दायाँ हाथ  – अनुज सारस्वत

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“ऐसा है मम्मी मैं घर छोड़कर चला जाऊंगा या कुछ खा पीके मर जाऊंगा अगर मुझे बाईक नही दिलायी पापा ने तो ,सुगंधा की शादी के लिए तो पैसे जाने कहाँ से आगये और अपने  लड़के के लिए फटेहाली का रोना ,मैं सब समझता हूँ आज पापा से बात करके रहूंगा आप बीच में इमोशनल गेम मत खेलना “

17 वर्षीय अंकुर ने अपनी माँ से कहा ,माँ बोली 

“बेटा पापा से कुछ मत कहना वो परेशान है खुद उन्होने कहां कहां से पैसे लेकर सुगंधा की शादी की है ,लोन है कितना अपने लिए एक शर्ट तक तो ली नही उन्होनें , वह सब हमारे लिए करते है,लेकिन कभी शिकन नहीं आने दी चेहरे पर अपने ,दुख पी जाते है ताकि हम लोग परेशान न हो “

अंकुर ने बीच में रोका और कहा

“मम्मी फिर आपका मेलोडरामा शुरू हो गया अबकी बार आपके जाल में नही फंसने बाला आज पापा से बात करके ही रहूंगा,मेरे सारे दोस्त बाईक से काॅलज और ट्यूशन जाते है चिढ़ाते है साईकल देखकर”

इतनी देर में पापा आफिस से आगये माजरा देखकर बोले 


“अरे हमारे राजकुमार कैसे परेशान हैं उनकी खिदमत में कोई परेशानी तो नही”

इतना सुनते ही अंकुर ने सारी बात मम्मी के मना करते करते एक सांस में बता दी ।

और कहा 

“पापा अब आप बताओ बेटा प्यारा या पैसे”

पापा मुस्कुराते हुए बोले

 “अरे बस इतनी सी बात तीन महीने बाद तेरा रिजल्ट है ना बस समझ तू नई बाईक से कोलेज जायेगा।”

 इतना कहकर वो अपने कमरे में चले गये।

तीन महीने बाद रिजल्ट आया अंकुर को बाईक घर के बाहर मिली उसकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा उसने तुरंत पापा को थैंकू बोलने के लिए आफिस फोन किया , बहुत लंबी रिंग जाने के बाद पापा के दोस्त ने फोन उठाया और बताया की उसके पापा हस्पताल में एडमिट है ,अंकुर के पैरो के नीचे से जमीन खिसक गयी मम्मी को लेकर तुरंत हस्पताल गया। 

वहाँ डाक्टर से मालूम पड़ा मेजर  अटैक आया है ,ICU से झांक कर वो पापा को देख ही रहा था कि उसके कंधे पर किसी का हाथ पड़ा वो संतोष अंकल थे पापा के गहरे मित्र उन्होंने कहा

“बेटा बाईक मिल गयी नई “

अंकुर बोला आपको कैसे पता 


उन्होंने कहा 

“बेटा अटैक से पहले पापा ने डीलर को सारा पैमेंट करके घर पहुंचा दी थी तुम्हें सरप्राइज देने ,तुम्हें कुछ बताना था तुमने नोटिस किया कि तुम्हारे पापा तीन महीनों से लेट घर आ रहे थे “

अंकुर बोला

” हाँ नया प्रोजेक्ट था पापा का इसलिए बताया था पापा ने”

अंकल हँसते हुए बोले 

“बेटा  कोई नया प्रोजेक्ट नही था तुम्हारी बाईक ही उनके लिए प्रोजेक्ट थी ,आफिस के बाद बच्चों को ट्यूशन देते थे 4-4 बैच लगाकर ताकी पैसे इकठ्ठे हो सके तुम्हारी बाईक के लिए ,हमेशा कहते तुम्हारे पापा मेरा बेटा मेरा दायाँ हाथ है “

और आगे बोल पाते अंकल अंकुर शर्म से जमीन में गड़ा जा रहा था रोते रोते और बोलता जा रहा था 

“साॅरी पापा साॅरी मेरी बजह से आप इतना परेशान हुए “

इतने में डाक्टर सहाब आये और कहा अब होश आ गया खतरे से बाहर हैं ।

मिल सकते हो “

अंकुर दौड़ता हुआ अंदर गया और पापा के पास सिर रखकर 

“साॅरी पापा”

 बोलने लगा ।

पापा ने सर पर हाथ रख कर कहा 


“बाईक कैसी लगी बेटा”

“पापा मुझे सिर्फ आप चाहिए बाईक नहीं”

2-3 साल बाद फादर्स डे पर

पापा आफिस जाने के लिए निकले तो लाल चमचमाती आल्टो कार घर पर खड़ी थी उसमें अंकुर था बोला 

“पापा आपका जन्मदिन तो नही पता है फादर्स डे ही आपका बर्थ डे है यह मेरी कमाई की कार आपके लिए गिफ्ट, मैं फ्रीलांसर हूं दूसरों के लिए कोडिंग करता हूं,यूट्यूब पर क्लासेज भी लेता हूँ ,साथ साथ अपनी स्टडी भी करता हूँ,आखिर आपका दायाँ हाथ जो हूँ”

पापा की आंखो में आंसू आ गये पहली बार अंकुर ने पापा को इमोशनल देखा और कहा “पापा आप इमोशनल अच्छे नही लगते कठोर ही वयूटीफुल लगते हो “

पापा हंस दिये उधर बाप बेटे की बातें सुनकर मम्मी आंसू पोंछती हुई किचिन में हलुआ बनाने को चल दी। आखिर दायें हाथ ने  दायित्व  जो संभाल लिया था।

-अनुज सारस्वत की कलम से

(स्वरचित)

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