दुःख में सुख की खोज – बालेश्वर गुप्ता : Moral stories in hindi

   पापा पापा, भैय्या हमें छोड़कर चले गये।भैय्या बिना कैसे रहेंगे?

    क्या–या या-रोहन चला गया।ओह, ये दुःख भी जीवन मे देखना बदा था।ईश्वर तूने मुझे क्यों नही उठा लिया?

       अपने समय के सफल कारोबारी रहे शांतिस्वरूप जी अब अधिकतर समय घर पर ही बिताते थे।उम्र भी तो 80 वर्ष के करीब हो गयी थी।दो बेटे थे रोहन और सोहन,दोनो को कारोबार सौप सोच रहे थे अब शांति के साथ जीवन पूर्ण करेंगे।

        समय से लिया निर्णय उचित ही रहा, दोनो बेटो ने न पूरा कारोबार भी संभाल लिया वरन उसमें बढ़ोतरी ही की।शांतिस्वरूप जी पूर्ण रूप से संतुष्ट थे।शांतिस्वरूप जी ने एक कार्य और समझदारी का किया कि उन्होंने बेटो की कार्यशैली में हस्तक्षेप करना लगभग बंद कर दिया।बेटे यदि सलाह मांगते तो शांतिस्वरूप जी निश्चित रूप से सलाह देते पर उनकी सलाह मानी ही जाये ये वे अपेक्षा करते ही नही थे।इस कारण घर मे उनका सम्मान बना रहा,बेटो में भी तो बहुओं में भी।बेटे उनका पूर्ण ध्यान रखते।

     व्यक्ति जब 70 वर्ष से ऊपर हो जाता है तो उसे अपनी ही जिंदगी का पता नही होता कि कब ऊपर से बुलावा आ जाये।दूसरे उसके सगे संबंधी भी साथ छोड़ने लगते है।कभी ना कभी किसी न किसी के गुजर जाने का समाचार मिलने लगता है।तब मन मस्तिष्क पर शमसान वैराग्य छाने लगता।तब यह जीवन दुश्वार लगता।कई कई दिनों तक मन उदास रहता फिर जीवन वैसे ही चलने लगता।शांतिस्वरूप जी भी इस बात से अछूते नही थे।पहले पत्नी गयी तो नितांत अकेले पड़ गये शांतिस्वरूप जी,उसके बाद तो किसी न किसी के स्वर्ग सिधारने का समाचार मिलता ही रहता।नयी पीढ़ी के आगमन का पता नही चलता,अपने समय के साथ छोड़ते जा रहे थे।इसी कारण उनका मन व्यथित रहने लगा।

       बड़ा बेटा रोहन कुछ दिनों से खांसी से परेशान था,यूँ तो दवाई ले रहा था पर खांसी पीछा ही नही छोड़ रही थी।शांतिस्वरूप जी चिंतित होते और कहते रहते बेटा खांसी जा नही रही किसी बड़े डॉक्टर को दिखा लो,पता नही चलता बेटा शरीर के अंदर क्या चल रहा हो।रोहन आश्वस्त करता पापा टेंसन मत लो मैं दिखा लूंगा।एक दिन उसका छोटा भाई सोहन जिद करके अपने साथ बड़े भाई रोहन को बड़े डॉक्टर के पास ले गया।उसने कुछ टेस्ट बताये,सैम्पल भी दिलवा दिया रिपोर्ट अगले दिन आनी थी।जिसकी कल्पना नही थी वह हो गया।रिपोर्ट में रोहन को कैंसर डिडक्ट हो गया।पूरे घर मे मातम छा गया।शांतिस्वरूप जी तो पगला से गये।कहते रह गये हमने किसका बुरा किया था जो हमारे सामने ये दिन आये।अब तक भोगी जिंदगी के सुख के ऊपर ये दुःख भारी पड़ गया।पर ईश्वर के आगे किसी का कुछ बस चलता है क्या भला?

     अच्छे से अच्छे डॉक्टर का इलाज कराया,कीमोथेरेपी शुरू कष्ट कारक जीवन रोहन का हो गया।शांतिस्वरूप जी सोचते कि वे तो बुढ़ापे में बेटे के दुःख को देखने को अभिशप्त हैं, उनके सामने ही उनका बेटा तो दुःख खुद भोग रहा है।सोचते सोचते उनकी आंखों से बहते पानी की धार रुक नही पाती।

      पूरे दो वर्ष शांतिस्वरूप जी ने मानसिक यंत्रणा भोगी तो बेटे ने शारीरिक और मानसिक यंत्रणा भोगी।एक दिन तो शायद हताश हो रोहन अकेले में अपने पिता से बोला पापा जीवन का सुख क्या होता है, क्या यह?शांतिस्वरूप जी क्या ढ़ाढस बधाते?बस रोहन का हाथ पकड़ कर अपने कलेजे से लगा फफकते रहे।अपनी जिंदगी उसे देने की दुआ भी तो नही मांग सकते थे,आखिर उनके पास ही जिंदगी के कितने दिन बचे थे।

       घर की बालकनी में बैठे शून्य में बेबसी से निहार रहे थे कि सोहन का प्रलाप कानो में पड़ गया पापा भैय्या हमे छोड़ कर चले गये।शांतिस्वरूप जी एक प्रकार से संज्ञाशून्य हो गये।होनी तो हो चुकी थी,वे कुछ नही कर सकते थे,सिवाय रोने के प्रलाप करने के।बची जिंदगी तो फिर वैसे ही चलनी थी।

     रोहन को गये दो वर्ष बीत गये थे।जिंदगी सबकी पुराने ढर्रे पर चलने लगी थी,पर शांतिस्वरूप जी मे एक परिवर्तन रोहन की मृत्यु के बाद आ गया था,उन्होंने महसूस कर लिया था सुख कम दुख ही अधिक हैं तो क्यो न इन दुखो में ही सुख ढूंढा जाये और उन्होंने सोहन के लायक संपत्ति छोड़ बाकी संपत्ति और पूंजी से एक ट्रस्ट बनाया और अपने जैसे अन्य मित्रो को भी जोड़ा और सबकी सहायता से एक कैंसर का हॉस्पिटल खोला, और बहुत कम पैसों में उपचार कराना प्रारम्भ कर दिया।सरकार से भी हॉस्पिटल को सहायता मिलने लगी थी।

     शांतिस्वरूप जी बहुत बूढ़े हो चुके थे अब वे अपने द्वारा स्थापित हॉस्पिटल तक भी नही जा पाते थे,पर वहां के समाचार अपने बेटे सोहन से प्रतिदिन लेते और फिर सामने लगे रोहन के फ़ोटो को निहारते और ऊपर आकाश की ओर देखते हुए आँखों की कोर में आये पानी को चुपके से पौंछ लेते।सोचते बेटा रोहन तेरे लिये तो कुछ नही कर पाया पर तेरी ही प्रेरणा से बहुतों रोहनो का जीवन बच रहा है।सोचकर शांतिस्वरूप जी को असीम शांति भी मिलती।आखिर अपने जीवन के अंतिम वर्षों में उन्होंने दुःख में भी सुख खोजने की युक्ति प्राप्त कर ली थी,जिसकी मिसाल जमाने के सामने उन्होंने प्रस्तुत कर दिखाई थी।

बालेश्वर गुप्ता,नोयडा

मौलिक एवम अप्रकाशित

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