दायित्व अपना-अपना – सुभद्रा प्रसाद: Moral stories in hindi

आदित्य ने आफिस से आकर अपना बैग टेबल पर रखा तो उसकी निगाह फिर उस लिफाफे पर पड़ गई, जो उसे परसों मिला था  | यह लिफाफा उसके पिता ने उसे भेजा था और आदित्य ने उसे बिना खोले ही रख दिया था | वही, पिताजी ने उसे भारत आने के लिए लिखा होगा ,उसने सोचा | वह पिताजी से बहुत नाराज था, इसीलिए उसने खोलकर पढा भी नहीं | आज न जाने क्यों उसका मन किया, देखूँ  तो सही,क्या लिखा है उन्होंने | उसने लिफाफा खोला और पढ़ने लगा | वह पिताजी का ही पत्र था और पत्र के उपर ही लिखा था, एकबार पूरे पत्र को पढ़ना जरूर |

उसने पत्र पढ़ना शुरू किया |

  मेरे प्यारे बेटे, 

                   सदा खुश रहो |

                                        मैं यहाँ सकुशल हूँ और आशा करता हूँ कि तुम भी ईश्वर की कृपा से सपरिवार सकुशल होगे | बहुत दिनों से तुम्हारा कोई समाचार नहीं मिला है |न तो तुम फोन करते हो और न हीं मेरा फोन उठाते हो, इसी से तुमसे बात नहीं हो पाती है |बस इसीलिए यह पत्र तुम्हें भेज रहा हूँ | बात यह है कि तुम्हारी माँ बहुत बिमार है |

डाक्टरों के अनुसार अब वह दो- तीन महीने से अधिक नहीं जी पायेगी |ये मत सोचना कि मैं उसके इलाज के लिए तुमसे पैसे मांग रहा हूँ | मैंने उसका इलाज अपने सामर्थ्य के अनुसार पूरा करवाया है | मैं उसे दवा भी देता हूँ और रोज मंदिर जाकर उसके लिए दुआ भी मांगता हूँ | जिंदगी भर उसने अपने सारे दायित्वों का निर्वहन भलीभाँति किया और हर कदम पर मेरा पूरा -पूरा साथ दिया है | अब इस समय मेरी बारी है |

मैं जीवन भर उसका साथ तो देता रहा, पर उसपर ज्यादा ध्यान नहीं दे पाया | अब उसके प्रति अपने सारे  दायित्वों को भलीभाँति  निभा रहा हूँ | मै उसकी सारी जरूरतों को पूरा करता हूँ ,उसका पूरा- पूरा ध्यान रखता हूँ और उसकी सारी इच्छाओं को भी पूरा करता हूँ | बस उसकी एक इच्छा है जिसे पूरा करने के लिए मुझे तुम्हारी मदद की जरूरत है | वो इच्छा है, तुमलोगों से मिलने, देखने और तुमलोगों के साथ समय बिताने की |

        माँ ने तुम्हारे प्रति भी अपने सारे दायित्व निभाये हैं | तुम्हें पालने-पोषने , देखभाल करने और पढाने- लिखाने में कभी कोई कमी नहीं की | उसी की बदौलत तुम आज इस मुकाम तक पहुंच पाए हो | तुम्हारी नाराजगी मुझसे है कि मैंने अपना घर, खेत, जमीन सब बेचकर तुम्हें पैसे नहीं दिये और तुम्हारे साथ नहीं गया |जानते हो क्यों? क्योंकि मैंने सुन लिया था कि तुम हमलोगों को साथ नहीं ले जाओगे | सारे पैसे लेकर, हमें वृद्धाश्रम में छोड जाओगे , पर तुम्हारी माँ को नहीं बताया कि उसे दुख होगा |

सारा इल्जाम अपने सिर ले लिया कि मैं देश छोडकर जाना नहीं चाहता | तुम गुस्सा कर चले गये और तीन साल से आये नहीं |पहले तो कुछ बात भी कर लेते थे पर इधर तो बात भी नहीं करते हो | इसी दुख से माँ बिमार पड गई है | रात-दिन तुमलोगों को याद करती है |  मैं उसे उसके बेटे से मिलाने का दायित्व पूरा करना चाहता हूँ |

उसके चेहरे पर तुमलोगों से मिलने की खुशी और चमक देखना चाहता हूँ | इसी से आज यह पत्र लिख रहा हूँ | माँ के प्रति अपने दायित्व को समझो, निबाहो | तुम्हारे भी तो दो बेटे हैं |एकबार सपरिवार आकर उससे मिल लो | अगर तुम यह सोचते हो कि तुम माँ की मृत्यु होने पर समाज को दिखाने और कर्मकांड निभाने आओगे, तो यह तुम्हारी भूल है |माँ की मृत्यु होने पर न तो मैं तुम्हें खबर करूँगा, न ही ं तुम्हारी राह देखूंगा, क्योंकि तब तुमसे मिलने की आस रखने वाली माँ नहीं होगी |न उसके चेहरे पर तुमलोगों से मिलने की खुशी देख पाऊंगा | मै तब भी सारे दायित्वों को निभा लूंगा | सबका दायित्व अपना-अपना होता है |अगर कर सकते हो तो माँ की जिंदगी में  एकबार उससे मिलने आ जाओ |

