चलो दिलदार चलो चांद के पार चलो – सीमा वर्मा

” चलो दिलदार चलो चांद के पार चलो”

‘ तनूजा, तनू…जा कहां गई यार मुझे आज चाय नहीं पीनी है। चलो सुबह की सैर पर चलते हैं ‘

आदतन बड़बड़ाते हुए अनिल ने बिस्तर की दूसरी तरफ रखे तकिए पर हाथ डाला ,

‘ उंह कहां गई यार … कल करवा चौथ है ना चलो इस बार मैं भी तुम्हारे साथ फास्ट रखता हूं।

कुछ तो बोलो क्या सुबह -सुबह ही मौन व्रत ले लिया है ?

अच्छा समझ गया जब तक गिफ्ट का जान नहीं लोगी मुंह नहीं खोलोगी ‘ कहते हुए अनिल ने अपनी एक टांग तनूजा पर चढ़ाने की कोशिश की तो टांग खाली पड़े बिस्तर पर जा गिरी।

अनिल झट से उठ कर बैठ गया उसे याद आया तनूजा तो उससे रूठ कर बहन के घर चली गई है।

उसकी पूरी मस्ती सारी खुमारी एक झटके में टूट गई वह बिस्तर पर ही सिर पर हाथ रख कर बैठ गया।

अभी उस दिन की तो बात है जब उसके रोज-रोज घर देर से आने पर टोकने के कारण उसने तनूजा को झिड़क दिया था,

‘ खुद तो घर पर बैठी रहती हो , तुम आफिस के टंटे-संटे क्या जानो?’

दिन भर कितनी मारामारी मची रहती है ‘ बस इतनी सी बात और तनू उसकी प्यारी तनू उससे रूठ कर बहन के यहां जा बैठी ,




‘ ठीक है फिर संभालो खुद और अपने घर को मैं चली दीदी के घर वहीं जीजा का मुख देख कर व्रत खोल दूंगी ‘

ऐसी धमकियां तो वह बार-बार देती है लेकिन इस बार तो सच में चली गई है। उस समय तो उसको असीम शांति महसूस हुई लेकिन अब उसकी कमी कितनी खल रही है।

आख़िर कितना ख्याल रखती है तनूजा मेरा उसकी टोका टाकी नाराज़गी में भी उसका प्यार छिपा रहता है।

अभी जा कर उसको ले आता हूं। क्यों कि उसके बिना मेरा और मेरे बिना उसका औचित्य ही क्या है हम दोनों एक दूसरे के बिना अधूरे हैं ‘

यही सोचता हुआ उसको मनाने के लिए उसने फोन उठा कर नम्बर लगाया ही था कि दरवाजे की घंटी बज उठी।

‘ उफ़ इतनी सुबह कौन आ गया ? ‘

उसने झल्लाते हुए दरवाज़ा खोला तो देखा सामने तनूजा उसकी प्रिया खड़ी है। दरवाजा खोलते ही वह उससे लिपट गई,

‘ डियर मुझे तो रात में नींद ही नहीं आती तुम तो मजे में सो रहे दिखते हो ‘ कहती हुई वह अंदर आ गई।

फिर पूरे घर को घूम कर देखा और पलट कर अनिल से बोली,

‘ क्या यार अनिल घर को इतना  बेतरतीब कर के छोड़ दिया है ‘

तुमसे तो कुछ काम भी नहीं होता है तुम मुझको नौकरानी समझते हो … ब्ला … ब्ला वह और कुछ बोलती इसके पहले ही अनिल ने उसे खींचते हुए अपनी आगोश में लेकर उसके मुंह अपने होठों से बंद कर दिए ,

‘ तुम क्या जानती हो ?  तुम्हारे बिन मैं प्यासे बादल की तरह और बिन फूल के मंडराते भंवरे की तरह हूं मेरी जान चलो आज हम मिल कर व्रत रखेंगे ‘

उसकी गिरफ्त से  जबरन खुद को छुड़ाती तनूजा अपने होंठ पोछती शर्माती हुई कह उठी ,

‘ चलो दिलदार चलो चांद के पार चलो ‘ हुं…हं तारीफ़ तक तो ठीक से करनी नहीं आती और सुबह-सुबह ही शुरू हो गये।

चलो पहले चाय पीते हैं, फिर कल की सरगी की तैयारी भी तो करनी है।

सीमा वर्मा / नोएडा

 

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