धिक्कार – उमा वर्मा : Moral stories in hindi

आज लक्ष्मी अपने को कोस रही थी “धिक्कार है ऐसे जीवन पर ” सच में अम्मा जी के पोते की लालसा ने उसे पाँच पाँच बेटियों की माँ बना दिया था ।वह तो कभी ऐसा चाहती भी नहीं थी।पर पति की जिद के आगे हार गई थी वह ” अरे अम्मा गलत क्या सोचती है, आखिर वंश चलाने के लिए एक बेटा तो चाहिए ही ना?” लेकिन जब बेटे की आस में एक एक कर जब पाँच बेटियों ने जन्म ले लिया तब उसने मन ही मन में एक फैसला कर लिया था।कुछ अपनी गलती, कुछ ईश्वर की मर्जी है, सोच कर उसने समूचा ध्यान बच्चों की पढ़ाई पर लगा दिया ।

साथ ही सास को बिना बताये अपना आपरेशन भी करवा लिया था ।अब किसी भी हालत में और बच्चे नहीं चाहिए था उसे ।सभी बेटियां खूब तेज, और पढ़ाई में होशियार हो गई ।लक्ष्मी को संतुष्टि होता ।वह अपने पति से कहती ” देखिएगा मेरी बेटी ही हमदोनों का नाम रोशन करेगी ।अम्मा जी निराश होकर शान्त हो गई थी ।” जैसी ईश्वर की मर्जी “। पांचों बेटी का नाम भी लक्ष्मी ने सोच कर रखा था ।सोना, चांदी, हीरा, पन्ना, मोती ।पति से वह अकसर कहती ” मेरी यह पाँच रत्न जब जगमग करेगी तब दुनिया देखेगी ” और सचमुच बड़ी बेटी डाक्टर बन गई दूसरी नेवी आफिसर्स ।तो पिता का कलेजा बहुत उँचा हो गया ।

तीसरी पुत्री इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने के लिए पूना चली गई ।बेटी को वहां सेटल करने के बाद पिता जब वापस लौट रहे थे तभी उनके ट्रेन का एक्सीडेंट हो गया ।और फिर उनकी मृत्यु हो गई ।वे बुरी तरह घायल हो गए थे ।पहचान में नहीं आ रहे थे।फटे हुए जेब में उनके आधार कार्ड से उनकी पहचान हुई ।लक्ष्मी की तो दुनिया उजाड़ हो गई थी ।रो रो कर बुरा हाल था उसका ।फिर वही सब हुआ ।परिवार के बहुत सारे लोग जुट गये ।क्रिया कर्म समापन हो गया ।सभी लोग अपने घरों को लौट गये ।

किसी ने यह नहीं पूछा कि अब कैसे जीवन यापन होगा, कैसे शिक्षा पूरी करोगी? अपने आँसू खुद ही पोछ लिए उसने ।अब उसे ही इन बच्चों के लिए जीना होगा ।कैसे करके भी शिक्षा में कमी नहीं होने देगी वह।फिर लक्ष्मी ने एक स्कूल में टीचर की नौकरी कर ली ।घर में भी टयूशन पढ़ाना शुरू कर दिया ।खाली समय बचता तो कपड़े सीलती ।एक दुकान भाड़े पर ले लिया और चार सिलाई मशीन खरीद लिया ।चार कारीगरों को रखा सिलाई के लिए ।इस तरह आमदनी का उपाय कर लिया ।घर लौटती तो रात के बारह बज जाता ।घर में बाकी बेटी परीक्षा की तैयारी करती और घर के काम में माँ को मदद भी करती ।

इस तरह जीवन रुपी नैया आगे बढ़ने लगी ।बेटे के मौत से अम्मा जी भी टूट गई थी ।छःमहीने होते वह भी दुनिया से चली गई ।जीवन बढ़ता गया ।दो बेटी ने अपने पसंद के लड़के से शादी की इच्छा जताई तो लक्ष्मी ने सहर्ष स्वीकृति दे दी।दोनों होने वाले दामाद सजातीय और एक ही प्रोफेशन में थे तो इनकार करने का सवाल ही नहीं था।और लक्ष्मी पुत्री को खुश देखना भी चाहती थी ।दो बेटी का कन्या दान चचेरे देवर ने किया लक्ष्मी चुप चाप देखती रही ।मन को बहुत तकलीफ हुई ।

आज इनके पापा होते तो कितना खुश होते ।वह खुद भी तो कन्या दान करती ।दोनों बेटी अपने ससुराल विदा हो गई ।घर सूना लगने लगा ।अबकी उसने सोच लिया था कि अब वह खुद कन्या दान करेगी ।पढ़ाई पूरी हो गई दो और बेटी की ।वह दोनों भी उच्च पद पर आसीन हो गई ।ईश्वर को लाख लाख धन्यवाद देती लक्ष्मी  मन में एक टीस सी उठती ” काश,इनके पापा आज होते” अच्छा घर वर देख कर उनकी भी शादी उसने खुद तय कर दी।अब वह किसी को आगे नहीं आने देगी।सबकुछ खुद करेगी ।

कार्ड छप गये।परिवार में बाँट दिया गया ।बहुत सारे लोग जुट गये ।कानाफूसी हुई ” कन्या दान कौन करेगा इस बार?” पंडित जी आ चुके थे ।बारात द्वार पर आ गई ।परिछावन हो चुका था ।” आवाज़ लगाई पंडित जी ने,हाँ अब कन्या दान के लिए आगे आ जायें ” लक्ष्मी आगे बढ़ गई ” मै ही कन्या दान करूंगी पंडित जी ” लोगों में एक बार फिर से कानाफूसी होने लगी ।” भला एक विधवा औरत कैसे कन्या दान कर सकती है ।यह तो घोर कलयुग है ” लक्ष्मी अडिग रही ।” क्यों, माता के न रहने पर पिता सब कुछ  कर सकता है तो पिता के न रहने पर माता क्यो नहीं कर सकती?

” लोग बोलते रहे ।कन्या दान हो गया ।कोई खुश हो या नहीं, माँ बेटी खुश थी।बेटी विदा हो गई ।इस तरह लक्ष्मी ने सभी पुत्रियों का विवाह अच्छे घर और अच्छे परिवार में किया ।लक्ष्मी उम्र के छठे दशक में पहुंच गयी है ।सभी बेटी माँ अपने ससुराल के साथ माँ का भी खयाल रखती है ।लक्ष्मी भी अब नौकरी नहीं करती ।बस सिलाई की दुकान है उसी से उसका घर अच्छी तरह चल जाता है ।बारी बारी से वह भी अपनी बेटी के पास रह लेती है ।जीवन जीने के लिए जितना चाहिए वह ठीक है उसके लिए ।वह संतुष्ट है ।बहुत संघर्ष किया था उसने ।दुनिया से लड़ती रही ।अब जाकर चैन मिला है उसे।बस ईश्वर से यही प्रार्थना करती है कि हे प्रभु, आपका नाम लेते दुनिया से विदा हो जाएँ ” कई दिनों से तबियत ठीक नहीं है उसकी।वह बिस्तर पर लेट गई है ।शायद जाने का समय आ गया है ।आँखे मुंदने लगती है ।” ” हे प्रभु ” कहती उसका सिर एक ओर ढुलक गया है ।

उमा वर्मा ।राँची ।झारखंड ।स्वरचित ।

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