दो कदम तुम भी चलो,दो कदम हम भी चलें। – सुषमा यादव : Moral stories in hindi

केशव अपनी पत्नी रूपा की जिद पर अपनी बेटी और रूपा को उसकी सहेली के मकान में लेकर पहुंचा। जहां उसने अपनी सहेली के घर में एक कमरा किराए से ले लिया था।

उसे छोड़ने के बाद केशव ने मायूस होकर कहा,रूपा, क्या तुमने मुझसे तलाक लेने का फैसला कर लिया है? 

नहीं, केशव, मैं तुमसे तलाक कभी नहीं लूंगी,पर तुम तलाक ले सकते हो मैं दस्तखत कर दूंगी।

केशव ने उसका हाथ प्यार से पकड़ते हुए कहा, नहीं रूपा, मैं हरगिज तुमसे तलाक नहीं लूंगा। क्या करूं। मैं अपनी मां को दुखी नहीं करना चाहता हूं। कितनी मुश्किलों और कठिनाईयों में मेरे माता-पिता ने पढ़ाया लिखाया मुझे काबिल बनाया। पर मैं तुम्हें भी नहीं छोड़ सकता हूं।मेरी समझ में नहीं आ रहा है कि मैं क्या करूं? 

रूपा कुछ देर सोचती रही और बोली। आप मेरी एक बात मानेंगे, हां, हां बिल्कुल मानूंगा। तुम बोलो तो सही। केशव ने कहा।

रूपा ने कहा,” दो कदम तुम भी चलो और दो कदम मैं भी चलूं”।इस तरह हम दोनों की समस्या का निदान हो जाएगा।

वो भला कैसे ? 

मैं यहीं रहकर नौकरी करूंगी और अपनी बेटियों को पढ़ाऊंगी।जिन बेटियों को मां जी ने माटी की छोरियां कहा था मैं उन्हें दिखाऊंगी कि मेरी बेटियां मेरा अभिमान है,मेरा गर्व हैं। यहीं माटी की छोरियां एक दिन सबका नाम रोशन करेंगी।

आपको जब समय मिले तो यहां आ जाना और हर सुख दुःख में मैं एक मेहमान की तरह तुम्हारे घर चली आऊंगी। लेकिन मुझे वहां रहने के लिए मजबूर मत करना।

वरना मुझे हमेशा के लिए खो दोगे।कहो यह शर्त मंजूर है?  केशव ने मन मार कर रूपा का “विचित्र और अनोखा फैसला” स्वीकार कर लिया। इसके अलावा कोई उपाय भी तो नहीं था, मां की दुर्व्यवहार के कारण मुझे आज अपने ही पत्नी और बेटियों से दूर रहना पड़ रहा है। केशव कुछ दिन रह कर चला गया।

रात को रूपा ने बेटियों को सुला दिया पर उसे नींद नहीं आ रही थी।

वह सोचने लगी आखिर उसे ऐसा फैसला लेने के लिए क्यों मजबूर किया गया।

आंखें बंद कर वो अपनी पिछली जिंदगी में चली गई।

शारदा ने बड़ी धूमधाम से अपनी बेटी रूपा की शादी एक अच्छे घराने में की थी। शारदा और उनके पति राघव इस शादी से बहुत खुश थे। रूपा की ससुराल तो उत्तर प्रदेश के शहर में एक बड़े कस्बे में थी, परन्तु लड़का बहुत हैंडसम और पढ़ा लिखा था और उनका बिजनेस भी अच्छा चल रहा था, खाता पीता छोटा-सा परिवार था। रूपा के माता-पिता ने सोचा कि दामाद जी बाद में कहीं नौकरी तो कर ही लेंगे।रूपा भी उच्च शिक्षित थी, उसने भी अपनी रजामंदी दे दी।

रूपा जब ससुराल गई तो यह देखकर हैरान रह गई कि पढ़े लिखे परिवार में भी उसे साड़ी पहन कर लंबा घूंघट निकाल कर हमेशा रहना पड़ता। वह तो बड़े खुले दिल वाले आधुनिक परिवार से एक बड़े शहर की लड़की थी। उसे घर के अंदर ही रहना पड़ता। सास श्वसुर पति और देवर के लिए खाना नाश्ता बनाना, बर्तन चौका, करना, कपड़े धोना घर के सभी काम उसे ही करना पड़ता।

