की थी

“क्या यार तू भी ना जाने क्या देवदास टाइप बातें करनी लगी है। मैं कुछ नहीं सुनना चाहती हम चार दोस्त मिलकर शिमला जाने की प्लानिंग कर चुके हैं बस तू भी हमारे साथ चल रही। अब बच्चे बड़े हो गए हैं वो सब मैनेज कर लेंगे। हम कब अपनी ख्वाहिशों को तवज्जो देते हैं जरा बता ?बस जो पति और बच्चों को पसंद उसमें ही खुद की खुशी खोजने लगते हैं। अब बहुत हुआ यार। सब अपने अपने हिस्से की खुशी जी रहे तो चार दिन हम क्यों नहीं। बस कुछ मत सोच। हमारे साथ चल।तू बोल तो मैं तेरे पति से बात कर लूं।”शालिनी ने कहा

 

 

“तू इतना बोल रही है तो मैं कोशिश करती हूं। विजय को आने दे उनको पूछ कर बताती हूं।”कहकर राधिका ने फोन रख दिया

राधिका हँसमुख स्वभाव की सीधी सरल लड़की। पति और दो वयस्क होते बच्चों की मां अपनी जिम्मेदारी निभाते निभाते वो अपने लिए जीना भूल सी गई थी। शायद हम औरतों के हिस्से में खुशी हमेशा दूसरों के साथ ही बाँध कर आती है। बस घर गृहस्थी सम्भालते सम्भालते खुद को कभी ना ढंग से संवारने का सोचती ना अपनी पसंद का खाने का। फिर अब पैंतालीस की उम्र में आते आते उसका ऐसा विरक्त मन विजय को भी कभी कभी परेशान कर देता था। वो बहुत बार पूछ चुका था,”क्या बात है राधिका तुम यूं हमेशा काम में ही क्यों लगी रहती हो? कभी कभी तो समझ ही नहीं आता तुम्हें क्या चाहिए।”


राधिका कैसे कहे कि तुम काम में इतने उलझ गए हो कि मुझे क्या पसंद नापसंद इसका भी ख़्याल नहीं रहता। बस अपनी ख़ुशी देखते हो।

राधिका आज विजय के आने से पहले रात के खाने की तैयारी कर ली ताकि शाम की चाय के साथ शालिनी की बात रख सके।

विजय आज थोड़ी देर से घर आये।काम का बोझ और थकान चेहरे पर दिख रही थी। खैर चाय के साथ राधिका हिम्मत करके शिमला जाने की बात रख दी।

“अकेले चार औरत मिलकर शिमला जाने का सोच रही हो? दिमाग खराब तो नहीं हो गया है तुम्हारा? ये सब चोंचले ना अमीर घरों की औरतों के होते।हम जैसे लोग अकेली औरत को शिमला नहीं भेजते। ये सब तुमने सोचा भी कैसे?”विजय तैश में आकर बोला

 

 

राधिका चुप हो गई। दूर अपने कमरों में बैठे बच्चों ने भी दोनों की बातें सुनी। कुछ देर बाद राधिका रसोई में चली गई और विजय टीवी देखने मे व्यस्त हो गए। राधिका की बेटी अन्वी बीस साल की हो गई थी और बेटा अनय सत्रह साल का मतलब दोनों ही समझदार हो गए थे।

दोनों राधिका को बुलाकर अपने कमरे में ले गए और पूछे “माँ आप जाना चाहती हो? अगर आपका मन है तो पक्का करो और जाओ। हम लोग भी तो कॉलेज टूर पर चले जाते हैं। पापा भी ऑफिस के काम से टूर पर निकल जाते। बस एक आप हम सब की वजह से कही नहीं जाती हो।हम पापा से बात करते हैं। हमें मना नहीं कर पायेंगे। बस आप शालिनी आंटी के साथ जाओ और एन्जॉय करो।”कहकर दोनों राधिका के जवाब का इंतजार करने लगे

“रहने दो बेटा पापा को कभी पसंद नहीं आयेगा। मैं वैसे भी कभी उनके बिना कहीं नहीं गई हूं तो अब इस उम्र में कैसे जा सकती।बात को यही खत्म करते हैं।मुझे नहीं जाना।”उदास होकर राधिका ने कहा

बच्चों ने बिना राधिका को बताए किसी तरह पापा को बहुत समझाया तो वो हाँ कर दिए।



राधिका को जब पता चला उसे आश्चर्य भी हुआ और खुशी भी।

जाने से पहले अन्वी ने मम्मी के लिए अच्छी ड्रेसेज ला दी और प्रॉमिस लिया कि ये शिमला जाकर ही देखना।

राधिका ने खाने पीने का लगभग सामान तैयार कर दिया था ताकि किसी को कोई दिक्कत ना हो। काम वाली को भी सब समझा दिया था।

 

 

विजय राधिका के जाने से खुश नहीं थे पर बच्चों के सामने कभी कभी एक बाप भी हार मान लेता है जब वो बात अपनी माँ की करने लगे हो।

राधिका चार दिन शिमला में दोस्तों के साथ खुश नजर आ रही थी। बच्चों को हर बात फोन कर के बताया करती। विजय से बात करने की हिम्मत नहीं हो रही थी।

राधिका ने ये चार दिन अपनी ख्वाहिशों के साथ जिया और उसके चेहरे की चमक बता रही थी कि कभी कभी खुद के लिए भी खुश रहना जरूरी है तभी हम प्यार से परिपूर्ण हो सकते है तन से मन से।

घर आकर राधिका में बहुत बदलाव आ गया था। वो अब खुश रहने लगी थी। खुद को संवारने लगी थी असर उस ड्रेस का था जो अन्वी ने दिया था जिसको पहन कर अवनि को एहसास हुआ कि उम्र कोई भी हो, आपको जिसमें खुशी मिलती हो वो कर लो।

विजय भी अब राधिका के बदले रूप से हैरान था। अब राधिका के अंदर कोई कोना रिक्त नहीं रहा था। प्यार से परिपूर्ण हो गया था।

हम औरतें सच में अपने लिए जीना भूल जाते है। प्यार तो हमारे अंदर भरा हुआ रहता है बस खुद के लिए जो प्यार होना चाहिए वो कोना हमेशा हम रिक्त ही छोड़ देते। जब हम खुद को खुश रखेंगे तभी सबको खुश रख सकते। ये बात हमारे पति और बच्चों के साथ साथ हमारे परिवार वालों को भी समझना चाहिए। एक औरत खुश रहेगी तभी घर के हर सदस्य को वो खुश रख सकती है।

 

 

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धन्यवाद

रश्मि प्रकाश

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