धोखा – सुधा मिश्रा द्विवेदी

जिंदगी न जाने क्या दिन दिखाती है ।वर्षा के पिताजी ने न जाने कितने रुपये खर्च करके वर्षा का विवाह जमशेदपुर  के एक सुशिक्षित  सम्पन्न  परिवार  में किया ।परंतु उन्हें क्या पता था कि ये खूबसूरत पढा -लिखा छह फुट का जवान जन्मजात विक्षिप्त  है ।

वर्षा को पहले ही दिन पता चल गया कि पति विक्षिप्त हैं  पर करे तो क्या करे ?उन दिनों आज की तरह मोबाइल  फोन भी नहीं थे कि बेटी पल पल की खबर मांँ को पहुंचा दे और हर बात में माँ की सलाह से काम करे ।विधना का लेख  या पूर्व जन्म के कर्म सोचकर उसने सब कुछ स्वीकार कर लिया। इन लोगों ने झूठ बोलकर शादी करवा दी थी  ।उसे मन ही मन बहुत क्रोध आया।

    बडे़ भैया चौथी में लेने आये तो सास ने कहा -“बहू को नहीं भेजूंगी ।हमारे परिवार  में यह परम्परा खंडित हो गयी थी ।”

    भैया बहन से अकेले में बात तक नहीं कर पाये लेकिन भाई की पारखी नजरों ने ताड़ लिया कि कहीं कुछ गड़बड़ जरुर है ।

अब जो भी हो, भैया दिल मसोस कर लौटेते हुये सोचने लगे कि अपनी बहन बेटी को पाल- पोसकर दूसरों को सौंपने के बाद बेटी वाले कितने लाचार हो जाते हैं ।

     यहां सब वर्षा के आगमन हेतु पलक -पांवडे बिछाये बैठे थे ।भैया ने सास की बात दोहरा दी ।

पर माँ को कुछ नहीं बताया कि बेवजह दु:खी हो जायेगी ।पिताजी के सामने अपना शंका व्यक्त की । पिताजी बोले ऐसा कैसे हो सकता है ??

     उधर वर्षा की सास की सख्त हिदायत और कठोर अनुशासन  मे वर्षा अपने माता पिता को एक पत्र तक न भेज पाई ।दोपहर को लिखते समय सास कोई न कोई काम बता देती जैसे चावल दाल चुनकर रखो, तकिया के कवर या टेबल क्लाथ पर कशीदा करो।

    रात को पागल पति की सेवा करे या पत्र लिखे?इसी चक्कर में जाने कब उसके पैर भारी हो गये अब तो मायके जाना दूभर, सास का आदेश यह कि” उनके  यहा पहला बच्चा ससुराल में होता है ।”



    बच्ची ने जन्म लिया ठीक बसंत पंचमी में ,जब उसकी शादी की दूसरी साल गिरह थी। मायके से भाई तमाम उपहार पहुंचा गये। दामाद के बारे में पूछा गया तो बताया कि कुछ काम से बाहर गये हैं।

     किसी प्रकार भैया एक महीने के बाद फिर आये और वर्षा को जबरदस्ती  अपने साथ ले गये यह कहकर कि इसे आराम की जरुरत है ।

   वर्षा मायके आ गयी पर किसी से कुछ न बोली सारा गम छिपा गयी यह सोचकर क्या लाभ किस्मत में जो था हो गया अब जगहंसाई और पिता को दुखित कौन करे ,पर मन- मन मेंं पति की चिंता जरुर थी। महिलाओं को इसीलिये धरती माँ की तरह सहनशील भी कहा गया है। परिवार के हित में बड़े से बड़ा गम भी बरदाश्त कर लेती हैं ये महिलायें ।

 दिन बीतने लगे बच्ची छ: महीने की हो गयी, सास ने कहला भेजा -“विदा कराओ ,वरना हमेशा के लियो बेटी अपने पास रख लो ।”

मरता क्या न करता रोती बिलखती वर्षा वापस ससुराल आ गयी ।

इसी प्रकार दिन कटने लगे बच्ची बोलने लायक हो गयी ।बाप की हरकतें देख कर बच्ची भी समझ गयी कि कुछ तो है माँ उसे पापा से दूर ही रखती ।

यहाँ मायके में छोटे भाई की शादी होने वाली थी  ,छोटा भाई वर्षा को दामाद सहित  लिवा लाने  गया  ।

फिर वही समस्या सास  जाने दे तब तो ?

भाई ने जीजाजी की खोज की तो उसे भी यही बताया गया कि बाहर गये है ।लेकिन भाई की नजर एक तालाबंद कमरे पर पडी ,भीतर से कुछ आवाजें भी आ रही थी भाई ने दरार से भीतर झांक कर देखा कि कमरे में बत्ती जल रही है पंखा चल रहा और किसी उल्लंघ आदमी के पैर में भारी – भारी लोहे कि बेडियां पडी हुई हैं ,हाथ बंधे हुये हैं कोई महिला उससे खाना खाने का आग्रह कर रही है ।

    भाई से रहा न गया ,ऊपर चढ़कर रोशनदान से झांक कर देखा, तो देखा ,अरे ये तो जीजाजी हैं और दीदी खाने का आग्रह कर रही वे चिल्ला रहे हैं ।भाई नीचे गिरते गिरते बचा।

अब सारी कहानी रील की तरह उसके नजरों में घूम गयी कि चौथी में दीदी को क्यों नहीं भेजा गया था ?

भाई दूसरे दिन  उसकी सास से झगड़ा करके जबरदस्ती  दीदी  और बच्ची को घर ले आया ।

    अपनी शादी स्थगित करवा दी यह कहकर कि वह अपनी जिम्मेदारी  पर दीदी को लाया है कहीं पत्नी आ गयी तो  दीदी की सेवा पर प्रतिबंध  न लगा दे ।

वर्षा आठवाीं तक पढाई की थी उसने पढाई शुरु की प्राइवेट  परीक्षायें उत्तीर्ण  कर ,प्राइमरी विद्यालय मे शिक्षिका बन गयी ,जब अपना खर्च स्वयं चलाने लायक हो गयी  ,तब  जाकर पांच साल बाद छोटा भाई शादी के लिये तैयार हुआ,बर्षा ने समझा -बुझाकर   परिवार बसा दिया ।

—-सुधा मिश्रा द्विवेदी

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