दिव्या(भाग–4) : Moral stories in hindi

राघव, छोटी छोटी मुलाक़ातों में दिव्या से उसके मन की बातें जानने की कोशिश करता रहता था। वह हर मुलाकात में उसके सपनों, आकांक्षाओं और दुनिया के प्रति अपने दृष्टिकोण को समझने का प्रयास करता था। राघव ने दिव्या को उत्साहित कर, उसे उसकी ख्वाहिशों की पूर्ति के लिए प्रेरित करता रहता और उनके साथ हर क्षण को महत्वपूर्ण बनाने का प्रयास करता रहा। इन छोटी छोटी मुलाकातों में, उनका संबंध गहरा होता चला गया, जिससे उन्हें एक दूसरे के साथ और अधिक जुड़ने का अवसर मिला।

एक छुट्टी के दिन राघव और रिया दिव्या के घर नाश्ता ले रहे थे। राघव सबसे लॉन्ग ड्राइव के लिए पूछता है। किसी ना किसी बहाने से सभी ने इंकार कर दिया।

“दिव्या.. चलो बेटा.. हम दोनों ही हो आते हैं।” अब दिव्या राघव से खुल गई थी। इसलिए राघव एक दोस्त की तरह उसके साथ पेश आता था।

“माँ मैं जाऊँ चाचा जी के साथ”.. दिव्या चंद्रिका की ओर देखकर पूछती है।

“तुम्हारी इच्छा है तो जाओ बेटा, इसमें पूछना क्या।” चंद्रिका कहती है।

“मैं तैयार होकर आती हूँ।” कहकर दिव्या भागती हुई अपने कमरे की ओर बढ़ गई।

“लेकिन दिव्या को रास्ते में कोई दिक्कत हुई तो”…चंद्रिका चिंतित स्वर में कहती है।

“आप बेफिक्र रहें भाभी। मैं सम्भाल लूँगा।” राघव चंद्रिका को आश्वस्त करता हुआ कहता है।

राघव और दिव्या अपनी यात्रा के दौरान, एक बहुत ही शांत और प्राकृतिक स्थान पहुंचते हैं। गाँव की हरियाली, पेड़ों की छाया और सुरम्यता नजर आ रही थी। वे दोनों सतरंगी फूलों और हरियाली से घिरे हुए दृश्य का आनंद ले रहे थे।

एक समय आता है जब उन्हें भूख लगती है और वे एक सुंदर सी जगह पर रुकते हैं। वहां एक ढ़ाबा है जो सतरंगी रंगों से सजा हुआ है। ढ़ाबे की सजावट और सौंधी सौंधी गंध ने उनके लंच को और भी स्वादिष्ट बना दिया।ढ़ाबे की सजावट, सुरम्यता और साथ ही साथ स्वादिष्ट खाद्य के विकल्पों को चखकर दोनों बहुत आनंद लेते हैं। उसी बीच आनंद, दिव्या से पूछता है,”घर लौटा जाए या आगे चला जाए।”

“आगे चलते हैं ना चाचा जी, बहुत ही सुहाना मौसम है। मुझे ये ठंडी ठंडी हवा बहुत ही अच्छी लग रही है।” दिव्या के चेहरे पर उस ठंडी ठंडी हवा का महसूस करने की ताजगी स्पष्ट दिख रही थी।

राघव ने मुस्कराते हुए कहा, “बिलकुल, दिव्या! ये मौसम सचमुच बहुत ही सुहाना है।” राघव के साथ गाड़ी के शीशे को नीचे किए वह बहुत दूर चले, हर कदम पर उन्होंने प्रकृति की सुंदरता का आनंद लिया। धूप की गर्म हवा ने उसके चेहरे को छुआ और वह गर्म हवा में दिव्या को ठंडक और ताजगी महसूस हो रही थी । दिव्या ने अपने दोनों हाथ बाहर किए वातावरण का मजा लेते हुए कहती है, “सचमुच, यहाँ हवा की खुशबू ही कुछ और है।” उनकी चारों ओर की प्राकृतिक सौंदर्य से घिरी यह छोटी सी यात्रा दोनों के लिए ही बहुत ही भावनात्मक और खास थी।

दोनों को लौटते हुए रात हो गई। राघव ने आनंद को कॉल कर बता दिया कि वो लोग डिनर करते हुए आयेंगे।

