फ़ैमिली कोर्ट से बाहर निकलते हुए जूही ने एक बार प्रणय को देखा और फिर हाथ में पकड़े उस कागज़ को देखा जिस पर लिखा हुआ था कि अब उसका प्रणय से कोई संबंध नहीं है।उसकी बेटी रिया के पालन-पोषण के लिये प्रणय को हर महीने एक निश्चित राशि जूही के अकाउंट में देनी होगी।दोनों के हस्ताक्षर और कोर्ट की सील..जज के हस्ताक्षर…।
बड़ी मुश्किल से उसने अपनी रुलाई रोकी। घर आकर माँ ने पूछा कि क्या हुआ तो वह फूट-फूटकर रोने लगी।माँ उसके सिर पर हाथ फेरते हुए बोली,” रो ले…महीनों का गुबार है…निकल जाएगा तो तेरा जी हल्का हो जायेगा।”
तीन बहनों में सबसे बड़ी थी जूही।पिता अंबिका प्रसाद अध्यापक और माता सुनयना सुघड़ गृहिणी।दोनों ने अपनी बेटियों को शिक्षित किया और संस्कार भी दिये।जूही बीएड करके स्कूल में पढ़ाना चाहती थी लेकिन उसकी बुआ उसके विवाह के लिये एक रिश्ता लेकर आ गयीं।लड़का प्रणय एक प्राइवेट कंपनी में इंजीनियर था और इकलौता…सुनयना जी अच्छा रिश्ता हाथ से जाने देना नहीं चाहती थीं..अंबिका बाबू ने भी सोचा कि एक की शुरु करेंगे तभी तो बाकी…।
जूही अपने माता-पिता की परेशानी समझ रही थी..सो उसने विवाह के लिये हाँ कर दी।जूही सुंदर थी तो प्रणय भी हैंडसम था।लेन-देन की बात हुई तो प्रणय ने तपाक-से कह दिया कि आप जो अपनी खुशी से देंगे।
अपने सामर्थ्यानुसार अंबिका बाबू ने बरातियों के स्वागत और लेन-देन में कोई कमी नहीं की थी फिर भी सास जूही को ताना मारने से चूकती नहीं थी।कभी-कभी ससुर भी सुना देते,” अंबिका बाबू कुछ देते तो हम भी अपनी स्नेहा बेटी का विवाह कर देते।” तब जूही प्रणय को कहती कि स्नेहा को शिक्षा की ज़रूरत है न कि दहेज़ की।वह स्नेहा को भी समझाती कि अपनी पढ़ाई पूरी कर लो..इंटर पास की कोई वैल्यू नहीं है।जवाब में वो हँसकर कहती,” भाभी…मेरी माँ मुझे इतना दहेज़ देगी कि पति मेरे तलवे चाटेगा।
” तब वह चुप रह जाती।फिर वह गर्भवती हुई…सास ने पोते की आस लगाई थी..स्नेहा ने एक बच्ची को जन्म दिया…।बस तभी से वह सबके आँख की किरकिरी बन गई।प्रणय भी उससे खिंचा-खिंचा रहने लगा था।एकाध बार उसके शर्ट पर लिपिस्टक के निशान मिले।पूछने पर कहा कि बाॅस बीमार हैं तो उनके घर जाना पड़ता है।उनकी बेटी से दो बातें हो जाती है..और कुछ नहीं।जूही सब समझ रही थी लेकिन सोचा कि कुछ दिनों में सब ठीक हो जायेगा।
एक दिन जूही की सास बड़े प्यार-से उससे बोली,” कुछ दिनों अपने मायके हो आओ….रिया भी नाना-नानी से मिल लेगी।” प्रणय ने भी उनकी हाँ में हाँ मिला दिया तो वह बेटी को लेकर चली गई।दो दिन के बाद उसने प्रणय को फ़ोन किया तो उसने उठाया नहीं।अनहोनी सोचकर वह घबरा गई..लेकिन जब सास-ससुर और स्नेहा ने भी फ़ोन नहीं उठाया तब उसका माथा ठनका।उसने अपने पिता से कहा कि कुछ दिनों से मैं देख रही थी कि सभी आपस में कुछ खुसुर-फुसुर कर रहें हैं और अब मेरा फ़ोन भी नहीं…तो मैं खुद ही कल…।
