दायित्व या त्याग – संध्या त्रिपाठी  : Moral stories in hindi

  जज अंकल …आप तो मुझे ही मम्मी पापा से अलग कर दीजिए ..मेरा मतलब तलाक दे दीजिए …ये क्या है ना , मम्मी अलग मुझे समझाती रहती हैं कि …जब जज साहब पूछे किसके साथ रहना है तो मैं उनका नाम लूं… और पापा अलग समझाते हैं कि मैं उनका नाम लूं…. मैं तो रोज-रोज ये सुनकर तंग आ चुका हूं जज अंकल…

      मैं आपको सच-सच बताऊं मुझे तो दोनों ही चाहिए….!  जज साहब के पूछने पर कि… किसके साथ रहना चाहोगे… नाबालिक मासूम बच्चे कृष के जवाब ने भरी अदालत को खामोश कर दिया….!

          रागिनी की नजर दर्शक दीर्घा में बैठी जूही पर पड़ी …वो मुस्कुराती हुई कृष की ओर अंगूठा  (थम्सअप) दिखा रही थी और कृष के होठों पर भी हल्की सी मुस्कान थी…।

आईए… जानते हैं मामला क्या है….

        पढ़ी-लिखी समझदार नौकरी पेशा रागिनी की शादी विप्लव से हुई थी….. दोनों की अरेंज मैरिज थी… सुलझा , शांत , गंभीर विप्लव भी एक मल्टीनेशनल कंपनी में जॉब करता था…!  विवाह के एक वर्ष बाद रागिनी ने कृष को जन्म दिया , कृष के जन्म के पश्चात रागिनी ने अपने कार्य से अवकाश ले लिया था…!

    एक दिन फेसबुक देखते देखते रागिनी की  नजर विप्लव के प्रोफाइल पर पड़ी …कौतूहल वश उसने प्रोफाइल ओपन किया …विप्लव के एक फोटो पर कमेंट पढ़ा.. अरे ये तो जूही ने लिखा है….पर जूही तो दोस्त है और अमूमन ऐसी टिप्पणी एक दोस्त तो नहीं कर सकता है ….दोस्त की भी कुछ मर्यादायें होती हैं…!

दोस्ती से ऊपर ही रागिनी को ऐसा कुछ लगा ।

          विप्लव के ऑफिस से आने के बाद बातों ही बातों में रागिनी ने एकदम से पूछ लिया …..ये जूही आपकी दोस्त ही है ना विप्लव…? रागिनी के अचानक इस तरह के सवाल से विप्लव तनिक भी विचलित नहीं हुआ ..उसने बड़े धैर्य से जवाब दिया… हां रागनी …अब वो मेरी अच्छी दोस्त है पहले वो मेरी गर्लफ्रेंड थी…।

    क्या मतलब विप्लव… थी या..? आगे रागिनी कुछ कहती बीच में ही विप्लव ने फिर सहज व धैर्य पूर्वक कहा ….तुम्हें क्या लगता है रागिनी.. तुम्हें कभी ऐसा लगा कि मैं तुम्हारे साथ विश्वास घात कर रहा हूं …या… विप्लव की बात बीच में ही काटकर रागिनी ने पूछा पर पहले तुमने कभी बताया क्यों नहीं…?  शायद मैं जरूरी नहीं समझा रागिनी…।

     देखो रागनी , तुम्हारे मन में अब अनेक शंकाओं ने जन्म ले लिया है चाहकर भी तुम इससे बाहर नहीं निकल पाओगी …..जब तक मैं तुम्हें पूरी वस्तु स्थिति से अवगत ना करा दूं ….तो सुनो….

         मैं और जूही प्यार करते थे … हमने शादी करने का वचन भी लिया था …नौकरी लगते ही मेरे घर वाले विशेष कर मेरी माँ (जो कैंसर से पीड़ित थी) को बहुत जल्दी थी बहू लाने की…!  मैंने उन्हें जूही के बारे में बताया पर संकीर्ण विचारों वाली माँ..  जाति की दुहाई देकर जूही का नाम सुनते ही आत्महत्या करने की धमकी देने लगीं…. लाख कोशिश की मैंने उन्हें समझाने की…. पर वो नहीं मानी…. माँ की हालत और वस्तु स्थिति को देखते हुए मैंने पुत्र होने का   ” दायित्व ”  निभाने की ठानी …अपनी इच्छा , अपने प्यार को दरकिनार कर.. मैंने माँ की इच्छाओं को प्रमुखता दी… और इस पूरे प्रकरण में जूही ने मेरा भरपूर साथ दिया… हम दोनों ने शादी ना  करने का फैसला लिया..!

        और माँ की इच्छा के अनुसार मैंने शादी तुमसे की ….! पर मैंने पूरी ईमानदारी से पति धर्म निभाने की कोशिश की है रागिनी …. और सच में मैं तुमसे प्यार भी करता हूं शायद मुझे ये बताने की जरूरत भी न थी , तुम अच्छे से अनुभव करती होगी… और जूही ने भी इसमें मेरा पूरा साथ दिया है……

 ”  हां लोग पहले दोस्त बनाते हैं फिर प्यार हो जाता है पर हम तो पहले प्यार में थे अब हमारी अच्छी दोस्ती है…”

और एक बात रागनी यदि हमारी दोस्ती तुम्हें पसंद ना हो तो बता देना…. रागिनी जो विप्लव की बातों पर विश्वास करना तो चाहती थी पर कहीं ना कहीं नारी गुण वो भी पति के लिए ….विश्वास कर पाना कठिन तो हो रहा था…. उसने तुरंत फोन उठाया और जूही को अपने घर बुलाया …

    सबके सामने बिल्कुल वही कहानी जूही ने भी बताई जो विप्लव ने बताया था और जूही ने भी यही कहा… यदि रागिनी , हमारी दोस्ती तुम्हें पसंद ना हो तो वो भी बता सकती हो …तुम  विप्लव की धर्मपत्नी हो …..और कहते हैं ना जोड़ियां ऊपर से बनकर आती हैं ….ये कहावत तुम दोनों को देखकर बिल्कुल सच लगती है  …अब देखो ना तुम दोनों की जोड़ी कितनी प्यारी है…. माहौल में सहजता लाने की भरपूर कोशिश की जूही ने…!

