अब अपमान  सहन नहीं होता राजू के बापू  – मीनाक्षी सिंह

गीता – माँ जी कितनी बार कहा हैँ आपसे ये रानी विक्टोरिया की तरह साड़ी जमीन पर लहराते हुए मत चला करो ,,अब आपके पति नहीं हैँ जो नई-  नई साड़ी रोज लाकर दे आपको ! इतनी गंदी हो जाती हैँ ! कितना साबुन खर्च होता हैँ इसे धुलने में ! आपको अन्दाजा भी हैँ ! कौन सा कमाके लाना पड़ रहा हैँ ! रोज दिमाग खराब हो जाता हैँ आपका ये फूहड़पन देखकर ! जाहिल गंवार हैँ आप !

राजवती जी – बहू ये आदत सालों पुरानी हैँ इस मरने की उम्र में क्या ही जायेगी ! इनको बहुत अच्छा लगता था मेरा इस तरह साड़ी लहराकर चलना ! कहते थे बिल्कुल महारानी लगती हैँ ! साफ तो मैं ही करती हूँ बहू ! साबुन के पैसे इतने तो मैं दे ही देती हूँ हर महीने !

गीता – हाँ हाँ ,,कह तो ऐसे रही हैँ जैसे लाखों रूपये हर महीने देती हैँ हमें ! साढ़े तीन हजार रूपये मैं आपकी दवाई ,च्यवांप्राश ,कपड़े ,आपके खाने पीने का खर्चा देखें कि साबुन और आपके शौक श्रिंगार ! बोल तो ऐसे रही हैँ जाने कितना एहसान कर रही हैँ हम पर ! अब मेरे पास बहस का टाइम नहीं है ! जाईये आज कलिया नहीं आयेगी बरतन साफ करने ! जब तक मैं बाजार से आऊँ बरतन कर देना ,झाडू लगा लेना ,सब्जी काट के रख देना ! समझी कि फिर से बताऊँ ! पिछली बार की तरह सब काम अधूरा छोड़कर चारपाई मत पकड़  लिजियेगा !

राजवती जी – बहू मैने काम की वजह से आराम  नहीं किया था ! मेरी कमर में असहनीय दर्द था ,,बी पी भी बढ़ गया था !

गीता – बहाने बनाना तो कोई आपसे सीखे ! चलिये अपना काम कीजिये ! और हाँ  आटा ज्यादा मत लगा देना ,,सुबह की 4 रोटी रखी हैँ आपके लिए !

राजवती जी बिना कुछ कहे अपने पल्लू से आंसू पोंछते हुए किचेन में बरतन मांजने लगी ! सोचने लगी ! राजू के बापू ने रानी की तरह रखा उन्हे ! मजाल हैँ कभी किसी भी बच्चें ने उनके सामने मुझसे ऊँची आवाज में बात भी की हो ! जब शाम को काम से वापस आते तो खोये वाली मिठाई ज़रूर लाते ! इतनी इतराती थी मैं अपनी किस्मत पर ! लाखों कम्बल ,रजाई ,शाल हर साल गांव वालों को बांटते ! वही राजवती जी को आज एक फटी हुई रजाई मिली हुई हैँ ओढ़ने को ! उसमे भी पैर बाहर आ जाता था ,,ज़िसे किसी तरह सिलकर गुजारा कर रही थी !




तभी अचानक अपने नाती शुभम की आवाज से वो वर्तमान में वापस आयी !

शुभम – दादी ,देखो मैं क्या लाया हूँ आपके लिए ,,खोये की मिठाई !! आपकी फेवरेट हैँ ना ! दादा जी हमेशा लाते थे आपके लिए !

राजवती जी -अरे  मेरे लल्ला ,,तुझे कहाँ से मिल गयी ये खोये की मिठाई !

शुभम – अरे दादी ,,वो ना नानू आये है  ,,वही लेकर आये हैँ !

राजवती जी – तो तू मुझे क्यूँ दे रहा हैँ ,,तेरी मम्मा ने तुझे दी होगी ना खाने को !

शुभम – दादी आपको तो पता हैँ मैं मीठा नहीं खाता ज्यादा ! ये तो इतनी सारी हैँ ! आप नहीं लोगी ,,ले लो ना थोड़ी सी !

बालहठ के सामने राजवती जी नतमस्तक हो गयी ! वैसे तो ये उनकी पसंदीदा मिठाई थी ! बस थोड़ा सा मुंह में मिठास घुली ही थी  कि बहुरानी गीता आ धमकी !

गीता – तेरे नाना क्या इसलिये ही इतना पैसा खर्च करके तेरे लिए खाने को लाते हैँ  कि तू ऐरे गैरों को खिलाता फिरे !

गीता ने तुरंत राजवती जी के हाथ से मिठाई छीन ली !

गीता – आप क्या करेंगी खाकर ! इस से अच्छा तो मेहमानों को खिला दूंगी ! आपकी भी आदत बिगड़ रही है दिन पर दिन ! कानखोलकर सुन लिजिये आज के बाद अगर शुभम से कोई भी चीज चोरी से  मंगवायी  तो मुझसे बुरा कोई नहीं !




शुभम – मम्मा ये तो पापा की मम्मा हैँ ,,आप मेरी दादी से ऐसे कैसे बात कर सकते हो ! इन्होने चोरी नहीं की ! मैने दी हैँ इन्हे मिठाई ! दादी ने नहीं मंगायी  !

गीता –  ज्यादा आया दादी दादी करने वाला ,,ज्यादा जबान चलने लगी हैँ तेरी बूड्ढों के साथ रहकर ! जा अपना होम वर्क कर !

राजवती जी पल्लू से आंसू पोंछती हुई अपनी टूटी हुई चारपाई पर आकर बैठ गयी ! पति की तस्वीर से घंटों बाते करती रही ! बोली – राजू के बापू अब तिरस्कार सहन नहीं होता ! पूरा जीवन बच्चों की परवरिश में गुजार दिया हमने ! उसका ये सिला मिला  हैँ हमें !

पर अब नहीं ! अब तिरस्कार सहन नहीं !

मन में कुछ प्रण लिए राजवती जी सो गयी !

अगली सुबह होते ही गीता चिल्लायी ! मम्मी जी ये क्या अपने आज झाडू भी नहीं लगायी ,ना चाय बनायी ना नाश्ता ! कितना समय हो गया हैँ ! क्या हो गया हैँ आपको !

राजवती जी – मुझे कुछ नहीं हुआ ! मैं सास हूँ और ये घर मेरा और मेरे पति का है ,ये एहसास हो गया है मुझे ! तुम लोग इस घर से जा सकते हो !अगर आज ही ये घर खाली नहीं किया तो कल पुलिस को बुलाऊंगी !

गीता और राजू राजवती जी का चेहरा ही देखते रह गए !

राजवती जी का फैसला अडिग था ! राजू और गीता किराये के घर में रहने लगे ! शुभम आ जाता हैँ दादी के पास रोज ! उसे वो तरह तरह के पकवान बनाकर खिलाती हैँ ! और घंटों उस से बैठकर बातें करती हैँ !

पाठकों ,,राजवती जी का फैसला गलत था य़ा सही बताईयेगा ज़रूर !!!!

स्वरचित

मौलिक अप्रकाशित

मीनाक्षी सिंह

आगरा

 

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