दूजे घर ना जाना- रश्मि प्रकाश  : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi  : “ लो आज फिर तुम्हारी लाडली ने सगाई तुड़वा ली।” शाम को ऑफिस से घर आए नवल जी को उनकी पत्नी माधुरी ने जब ये कहा तो वो चुपचाप अपना बैग एक नौकर को थमाते हुए वही सोफे पर बैठ गए 

“ मैं कहती थी इतना सिर मत चढ़ा बेटी को… तू मानता ही नहीं था…अब वो शादी करना ही नहीं चाहती और ज़बरदस्ती सगाई तक बात बढ़ा दो तो लड़के से मिल कर ना जाने क्या व्यवहार करती कि लड़के वाले सामने से मना कर देते और ये खुशी अपनी जीत पर ख़ुश हो पार्टी करने चल देती।” नवल जी की माँ किशोरी जी बेटे को सुनाते हुए बोली जो वही बैठ कर पहले से भुनभुना रही थी 

“ माँ अब आप जले पर नमक ना छिड़को.. एक तो इस लड़की की हरकतों से परेशान हूँ और आप के तानें..!” कहते कहते अचानक नवल जी की छाती में हल्का दर्द उठा ये देखते माधुरी घबरा गई… 

जल्दी से अस्पताल लेकर गए..

“ देखिए ये दूसरी बार हुआ है…वक्त पर दवाई ले रहे हैं इसलिए सँभल गया पर ज़्यादा तनाव इनके लिए अच्छा नहीं है ।” पारिवारिक डॉक्टर ने नवल जी को देखते हुए माधुरी से कहा 

“ जी डॉक्टर समझ रही हूँ ।” माधुरी ने लाचारी से कहा 

उस दिन डॉक्टर ने नवल जी को अपनी देख रेख में रख कर दूसरे दिन घर भेज दिया ।

“ खुशी इधर सुनो।” माधुरी ने बहुत ही सख़्त लहजे में उसे बाहर निकलते देख कर बुलाया 

“ क्या है मॉम… पापा ठीक तो है … मुझे ऑफिस जाने दो।” खुशी लापरवाही से बोली 

“ तुमने फिर इस रिश्ते को नकार दिया…आख़िर तुम शादी क्यों नहीं करना चाहती हो…पापा तुम्हारे लिए कितना परेशान है ये भी तुम्हें नहीं दिखता… तुमसे छोटा भाई है लोग उसके लिए रिश्ते लाने लगे हैं… कब तक हम मना करते रहेंगे…पहले तुम्हारी शादी होगी उसके बाद ही नितिन की करेंगे … याद है ना पापा की बात ?” माधुरी का लहजा अभी भी सख़्त ही था

“ हाँ मुझे याद है पर मुझे ये घर आँगन छोड़ कर किसी और के घर आँगन में झाड़ू पोछा करने नहीं जाना … आप लोग ये बात क्यों नहींसमझते और मॉम आप तो लकी हो जो पापा और दादी आपको कभी कोई काम करने नहीं बोले .. घर में हर एक काम के लिए इतने नौकर चाकर है … पर मेरी शादी के बाद वहाँ क्या होगा भगवान जाने ।” कहकर खुशी घर से निकल गई 

शाम को नवल जी ने बेटी को अपने पास बुलाया और कहा,”लाडो.. तू पापा की जान है… पर तेरी ना से मेरी जान पर बन आई है.. हर वक्त ये सोचता रहता हूँ..इतना कुछ कर दिया तुम सब के लिए शायद वो नहीं करना चाहिए था… तुम्हारी दिक़्क़त भी समझ रहा हूँ जो तुम किसी से सुनती रहती हो उसी से तुम आकलन कर लेती हो..तुम्हें बंदिश नहीं पसंद.. तुम्हें घरेलू काम नहीं करने…अपनी ज़िंदगी अपने हिसाब से जीना चाहती हो…

ये सब देख कर ही मैं लड़का और उसका परिवार खोजता हूँ पर पता नहीं क्यों तुम दो सगाई तोड़ चुकी हो…मैं ये भी बर्दाश्त कर लेता हूँ जब लोग कहते हैं.. इनकी बेटी में जाने क्या खोट है सगाई टूट जाती पर अब एक आख़िरी उम्मीद हैं… विवेक बहुत अच्छा लड़का है और उसका परिवार हमारी तरह ही है एक बार लड़के से उसके परिवार से मिल लो..वो भी बिज़नेस वाले लोग है…