तभी कोरियर वाले ने आकर उसे एक सरकारी लिफ़ाफा थमा दिया।खोलकर देखा तो वो तलाक के कागज़ात थे।बाप-बेटी के लिये यह बहुत बड़ा सदमा था।उसी समय प्रणय का एक रिश्तेदार आकर जूही के गहने- कपड़े दे गया, साथ में एक चिट थी जिसपर लिखा था कि चुपचाप साइन कर देना वरना कोर्ट में इतने लांछन लगाऊँगा कि…।आगे उससे पढ़ा नहीं गया।आँखों से झर-झर आँसू बहने लगे।फिर भी एक उम्मीद बाकी थी…आज वो भी खत्म हो गई…।
” मम्मी…।” रिया का स्पर्श पाते ही जूही ने अपने आँसू पोंछे और नौकरी के लिये एक मेल टाइप करके अपने स्कूल के प्रिंसिपल को भेज दिया।
पंद्रह दिनों के बाद ही जूही को स्कूल से काॅल आ गया।वह स्कूल जाने लगी…रिया भी प्ले स्कूल जाने लगी…।उसकी एक बहन बैंक में ज़ाॅब करने लगी और दूसरी का बीकाॅम फ़ाइनल हो रहा था।छह महीने बाद अंबिका बाबू भी सेवानिवृत्त होकर घर में समय देने लगे।सुनयना जी जो घर की धुरी थी…सामने तो मुस्कुराती रहती लेकिन अकेले में पति से कहतीं कि जूही की फ़िक्र होती है।तब अंबिका बाबू मुस्कुरा कर कहते,” सब कुछ समय पर छोड़ दो…।”
एक दिन अंबिका बाबू रिया को लेकर पार्क में टहल रहें थें।रिया को हमउम्र गौरव के साथ खेलते देख उन्होंने पूछ लिया कि कौन है? तब रिया हाथ से इशारा करते हुए बोली,” नानू..वो रहे गौरव के दादू…।”
आपसी परिचय के बाद सतीशचंद्र बोले कि बहू के देहांत के बाद गौरव हमारी ज़िम्मेदारी हो गई..लेकिन कब तक…पत्नी बेटे को फिर से शादी करने कहती है तो वह भड़क जाता है।अब आप ही बताइये…, हम लोग कब तक…।उनकी आँखें नम हो आईं।
अंबिका बाबू ने मन में कुछ सोचा और अगले दिन सतीशचंद्र को अपने साथ घर ले आयें।चाय पीते हुए उन्होंने अपने परिवार के बारे में बताया और कहने लगे कि हम भी अब जूही का पुनर्विवाह करना चाहते हैं।यदि आप उचित समझें तो…।
सुनकर सतीशचंद्र बहुत खुश हुए और बोले,” आप अपनी बेटी को तैयार करें और मैं अपने बेटे को।जूही अपने पिता को मज़बूर होते नहीं देख सकती थी।वो गौरव के पिता प्रशांत से मिली…।विचारों के आदान-प्रदान के बाद दोनों ने तय किया कि हमारे दो ही बच्चे रहेंगे।
शुभ मुहूर्त में जूही गौरव की पत्नी बनकर दिल्ली चली गई।महीने भर के बाद उसने फिर से स्कूल ज्वाइन कर लिया।समय अपनी रफ़्तार से चलता रहा।गौरव हाॅस्टल चला गया..रिया अपने माता-पिता से दूर जाना नहीं चाहती थी…इसीलिये साथ में रहकर ही पढ़ाई करने लगी।
अंबिका बाबू की दोनों बेटियों की भी शादी हो गई और वे दोनों भी अपने-अपने परिवार के साथ खुश थीं।एक दिन जूही अपने मायके आने वाली थी।उसी दिन प्रशांत का मित्र नरेश आया और उसे एक पैकेट देते हुए बोला कि भाभी…संजीवनी हाॅस्पीटल में मेरी शैलेजा दी साइकेट्रिसस्ट हैं..आप प्लीज़ उन्हें दे दीजिएगा।
” श्योर! ” कहकर जूही ने वह पैकेट संभाल कर रख लिया।घर पहुँचकर एक दिन तो बातों में ही निकल गया।दूसरे दिन वह शैलेजा दी को फ़ोन करके उनके हाॅस्पीटल पहुँच गई।वह रिसेप्शन पर ही थी कि उसने प्रणय के पिता को डाॅ. शैलेजा के चेंबर से निकलते देखा।अपने को संयत करके वह शैलेजा दी से मिली।नरेश का पैकेट उन्हें देकर हाल-चाल पूछते हुए बोली,” दी..अभी जो पेशेंट गया था वो…।
” अरे.. वो पेशेंट नहीं हैं…उनकी बहू..।” बोलकर डाॅक्टर शैलेजा एकाएक चुप हो गई और फिर बोलीं,” अब क्या बताऊँ… मैं पिछले तीन सालों से उनकी बहू का इलाज़ कर रही हूँ।”
