छलावा – शिव कुमारी शुक्ला : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi : आकाश जैसे ही घर में घुसा उसे जोर जोर से बोलने की आवाज सुनाई दी। वह वहीं ठिठक कर सुनने लगा। अवनी माॅ को बुरी तरह से लताड़ रही थी और एक ही बात बार-बार दोहरा थी कि वह उन्हें इस घर में नहीं रहने देगी। वह उन के साथ नहीं रह सकती। विचारी आशा जी रो रो कर पूछ रही थी कि बहू तुम्हें

मेरे से परेशानी क्या है,क्यों नहीं रहने दोगी।

तभी आकाश जैसे ही अन्दर आता है अवनी कहती है इन्हें अभी का अभी वृद्धाश्रम में छोड़ कर आओ।

आकाश उसे समझानै की कोशिश करता है कि वह मेरी माॅ है ऐसे कैसे उन्हें वृद्धाश्रम में छोड़ सकते हैं।

अवनी- मैं कुछ नहीं जानती जल्दी से जल्दी इनकी वहाँ व्यवस्था कर दो।

आकाश- हाॅ कुछ समय तो दो।

अवनी शांत होती है और चाय बनाने चल देती है।

आकाश मन ही मन बहुत दुःखी हो रहा था कि जिस माॅ ने पिता के न रहने पर मां-बाप दोनों का फर्ज निभाया मुझे पालपोस कर इतना बडा किया पढा लिखा कर इस काबिल बनाया कि आज मैं अपने पैरों पर खड़ा हूं, अपना परिवार पालने में सक्षम हूँ तो माँ को इस उम्र में परायों के बीच कैसै छोड़ दूँ, क्या वे मेरे बिना रह पायेगीं।

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उसे समस्या का कोई समाधान नही मिल रहा था और इधर अवनी रोज अपनी जिद पर अड़ी थी। इसी बीच अपने ऑफिस के काम से उसे सप्ताह भर के टूर पर बाहर जाना पड़ा। अवनी ने इस मौके का लाभ उठाकर माॅ को वृद्धाश्रम में भेज दिया। वे रोती विलखती रहीं कि आकाश को तो आजाने दो पर उसने एक न सुनी।

लौटने पर आकाश ने घर में माँ को न देखकर पूछा माॅ कहाॅ हैं । अवनी ने उसे झांसा देकर बताया कि उनकी दो तीन सहेलीयाँ हरिद्वार जा रही थी सो वे भी जिद कर वहाॅ चली गईं ,अभी हफ्ते भर में लौट आयेंगी ।

जब आकाश ने ज्यादा पूछ ताछ की तो वह बोली में उन लोगों को नहीं जानती, माॅ ने जिद की तो मैंने भेज दिया। यह सारा वार्तालाप उनका सात वर्षीय बेटा सुन रहा था किन्तु अवनी ने उसे धमका दिया था कि पापा को इस बारे में कुछ न बताए, सो वह डर के मारे चुप था

जब हफ्ता बीत गया माँ ना आई तो आकाश को चिन्ता हो गई । अवनी ने उसको बड़ा खूब सूरत झांसा दिया था ऐसी सोच थी ,उसकी और वह अपनी सफलता पर खुश हो रही थी। किन्तु बेटा दीपू बहुत ही उदास रहता एवं हर समय भयभीत सा नजर आता।

आकाश जब भी माँ के बारे में पूछता वह झट कह देती माँ ठीक हैं कल फोन आया था। पर माॅ मुझसे बात क्यों नहीं कर रही है। काम की व्यस्तता के चलते वह ज्यादा कुछ नहीं पूछता। जब दो दिन और निकल गये, तब उसको चिन्ता हुई और वह अवनी से बोला मुझे माॅ का नम्बर दो जिस पर वह बात करती है, उन्हें तुमने कौनसा फोन दिया है।