उसी ढ़ाबे पर डिनर के लिए दिव्या ने फिर से रुकने की इच्छा जताई।

राघव और दिव्या खाने का ऑर्डर कर बातें करने लगे।

सुबह के माहौल और रात के माहौल में दिव्या को बहुत अंतर लग रहा था। वहाँ कुछ अलग ही पहनावे और साज श्रृंगार में चार पाँच लड़कियाँ बैठी थी।

दिव्या खुद ही खुद में बड़बड़ाने लगी.. “जाने क्यूँ बिना इनकी मर्जी के कीचड़ में इन्हें धकेल दिया जाता है। इन लड़कियों की जिंदगी बर्बाद करने वाले शराफत का मुखौटा लगा दिन के उजाले में इन्हें ही समाज की गंदगी बताते हैं।”

राघव बहुत ही ध्यान से उसके बड़बड़ाने को सुन रहा था। बोलते बोलते ही दिव्या पर जैसे नशा सा छा गया था, वह बेहोश हो गई थी। दिव्या के गिरने से पहले ही राघव उसे थाम लेता है और वही बिछी चारपाई पर सुला देता है।

थोड़ी देर बाद और दिनों की तरह दिव्या खुद ही होश में आ गई।

“बेटा पानी पी लो.. हम लोग कहीं और डिनर करेंगे।” राघव दिव्या का सिर सहलाते हुए कहता है।

“पर क्यूँ चाचा जी और मैं चारपाई पर। क्या मैं यहाॅं भी?” दिव्या उठ कर बैठती हुई इधर उधर देखती हुई कहती है।

“कुछ नहीं..तुम्हें नींद आ गई थी।” राघव दिव्या को बहलाते हुए कहता है।

दोनों वहाँ से शहर आकर एक रेस्तरां में डिनर लेकर घर आ जाते हैं।

रिया भी आनंद के यहाँ ही थी।  दिव्या को पहुँचा कर और आनंद से कल मिलने का बोल रिया के साथ राघव अपने घर आ गया।

दूसरे दिन दिव्या के स्कूल जाने के बाद रिया और राघव आनंद के घर आते हैं और ढ़ाबे पर हुई घटना पर चर्चा करते हैं।

“आनंद मैं स्पष्ट रूप से पूछ रहा हूँ कि घर में कॉल गर्ल्स की जिंदगी पर कोई चर्चा होती है क्या या कभी कोई फिल्म तुमलोगों ने ऐसी देखी हो, जो इनलोगों के जीवन से जुड़ी हो।” राघव आनंद के सामने बैठा हुआ पूछता है।

“नहीं.. ऐसी कोई बात नहीं होती है और फिल्में देखने का कोई खास शौक हममें से किसी को नहीं है, लेकिन क्यों।” आनंद की जगह चंद्रिका राघव की बात का जवाब देती है।

“हाँ लेकिन एक बार न्यूज में किसी बालिका सुधार गृह के बारे में बता रहे थे कि वहाँ रहने वाली लड़कियों के साथ अमानवीय हरकत हुई। जिसमें कई लड़कियों की आत्महत्या की खबर थी, वो सुनकर और देखकर दिव्या बहुत ज्यादा विचलित हो गई थी।” 

“हाँ.. हाँ और दिव्या देखकर बहुत ही ज्यादा तेज तेज चीखने लगी थी कि किसी और की गलती की सजा किसी और को मिलती है। हमेशा यही होता रहा है। ऐसा ही कुछ बोलने लगी थी” चंद्रिका की बात पूरी होती उससे पहले ही आनंद की माँ उस वाकये को याद कर बताने लगी।

“हाँ राघव और उस दिन दिव्या को सम्भालना मुश्किल हो गया था।” आनंद टेबल पर झुकते हुए कहता है।

“कहीं ना कहीं इन सारी चीजों के तार दिव्या के जीवन से जुड़े हैं।” राघव सभी को बारी बारी से देखता हुआ कहता है।

“फिर क्या किया जाए राघव?” आनंद के माथे पर परेशानी की रेखाऍं दिखने लगी थी।

“दिव्या से योग और ध्यान तो करवा रहा हूँ। अब कुछ दवाइयाँ शुरू करूँगा। मुझे कदम दर कदम काम करना होगा। उसके अवचेतन मन से बातें भी निकाल सकूँ और उसके मन को कोई नुकसान भी ना पहुँचे, मेरी यही कोशिश होगी।” राघव को देखकर लग रहा था मानो वह खुद में ही सोचता हुआ बोल रहा हो।