उसने अपने पति केशव से कहा कि वह कोई नौकरी शहर में देखे तो उसने कहा कि वह नौकरी नहीं अपने घर का बिजनेस ही संभालेगा। रूपा मन मसोस कर रह गई। क्या उसे जिंदगी भर इसी तरह रहना पड़ेगा,वह तो मात्र एक नौकरानी बन कर रह गई।

रूपा के देवर की शादी हो गई, घर में छोटी बहू की बहुत कद्र होती, मायके से ढेर सारा दहेज जो लेकर आई थी। 

देवरानी के आने पर भी रूपा की दिनचर्या में कोई फर्क नहीं आया।

कुछ दिनों बाद रूपा ने एक बेटी को जन्म दिया। सास ने बेटी होने पर मुंह बना लिया। अब देवरानी के बेटा हुआ तो देवरानी तो सबकी आंखों का तारा बन गई। 

रूपा और उसकी बेटी की उपेक्षा होने लगी।

अपनी बिटिया को पालती पोसती रूपा यह सब देख कर खून के घूंट पी कर रह जाती।

दो साल बाद फिर से रूपा को बेटी और देवरानी को बेटा हुआ।अब तो सास रात दिन रूपा को ताने मारने लगी। अपने बेटे की दूसरी शादी करने को उतावली होने लगी। अब अपने अपमान से दुखी हो कर रूपा ने अपने पति से कहा, मैं अपने बच्चियों को लेकर इस माहौल में नहीं रह सकती हूं। आप नौकरी करिये और मुझे इस दलदल से बाहर निकालिए। सास ने सुना तो हंगामा खड़ा कर दिया। तुम अपनी बेटियों को लेकर चली जाओ मेरा बेटा कहीं नहीं जाएगा। रूपा ने पति की तरफ देखा तो उसने कहा कि मां की बात काटने की उसकी हिम्मत नहीं है।पर मैं तुम्हें छोड़कर दूसरी शादी हरगिज नहीं करूंगा। तुम जो चाहती हो उसे करने के लिए तुम आजाद हो।

रात दिन रूपा कुछ सोचती रही और आखिर उसने एक कठोर फैसला कर लिया।

उसने अपना बैग और दोनों बेटियों को उठाया और केशव से बोली, हो सके तो मुझे स्टेशन तक छोड़ आओ।  केशव की मां ने कहा, हां हां जाओ अपने मायके और फिर वापस कभी मेरे घर मत आना।

आंखों में आसूं लिए हुए रूपा अपने मायके तो नहीं अपनी एक सहेली के घर गई। केशव उसे वहां तक पहुंचाने आया था। 

 

रूपा ने एक स्कूल में नौकरी कर ली, केशव आता जाता रहा। अब रूपा ने एक बेटे को जन्म दिया। उसके सास ससुर ने सुना तो उसे घर वापस लौट आने पर जोर देने लगे। रूपा को यह मालूम था कि उसके देवर देवरानी उनके साथ बहुत खराब सलूक करते हैं।उसे अपनी सास की गालियां और जहरीली बातें याद आती, उसने सख्ती से मना कर दिया। अब अक्सर केशव आता और कई महीनों तक रहने के बाद घर जाता। उनके बच्चे पढ़ने में बहुत ही होशियार और बुद्धिमान निकले। दोनों बेटियां और बेटा इंजीनियरिंग करके अलग अलग शहरों में पदस्थ हो गए।

रूपा के ससुर के देहांत के बाद रूपा अपनी ससुराल गई और तेरहवीं निपटने के बाद वापस आने लगी तो सास ने बहुत विनती की बहू, मेरी तबियत ठीक नहीं रहती है तुम अब यहीं रहो,रूपा ने कहा, अम्मा जी,आपकी देखभाल के लिए देवर देवरानी हैं तो। आपने तो अपनी जली कटी बातों से मेरा ह्रदय छलनी कर दिया है अभी तक उसके घाव भरे नहीं है। हां,आप हमारे साथ चल सकतीं हैं। सासूजी ने कहा बहू, मैं अपने घर गांव को छोड़ कर कैसे चलूं।

तो फिर ठीक है मां जी, मैं चलती हूं,जब आपको मेरी जरूरत पड़े तो आ जाना। 

रूपा तो नहीं रुकी पर उसने केशव से कहा कि वह अपनी मां की देखभाल करे। मेरे पास बस मिलने के लिए आते रहना, मुझसे ज्यादा अब आपकी मां को आपकी जरूरत है।

सुषमा यादव पेरिस से

स्वरचित मौलिक अप्रकाशित

#फैसला

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