        नहीं नहीं तुम्हारी दोस्ती से मुझे क्या एतराज हो सकता है…? हड़बड़ाहट में रागिनी इतना ही तो कह पाई थी …..पर उस दिन के बाद विप्लव की हर गतिविधि पर संशय होने लगा था रागिनी को….! मन में तरह-तरह के विचार आने लगे थे …क्या इनका इतना जल्दी प्यार खत्म हो  जाएगा ….कहीं ये दोनों मुझसे झूठ तो नहीं बोल रहे हैं …या इन्होंने मेरे लिए , विप्लव  अपनी माँ के लिए …सिर्फ समझौता तो नहीं किया है ना..! विप्लव मुझसे प्यार करते भी है या… पर मुझे कभी ऐसा महसूस तो नहीं हुआ…

    कृष के स्कूल जाने के बाद रागिनी ने भी जाॅब शुरू कर दिया था… आए दिन रागिनी के शक का दायरा बढ़ता जा रहा था …कहां हो , कितनी देर लगा दी , वीडियो कॉल करो ….ऐसे ना जाने कितने सवाल रागिनी के होते थे…. कभी-कभी तो विप्लव झल्ला भी जाता था … तुम्हें क्या हो गया है रागिनी ….?  हालांकि प्रत्यक्ष रूप से रागिनी ने कभी भी जूही व विप्लव को ये ना कह सकी कि मेरे इस व्यवहार का कारण तुम दोनों या तुम्हारी दोस्ती है …..या कह ले जूही और विप्लव ने कभी शिकायत का मौका ही नहीं दिया रागिनी को , कि वो इन दोनों पर किसी भी प्रकार का इल्जाम लगा सके…।

       धीरे-धीरे रागिनी को समझ में आने लगा कि अब उसे विप्लव के साथ रहना मुश्किल हो रहा है , और दिन प्रतिदिन विप्लव की रागिनी के प्रति उदारता बढ़ती ही जा रही थी पर शायद बढ़ती उदारता भी रागिनी को रास नहीं आ रहा था ….एक दिन रागिनी ने जूही को अपने घर खाने पर बुलाया …कृष सो रहा था खाने के बाद बातों ही बातों में रागिनी ने विप्लव से अलग होने का फैसला सुना दिया …!

    क्या…? तलाक का नाम सुनते ही जूही के पैर के नीचे से जमीन खिसक गई… रागिनी ने बस इतना ही कहा..

 जोड़ियां तो ऊपर से बनकर आती हैं जबरदस्ती नहीं बनाई जाती…. पता नहीं इसका मतलब ना तो जूही समझ सकी और ना ही विप्लव…!

  और आज भरी अदालत में जज साहब को …कृष का ये जवाब और जूही का अंगूठा  (थम्सअप) दिखाना , कृष का मुस्कुराना …एक अलग ही कहानी बयां कर रहा था …अदालत में सबकी निगाहें कौतूहल वश कृष रागिनी और विप्लव की ओर ताक रही थीं…… रागिनी ने आगे आकर कहा..

       ” जज साहब मैं अपना केस वापस लेना चाहती हूँ कृष मम्मी पापा दोनों के ही साथ रहेगा “…!

   अदालत से बाहर निकलते हुए रागिनी ने विप्लव को गले लगाते हुए कहा …मुझे माफ कर दो विप्लव.. मैंने  ” दायित्व ” और त्याग को एक समझने की भूल की… तुमने अपने बेटे होने का दायित्व निभाया जिसे मैंने त्याग समझ लिया और फिर मैं पीछे कैसे रह सकती थी त्याग करने के मामले में… थोड़ी झेंपती हुई रागिनी बोलती गई… मुझे लगा मैं आत्मनिर्भर हूं कृष का पालन पोषण करने में सक्षम हूं …तो क्यों ना कृष को लेकर मैं अलग रह लूं… ताकि तुम और जूही आपस में मिल सको ….इस बीच मैंने कृष के मनः स्थिति के बारे में सोचा ही नहीं…।

      और फिर जूही ने आज जो किया मेरे पास शब्द नहीं है कहकर रागिनी जूही को गले लगाना चाहिए पर जूही अनजान बनते हुए बोली …अरे मैंने क्या किया….??

    मैंने तुम्हारा और  कृष का इशारा देख लिया है जूही ….और मैं बहुत शर्मिंदा हूं…. 

   ” वाकई प्यार सिर्फ पाने की नहीं देने की चीज भी है और प्यार का भी यह दायित्व बनता है कि किसी को भी उसकी वजह से दुख न पहुंचे “……ये आज तुम दोनों ने मुझे अच्छे से सिखा दिया….. रागिनी ने एक तरफ विप्लव का हाथ और एक हाथ में जूही का हाथ पकड़ कर कहा…!

    और खुशी खुशी निकल पड़ी अपने परिवार के साथ… अपने घर अपने स्त्रीधर्म के दायित्व को निभाने…!

 ( स्वरचित मौलिक सर्वाधिकार  सुरक्षित और अप्रकाशित रचना )

साप्ताहिक विषय

 # दायित्व

संध्या त्रिपाठी

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