राघव, अपने तज़रबे से परिपूर्ण, नेतृत्व और कर्मठता के साथ, दिव्या के स्वास्थ्य में सुधार के लिए एक संपूर्ण योजना बना रहा था। राघव ने उसके अवचेतन मन से संवाद करने पर जोर दे रहा था और सभी को सकारात्मक भावना बनाए रखने के लिए प्रेरित कर रहा था। 

“जो आपको ठीक लगे भैया। बाहर के लोग भी तो दिव्या को लेकर बहुत बातें बनाते हैं।” चंद्रिका हताशा भरे स्वर में कहती है।

“लोगों का क्या है भाभी, कुछ तो कहेंगे। आप बिल्कुल परेशान ना हो। सब ठीक हो जाएगा। देवी माँ का आशीर्वाद.. हम सब की प्रार्थना दिव्या के साथ है।” रिया चंद्रिका के मन को सहारा देने के लिए कहती है।

“हाँ बहू.. देवी माँ पर भरोसा रख, सब ठीक हो जाएगा।” आनंद की माँ बहू चंद्रिका से कहती है।

“आनंद ये एक महीने की दवाइयाॅं आज से शुरू कर देना। मैंने सारी चीजें विस्तार से लिख दी है। भाभी जैसे जैसे लिखी है, उसी तरह दीजिएगा।” राघव जेब से एक काग़ज़ निकाल कर आनंद की ओर बढ़ाते हुए कहता है।

“ठीक है भैया”.. चंद्रिका गहरी साँस लेते हुए कहती है।

“भाभी उम्मीद रखें। मजबूत इच्छा शक्ति की मालकिन है हमारी बिटिया। दिमाग पर प्रेशर होते हुए भी उसने खुद को थामे और एकाग्र रखा है। बहुत जल्दी सारी बातें बाहर आएंगी। मैं शाम में आता हूॅं.. चलें रिया।” राघव चंद्रिका को आश्वासन देकर उठ खड़ा हुआ।

“हाँ चलते हैं..मुझे भी अस्पताल पहुँचना है।” रिया ने भी घर के पास का ही एक अस्पताल जॉइन कर लिया था। इसलिए बोलती हुई वो उठ खड़ी हुई। 

“मिलती हूँ भाभी… बिल्कुल भी चिंता मत कीजिएगा।” निकलती हुई रिया ने चंद्रिका के कंधे पर हाथ रखकर सहानुभूति दर्शाते हुए कहा।

राघव अब अधिक से अधिक समय दिव्या के साथ गुजारने लगा था। स्कूल पहुँचाने और लाने की ड्यूटी खुद ही करने लगा, जिससे दिव्या के पल पल के हाव-भाव को बारीकी से पढ़ सके। किस स्थिति का कैसे आकलन करती है, इन सारी परिस्थितियों से अवगत होने के बाद ही किसी नतीजे पर पहुँचना चाहता था। उसके दिमाग में क्या चल रहा है, राघव ने अभी तक किसी से शेयर नहीं किया था। लेकिन मानसिक रूप से दिव्या को हर तरह के उपचार के लिए तैयार भी करना चाहता था।

समय शनैः शनैः गुजर रहा था। एक दिन स्कूल में किसी चर्चा के तहत शिक्षिका समाजशास्त्र में पौराणिक कथा का वर्णन करते हुए राजाओं के अंतःपुर और मुगलों के हरम के बारे में बता रही होती है, जिसे सुनते सुनते दिव्या जड़ हो गई। उसे देखकर ऐसा लग रहा था जैसे वह वहाँ होकर भी वहाँ नहीं है। टीचर के बिल्कुल सामने बैठी थी दिव्या, जिससे टीचर की सीधी नजर दिव्या पर पड़ी। दिव्या की ओर देखकर उन्हें ऐसा लगा कि भले ही दिव्या की आँखें खुली हो, लेकिन वो चेतनाशून्य है। दिव्या की प्रतिक्रिया देखने के लिए टीचर दिव्या के बगल में जाकर खड़ी हो गई। दिव्या कोई प्रतिक्रिया नहीं देकर उसी अवस्था में निश्चल बैठी रही।