                                  तुम्हारा पिता 

आदित्य ने सारा पत्र पढ़ लिया और उसके सामने माँ का चेहरा घूमने लगा | उसे अपना बचपन याद आने लगा | वह अपने माता-पिता की इकलौती संतान था | पिता गाँव में एक सरकारी स्कूल में शिक्षक थे | सीधे- सादे, सरल इंसान थे | माँ भी कम पढी-लिखी, पर व्यवहार कुशल, समझदार, सरल और कुशल गृहणी थी | गाँव में अच्छी खेती-बारी थी और पुश्तैनी घर था | बहुत खुशहाली भले न थी, पर सामान्य रूप से किसी चीज की कमी न थी |

माता-पिता बहुत समझदारी से घर चलाते थे  और उसे बहुत प्यार करते थे | दादा-दादी की देखभाल, दो बुआ की शादी और उसका लालन-पालन, पढाई सारी जिम्मेवारियों को अच्छी तरह निभाया | उसकी पढाई में कभी पैसों की कमी न आने दिया | वह ईंजिनियरिंग की पढ़ाई पूरी कर एक कंपनी में अच्छी नौकरी पा गया और अपने साथ काम कर रही अपर्णा से शादी करना चाहा | माँ- पिताजी इच्छा न रहते हुए भी उसकी खुशी के लिए मान गये |

एक साल के बाद दोनों विदेश चले गये | कहकर तो गये थे कि मात्र पांच साल के लिए जा रहे हैं, पर पांच साल बाद आये तो सारा कुछ बेचकर साथ चलने को कहने लगे | पिताजी ने ना कह दिया तो गुस्से से वापस चले गये | बस बात करना कम करते-करते बंद कर दिया और तीन साल से आये भी नहीं | एक तरह से उन्हें भूल चुके थे, पर आज पिताजी की चिठ्ठी पढकर अचानक सब याद आने लगा | वो माँ- पिताजी का प्यार, अनुशासन, देखभाल, त्याग, उसके प्रति सारे दायित्वों का

सफलता पूर्वक निर्वहन | सच ही तो लिखा है पिताजी ने, आज वह जो कुछ है, उन्हीं की बदौलत तो है | उसे अपना बचपन, माँ का प्यार, उसका रूठना, माँ का मनाना, छोटी से छोटी बात का ध्यान रखना, देखभाल करना सब याद आने लगा |वह कैसे भूल गया उन्हें| ठीक ही तो कहा पिताजी ने, उसके भी तो दो बेटे हैं | उसे माँ बेतरह याद आने लगी और वह हथेलियों में मुंह छिपा कर रोने लगा |

    “क्या हुआ? क्यों रो रहे हो? ” अपर्णा उसके पास आकर पूछी |उसने कुछ नहीं कहा, सिर्फ चिठ्ठी उसकी तरफ बढ़ा दिया | अपर्णा ने पूरी चिठ्ठी पढी| 

        ” तो क्या सोचा है तुमने? ” उसने पूछा|

        ” मैं भारत अपने देश, अपने माता-पिता के पास वापस जाऊंगा | डिग्री है, योग्यता है, अनुभव है |आज से ही भारत वापस जाने और वहाँ नौकरी पाने के प्रयास में लग जाता हूँ | कोई न कोई रास्ता मिल ही जायेगा | माँ के अंतिम समय में उनके पास रहकर, उनकी सेवा कर अपने पापों का प्रायश्चित्त करूँगा |फिर पापा भी तो अकेले रह जायेंगे, उन्हें भी तो हमारी देखभाल की जरूरत होगी | उन्होंने अपना दायित्व निभाया, अब हमारी बारी है |हमें भी अपना दायित्व निभाना चाहिए, ऐसा मैं सोच रहा हूँ| तुम क्या कहती हो? ” आदित्य भींगीं आंखों से उसकी ओर देखते हुए बोला |

        ” तुम ठीक सोच रहे हो | मैं हर कदम पर तुम्हारे साथ हूँ |” अपर्णा उसके सिर पर हाथ फेरते हुए बोली | 

        ” तुम बहुत अच्छी हो |”आदित्य ने उसे गले लगाते हुए कहा | दोनों की आंखें नम थी, पर होठों पे मुस्कुराहट थी |

# दायित्व

 स्वलिखित और अप्रकाशित

 सुभद्रा प्रसाद

 पलामू, झारखंड |

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