तों एडजस्टमेंट में कोई दिक़्क़त नहीं होगी… बाकी मैं हूँ ना..नितिन के भी रिश्ते के लिए लोग कहते रहते हैं…एक परिवार हमें बहुत  पसंद आ रहा है पर चाहते हैं तुम्हारी शादी तय करने के बाद उसकी सगाई करवा देंगे… अब सब तुम्हारे हाथ में है… मेरी तबियत भी अब तनाव की वजह से ठीक नहीं रहती है ।”

खुशी कुछ देर मौन रही फिर बोली,” पापा हर बेटी को अपना बसा बसाया घर आँगन छोड़ कर दूसरे के घर आँगन क्यों जाना पड़ता… मैं आप सब को छोड़कर जाना ही नहीं चाहती… हाँ ये भी सच है मैं अपनी इन सुविधाओं की इतनी आदी हो गई हूँ कि अब कहीं जाकर इसे भूल कर उस जगह के हिसाब से खुद को ढालना मुश्किल है पर आप कह रहे हैं तो मैं विवेक और उसके परिवार से मिलने को तैयार हूँ पर इस बार वो सब बात मैं लड़के से पहले ही पूछ लूँगी…जो मैं उन दोनों से बाद में पूछी और वो सगाई तोड़ दिए ।” 

“ ऐसा क्या पूछना तुम्हें?” नवल जी घबराते हुए पूछे

“ मतलब कि.. मुझे आप सब से जब मन कर मिलने आने देना… मुझपे ज़्यादा बंदिश ना लगाना…घर में सब काम के लिए नौकर हो मुझसे काम की उम्मीद ना करें..मैं शादी से पहले जैसे कम्पनी सँभालती वैसे ही काम करने देना .. ये सब।”खुशी ने कहा 

“ बेटा सब लोग एक जैसे विचार नहीं रखते फिर भी….चलो तुम ये भी पूछ लेना।” नवल जी बोले पर वो हताश हो गए थे बेटी की शर्तें सुन कर 

ख़ैर विवेक और उसका परिवार बहुत सुलझे हुए निकले ….नवल जी के परिवार के बारे में वे पहले से सब जानते थे… विवेक उनका इकलौता बेटा था तो बहू भी कम्पनी सँभालने वाली ही खोज रहे थे…विवेक की मम्मी गरिमा जी बहुत व्यवहार कुशल लगी माधुरी नेअपनी बेटी की आदतें बताते हुए कहा,” शुरू से इस तरह से परवरिश हुई कि इसे लगता है कहीं शादी के बाद इसे बाँध कर ना रखा जाए इसलिए शादी से बचती रहती है पर हमें आपका परिवार बहुत भला लग रहा अगर आपको सही लगे तो इस रिश्ते पर सहमति जतासकती है बाकी जैसा आपको सही लगे।”

गरिमा जी ने विवेक से पूछा और पूरे परिवार के सहमत होते जल्दी ही सगाई और फिर शहनाई बज गई… 

खुशी अपने बाबुल के घर आँगन को छोड़कर पिया के घर आँगन आ गई थी… नई बहू के तौर तरीक़े माधुरी ने उसे बहुत प्यार से समझादिया था… खुशी ने भी शिकायत का कोई मौक़ा नहीं दिया…

शादी के बाद जब वो मायके गई तब उसके चेहरे की ख़ुशी बयान कर रही थी कि वो उस घर आँगन में रचने बसने के पूरी तरह से तैयारहै… क्योंकि उसे सँभालने वाला जीवनसाथी और उसका परिवार उसे उसी तरह की देखभाल दे रहे थे जो उसे मायके में मिल रहा था।

दोस्तों हर लड़की के मन में अपने मायके और ससुराल तक की डगर बहुत भयावह लगती है… क्योंकि जो सुनते हैं देखते हैं उनसे प्रभावितहुए बिना नहीं रह पाते.. अपना घर आँगन छोड़ दूसरे के घर आँगन में रचना बसना मुश्किल ज़रूर है पर नामुमकिन नहीं…बस ज़रूरतहोती है प्यार समर्पण और समझ की जहाँ ये सब मिल जाए घर आँगन खिला रहे…

इस रचना पर आपकी प्रतिक्रिया का इंतज़ार रहेगा ।

धन्यवाद 

रश्मि प्रकाश 

स्वरचित ©️®️

#घर-आँगन 

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