“दिव्या.. दिव्या”… टीचर दिव्या को कंधे से थामते हुए उसका नाम पुकारती है।

इसके साथ ही दिव्या एक चीख के साथ बेहोश हो गई। विद्यालय में उसकी इस स्थिति से सभी भिज्ञ तो थे। लेकिन किसी ने अभी तक देखा नहीं था।

टीचर एक बच्चे से पानी लाने कह दूसरे को प्रिन्सिपल को सूचित करने भेज देती है।

दिव्या को सिक रुम में ले जाया गया साथ ही आनंद को भी सूचित कर बुला लिया गया। स्कूल में इससे पहले दिव्या के साथ ऐसा कभी नहीं हुआ था। इसीलिए सारे स्टाफ और बच्चे दिव्या की स्थिति देखकर डरे हुए थे।

आनंद, चंद्रिका और राघव के साथ स्कूल पहुॅंचते हैं। तब तक दिव्या को भी होश आ गया। लेकिन अभी तक जो दिव्या संज्ञाशून्य स्थिति में थी, वह चंद्रिका को सामने देखते ही फूट फूट कर रोने लगी।

“क्या हुआ मेरी बच्ची को, किसी ने कुछ कहा।” चंद्रिका दिव्या को अपने में समेटते हुए दुलराते हुए पूछती है।

“पता नहीं माँ, बस रोने का मन हो रहा है। मुझे मंदिर ले चलो माँ।” दिव्या चंद्रिका के आगोश में सिमटे हुए ही कहती है।

“तुम दोनों दिव्या को लेकर मंदिर चलो, मैं बाद में आऊँगा। मैं टीचर्स और बच्चों से दिव्या की स्थिति की जानकारी लूँगा।” राघव आनंद से कहता है।

“ठीक है.. चलो चंद्रिका.. चलो बेटा”… कहता हुआ आनंद चंद्रिका और दिव्या को लेकर बाहर आ गया।

वहाँ से सीधे दिव्या को लेकर घर के बगल में स्थित देवी मंदिर में आ गए। दिव्या, अपनी अस्थिर भावनाओं के साथ, देवी माँ के चरणों में बैठी अपने आँसुओं को खुलकर बहाने लगी। वह अपनी दुखी भावनाओं को देवी माँ के सामने रखते हुए ध्यान में प्रवृत्त हो गई। ध्यान के क्षणों में, उसका चेहरा धीरे-धीरे शांति और मुस्कान से भर आया। वह अपनी अंतरंग शक्ति को महसूस कर रही थी और उसने अपने दिल को धन्यवाद और स्नेह से भर दिया। ध्यान से उठते हुए, उसकी आँखों में शान्ति और समर्थन की चमक थी, जिसने उसे नई ऊर्जा और साहस का अहसास कराया।

 

दिव्या के चेहरे पर हुए इस परिवर्तन को देखकर चंद्रिका और आनंद दोनों ही हैरान हो गए। चंद्रिका की आँखों में आश्चर्य और प्रेम था, जबकि आनंद का चेहरा एक सकारात्मक उत्साह से भरा हुआ था। उन्होंने दिव्या की मानसिक स्थिति में सुधार को देखकर सामंजस्यपूर्ण और प्यार भरी सांस ली। इस चमत्कारिक परिवर्तन के साथ, उनकी उम्मीद और आत्मविश्वास और भी मजबूत हो गए थे।

लगभग दो घंटे दिव्या वहाँ उसी स्थिति में रही। जब  उसके चेहरे पर पूर्णतः रौनक लौट आई तब उसने अपनी ऑंखें खोली।

“बेटा घर चलें कि थोड़ी देर और बैठना चाहोगी।” देवी माँ को प्रणाम कर दिव्या से घर चलने के लिए चंद्रिका पूछती है।

“घर चलते हैं माँ।” दिव्या कहती है।

“दादी दरवाजे पर क्या कर रही हैं।” गाड़ी से उतरते ही दरवाजे पर खड़ी दादी को देख दिव्या दादी के गले से झूलते हुए पूछती है। दिव्या की दादी उन लोगों का इंतजार करती घर के द्वार पर ही खड़ी मिली।

