Moral Stories in Hindi : सौम्या की शादी को अभी चार माह ही हुए थे। फिर भी उसने एक बात अच्छे से जान ली थी कि उसकी सासूमाँ दूसरी औरतों की तरह नहीं हैं और बहुत अच्छी हैं।हनीमून से आने के बाद सौम्या को भी ऑफिस जॉइन करना था। पहले ही दिन जब सौम्या ऑफिस से आई तो सासू माँ ने पहले पानी, फिर जूस और चाय के साथ घर के बने हल्के फुल्के स्नैक्स खिलाए।
सौम्या का पति गौतम उसके आने के कम से कम एक घंटे बाद आया। तो सौम्या जैसे ही गौतम के लिए पानी जूस आदि लाने के लिए उठी तो सासूमाँ बोली “थककर आई हो, आराम से बैठो। मैं लाती हूँ चाय नाश्ता। तो सौम्या से पहले गौतम ही बोल पड़ा “माँ बहू पर बड़ा प्यार आ रहा है। मुझसे आफिस से आते ही काम करवाती थी और सौम्या यानि अपनी बहू को बिगाड़ो मत”।
तो …
सासू माँ बोली “जब मैं स्कूल से पढ़ा करके थकी -हारी घर आती थी तो तुम्हारी दादी और बुआ मुझे चाय तो दूर पानी तक नहीं पूछती थी। और ऊपर से अपने लिए चाय नाश्ता बनाने को कह देती थी। उसके बाद रात का खाना और फिर सुबह की तैयारी। सुबह घर के सारे काम और सबका नाश्ता और
खाने की सारी तैयारी करके स्कूल जाती थी फिर स्कूल की नौकरी। वहाँ भी सारे दिन खड़े होकर पढ़ाना…न ढंग से खा पाती थी और न सो पाती।शरीर को भी आराम नहीं मिलता था, और तेरे पापा भी दादी की बातों में आकर जाने-अनजाने बहुत दुख देते और कहते -“ करती क्या हों स्कूल में ….. बस क्लास में कुर्सी पर बैठ कर पढ़ाना ही तो होता है। जब तू होने वाला था तो…. मैं बहुत बीमार हो गई थी और जैसे-तैसे मैं सब कर रही थी।
फिर एक दिन अचानक से सुबह नहाते समय मैं बाथरूम में गिर कर बेहोश हो गयी…उस पर भी तेरी दादी का कहना कि… “ सब नाटक हैं … मैंने भी तो… दस बच्चे पैदा किए हैं।”
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तब तेरे नाना – नानी अपने साथ ले गए थे। वहाँ जाकर आराम मिला और अच्छे खाने पीने से सेहत में सुधार हुआ। क्योंकि सिर्फ दवाई से कुछ नहीं होने वाला था। पाँच महीने बाद तुम्हारा जन्म हुआ।लेकिन तेरे पापा फिर भी नहीं सुधरे। तेरे पापा और दादी की नित्य नयी पसंद और फ़रमाइश का ख़ाना बनाती।कभी-कभी नौकरी छोड़ने का मन भी करता… लेकिन तेरे होने के बाद बढ़ते खर्च और पापा पर बुआ की शादी का क़र्ज़…मैं कभी नौकरी छोड़ ना पायी। मैंने सारी जिंदगी जो दुख भोगा, वो मैं अपनी बहू को नहीं देना चाहती इसीलिए तुम्हें बचपन से ही सारे घर के काम भी सिखाये ताकि…. मेल वाला ईगो तुझ पर हावी ना हों…. बेटा! इसके लिए भी पापा-दादी से चार बातें सुनती लेकिन कुछ ना कह पाती।
बेटा! आज के आधुनिक युग में पति-पत्नी दोनों ही नौकरी करते हैं…. दोनों ही मेहनत करते हैं…. इसीलिए तू भी कान खोलकर सुन ले! बहू का साथ निभाना और हर छोटे-बड़े काम में उसकी मदद करना क्योंकि जिस पर बीतती है ना….उसी को पता चलता है। मैं तेरे पापा और दादी को तो ना बदल सकी… लेकिन मैंने अपने आप को बदला और समय के साथ चली। बेटे के साथ – साथ बाहर काम करते हुवे बहू भी तो थकती होगी। काश! यह एहसास तेरी दादी को भी होता।
संध्या सिन्हा
#सासू जी तूने मेरी कदर ना जानी!
बहुत अच्छी रचना
Absolutely