अब अवनी गोलमाल जवाब दे रही थीं कि उन्होंने पडोस में, किसी का फोन लेकर बात की थी। जब आकाश ने कड़ाई से पूछा कि किसके यहाँ फोन आया था। अवनी कोई स्पष्ट उत्तर नहीं दे सकी, तब आकाश को उस पर शक हुआ।

वह बोला ठीक है मुझे तुम उनका पता दो मैं शाम की गाडी से हरिद्वार के लिए निकल रहा हूँ। कहीं बीमार न हो गईं हों।मेरा मन बहुत बैचेन हो रहा है। और उनके नाम पता भी बताओ जिनके साथ वो गईं हैं, मैं उनके परिवार से भी मिलता हूं, जाकर।

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अब अवनी कुछ देर चुप रहकर बोली मेरे पास किसी का नाम पता कुछ भी नहीं है।

आकाश-फिर ऐसे कैसे तुमने माँ को उन अंजान लोगों के साथ जाने दिया। तुम मुझसे फोन पर भी तो पूछ सकती थी।

अवनी निरूत्तर थी।

वह शाम को निकलने की तैयारी करने लगा। दीपू चुपचाप सब देख सुन रहा था। वह जानता था कि दादी वृद्धाश्रम में है किन्तु माॅ के डर से चुप था ।

जैसे ही उसके पापा घर से बाहर जाने लगे वह उनके साथ हो लिया ।रास्ते में पापा को रोक कर उसने पूरी बात बताई कि दादी वृद्धाश्रम में है और मम्मी के डर से मैं चुप था । वह पापा को लेकर वृद्धाश्रम में गया जहाॅ उसकी दादी थीं। वहाॅ माॅ को बगीचे में उदास बैठा देखकर आकाश का कलेजा मुंह को आ गया। वह दौड़कर उनके पैरों में गिर गया और फफक फफक कर रोने लगा, दीपू भी अपनी दादी से लिपट गया। दादी घर चलो आपके बिना मुझेअच्छा नहीं लगता।

माॅ मुझे माफ कर दो सारी गल्ती मेरी ही जो मैंने अवनी की बातों पर भरोसा किया, अब ऐसा नहीं होगा। न रहेगा बांस न बजैगी बांसुरी। आज अभी जाकर मैं उसे उसके घर भेज दूँगा। माँ प्लीज उठो अपने घर चलो।

वह माॅ को लेकर घर आ गया। माॅ को देख कर अवनी अचंभित हो गई। कि आकाश को वृद्धाश्रण का पता कैसे चला ।दीपू के मुस्कराते चेहरे को देख अवनी समझ गई कि यह सब दीपू का ही करा धरा है। वह दीपू को चांटा मारने ही वाली थी कि आकाश ने फूर्ति से उसका हाथ पकड़ लिया और चिल्ला कर बोला अभी इसी वक्त तुम मेरे घर से चली जाओ ,मैं ओर मेरा बेटा माँ के साथ ह॔सी खुशी रह लेंगे, अब यहाँ तुम्हारे लिए कोई जगह नहीं है।

यह सुन अवनी सकते में आ गई अपने किए की माफी माँगने लगी, किन्तु आकाश ने उसकी एक न सुनी।

तब माॅ ने दोनो के बीच दखल दे आकाश को उसे माफ कर देने के लिए बोला। बेटा घर की बहु को ऐसे नहीं निकालते उसे क्षमा कर दो। गल्ती इंसान से ही होती है उसे एक मौका मेरे और दीपू की खातिर दे दो। वह तुम्हारे बच्चे की माॅ है ,तुम्हें न सही बच्चे को माँ की जरूरत है।

अवनी माँ के पेरों में गिर माफी मांग रोने लगी अपने जिस झांसे की सफलता पर फूली नहीं समा रही थी , जो उसकी नजरों एक खूबसूरत झांसा था उसी पर अब उसे पछतावा हो रहा था।

शिव कुमारी शुक्ला

स्व रचित मोलिक एवम अप्रकाशित

 

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