“अपनी लाडो का इंतजार”… दिव्या के दोनों गालों को प्यार से खींचती हुई कहती है।

“बहुत भूख लगी है दादी। मैं फ्रेश होकर आती हूँ, हम सब एक साथ लंच करेंगे” दिव्या दादी से लाड़ लड़ाती हुई कहती है।

“आज मैंने लंच बनाया है, वो भी अपनी लाडो की पसंद का। जा जल्दी से आ।” दादी कहती हैं।

“अभी आती हूँ दादी।” दिव्या कहकर अंदर चली गई।

“चलिए माँ अंदर बैठिए। जाने कब से आप यहाँ खड़ी हैं।” चंद्रिका सासु माॅं का हाथ थामते हुए कहती है।

“क्या करती बेटा, दिल को चैन नहीं मिल रहा था।” माँ कहती हुई दोनों के साथ अंदर आ गईं।

“माँ.. एक चीज़ जो हमेशा मुझे परेशान करती है, इतना सब कुछ होने के बाद जब दिव्या होश में आती है तो कभी ये जानने की कोशिश नहीं करती है कि उसे क्या हुआ था? क्या वो भूल जाती है या अनभिज्ञता दर्शाने की कोशिश करती है?” आनंद जो अभी तक चुप चुप था, चिंतित स्वर में कहता है।

“ऐसा तो उसके बचपन से ही है आनंद।” माँ कहती हैं।

“कभी कभी लगता है, ये इसकी शांति किसी तूफान का सूचक तो नहीं है।” आनंद सोचता हुआ कहता है।

“देवी माँ पर भरोसा रख। उन्होंने राघव को भेजा है। सब ठीक होगा।” माँ भरोसा दिलाती हुई आनंद से कहती है।

“हाँ माँ.. उन्हीं पर भरोसा है।” आनंद हाथ जोड़ता हुआ अदृश्य शक्ति को याद करता हुआ कहता है।

“तुम लोग खाना शुरू करो। मैं पाँच मिनट में आता हूँ।” आनंद कहता हुआ अपने कमरे की ओर बढ़ गया।

 

चंद्रिका दिव्या और सासु माँ के प्लेट में खाना परोसने लगी।

“बैठो ना माँ.. सब साथ ही खाऍंगे।” दिव्या चंद्रिका की ओर दुलार से देखती हुई कहती है।

चंद्रिका, जिसके चेहरे पर अभी तक चिंता की रेखाएँ परिलक्षित थी, बेटी के कहने पर मुस्कुराती हुई बैठ गई।

“दिव्या.. बेटा.. एक बात बताओ!” चंद्रिका दिव्या की ओर देखती हुई कहती है।

“बेटा.. इतनी देर ध्यान में बैठी थी तुम तो”…. दिव्या की नजरों में सवाल देखकर चंद्रिका अपनी बात शुरू करती है।

“तो माँ… देवी माँ मुझे बता रही थी कि मेरा जन्म किसी विशेष कार्य के लिए हुआ है। मुझे औरों का जीवन सँवारना है।” दिव्या चंद्रिका की बात समझते हुए कहती है।

“ये क्या कह रही हो बेटी।” चंद्रिका के चेहरे के भाव और आवाज में अविश्वास भरा था।

“सही कह रही हूँ माँ।” दिव्या पूरे विश्वास के साथ कहती है।

“वो विशेष कार्य क्या है बेटा?” आनंद की माँ दिव्या पूछती हैं।

“मैंने भी पूछा देवी माँ से दादी। उन्होंने कहा.. तुम्हें स्वयम् ज्ञात करना होगा।” दिव्या कहती है।

 

“वाह माँ… आपने कहा दिव्या के पसंद का खाना बना है। लेकिन सब कुछ तो आपने अपने बेटे की पसंद का बनाया है। देख लो दिव्या आज भी पोती से ज्यादा बेटे से प्यार करती हैं तुम्हारी दादी।” आनंद जो कि आकर सारी बात सुन रहे थे, माहौल को हल्का करने के लिए कहते हैं।

उधर स्कूल से आकर राघव अपने घर ही चला गया। रिया भी अस्पताल से आ गई थी। अभी तक उसे स्कूल में हुई घटना के बारे में पता नहीं था।

दिव्या(भाग–3) : Moral stories in hindi

 

आरती झा आद्या

दिल्ली

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