” तीन साल से! क्या हुआ है बहू को.. ” आश्चर्य- से जूही ने पूछा।
डाॅक्टर शैलेजा ने प्रणय के विवाह की पूरी बात बताते हुए कहा कि तलाक के बाद उसने बाॅस की बेटी के साथ विवाह कर लिया जो भारी दहेज़ के साथ नौकर-चाकर भी लाई थी।सब बहुत खुश थें।सप्ताह-दस दिन बीतने के बाद ही उसकी पत्नी सोनिया सब पर बेवजह चिल्लाने लगी।कोई भी सामान उठाकर फेंक देती।टोकने पर अपना सर दीवार पर दे मारती।एकाध बार तो उसने अपने पति के हाथ भी दाँत से काट लिये थे।तब वो मेरे पास आये और अपनी बहू की समस्या बताई।
मैंने कहा कि बहू को लेकर आइये…मैं बात करती हूँ लेकिन उनकी बहू कभी नहीं आई।अस्पताल के स्टाफ़ से पता चला कि सोनिया एक मानसिक रोगी है।दवा-इलाज से तो ठीक रहती है लेकिन कभी-कभी दौरे पड़ने लगते हैं..।मुझसे पहले यहाँ डाॅक्टर दिव्या थीं जो उसका इलाज़ कर रहीं थीं।उसके पिता अपनी बला टालना चाहते थें..और उन लोगों ने भी धन और खूबसूरती के लोभ में छानबीन नहीं किया।
डाॅ. शैलेजा ने एक गहरी साँस ली..फिर बोली,” अब यदि बहू को छोड़ देते हैं तो उसका बाप इनके बेटे को नौकरी से बर्खास्त कर देगा….कानूनी चक्रव्यूह में ऐसा फँसा देगा कि..।इनकी बेटी भी…।चलो छोड़ो…, बातों-बातों में चाय-काॅफ़ी तो पूछना ही भूल गयी।” मुस्कुराते हुए उन्होंने घड़ी देखी।
” फिर कभी दी…अभी चलती हूँ..।” कहकर जूही घर आ गई।इनकी बेटी..कहकर शैलेजा दी का चुप हो जाना, उसे बहुत खल रहा था।उसने अपनी माँ से पूछा तो वो बोलीं,” हाँ …सब सच है।प्रणय के विवाह से आये दहेज़ से उन्होंने एक बिजनेसमैन के बेटे से स्नेहा का विवाह कर दिया।लड़का पियक्कड़ निकला… पति-पत्नी के बीच झगड़ा होने लगा.. फिर स्नेहा माँ भी नहीं बन पाई।ऐसे में उसे सब कुछ सहना तो पड़ेगा ही।यह सब जानकर तेरे पापा से रहा नहीं गया..सो मिलने चले गये।पति-पत्नी दोनों ही बीमार-से लग रहें थें।
हाथ जोड़कर तेरे पापा से माफ़ी माँगने लगे थें..।समयचक्र तो देखो…पोते की चाह में उन लोगों ने तुम पर ज़ुल्म किया…और अभी उनके दोनों ही बच्चों की गोद खाली है।” कहकर उन्होंने एक ठंडी साँस ली और फिर बीलीं,” यह सच है कि बीता हुआ समय वापस नहीं आता लेकिन अच्छा हो या बुरा.. हमारे कर्मों का फल तो इसी जनम में मिल जाता है।इसीलिए कभी भी किसी का दिल नहीं दुखाना चाहिए क्योंकि दुखी हृदय से निकली हाय…न जीने देती है और न मरने…।”
तभी मोबाइल की रिंग बजी…मम्मी, नानी के हाथ का बेसन लड्डू लेती आना..।” रिया बोली
” और मेरे लिये मठरी…।” गौरव की आवाज़ सुनकर जूही चकित रह गई,” अरे…तुम कब आये?”
” सरप्राइज़ माॅम..।” कहकर गौरव ने फ़ोन डिस्कनेक्ट कर दिया।
” ये बच्चे भी ना माँ …।” जूही मुस्कुराई और सुनयना जी…वो तो बस अपनी बेटी को निहारती रही…कल तक जिसके चेहरे पर दुख की लकीरों का बसेरा था..वो अब धुंधलाने लगी थी।
विभा गुप्ता
# समयचक्र स्वरचित
समय कभी एक सा नहीं रहता है।उसका पहिया घूमता रहता है।जूही के जीवन में दुख आया तो फिर खुशियों ने भी दस्तक दी।वहीं प्रणय के परिवार से खुशियाँ रूठ गईं।