फिर विरोध क्यूँ – गुरविंदर टूटेजा

    स्वाति का आज मन नहीं लग रहा था…बस बार बार संजय का चेहरा सामनें आ रहा था कि कैसे इतनी छोटी सी उम्र में ही एक्सीडेंट में वो चला गया विश्वास नहीं हो रहा था किअब वो इस दुनिया में नहीं हैं…आँसू रूकने का नाम नहीं ले रहे थें…!!!!

  संजय स्वाति के चाचा का बेटा था…बचपन साथ में गुज़रा था…बहुत सीधा व दिल का बहुत सच्चा था…प्यारी सी मुस्कान लिये हँसता रहता था…फिर हम बड़े हो गये…रिश्तों  में दूरियाँ आ गयी…मिलना-जुलना बंद हो गया…मन-मुटाव हो गये…बस यही तस्सली थी कि कोई कहीं भी रहें बस

 खुश रहें…पर आज इस खबर ने स्वाति को हिलाकर रख दिया था…!!!!

  जब से पता चला बस फोन पर ही बात हो रही थी…सब सदमें में थे जिसने सुना यही बोल रहा था कि…क्या होगा अब बच्चें छोटें हैं..सही में बहुत बुरा हुआ…फिर किसी का ये प्रश्न कि तेरा तो आना-जाना नहीं हैं

तो तू तो नहीं जायेंगी..??

  स्वाति ने कहा…मैं जाऊँगी..बिल्कुल जाऊँगी…!!

मुझे तो ये लगता है तुझे नहीं जाना चाहिए..उन्होंने इतनें फंक्शन कियें तुझे बुलाया क्या..??और ये राय बहुतों की थी कि नहीं जाना चाहिए…!!!!

  शाम को निखिल ऑफिस से आये तो  स्वाति बहुत रोई तो उन्होंने कहा कि अभी तो नहीं जा पायें हम चलेंगे जरूर तुम बेटे को बोलकर टिकट करा लेना…!!!!

  स्वाति ने बताया कि मैंने जाने का बोला तो कोई कोई विरोध भी कर रहा था कि हमें नहीं जाना चाहिए…!!!!

 निखिल ने कहा हम चलेंगे किसी के दु:ख में ये नहीं देखतें कि… वो कैसा है…!!

  सही हैं निखिल ये तो पुरानी कहावत भी हैं कि किसी की खुशी में जाओ या ना जाओ पर दु:ख में जरूर जाना चाहिए…फिर संजय तो इतना अच्छा  था…आज मैं उनके दु:ख में जा रही हूँ तो…फिर विरोध क्यूँ…????




 

“न्यौता खुशी में दिया जाता है…

दु:ख में तो साथ दिया जाता है..!!!!

सब भूलाकर किसी दु:ख में शामिल हों…

फिर उसका विरोध क्यूँ…????

#विरोध

समाप्त 

 रस्में

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  अभी पेपर देकर घर आई ही थी  कि चाचा-चाची ने रिश्ते की बात चला दी और देखना दिखाना हुआ पिकीं की शादी भी फिक्स हो गयी…!!!!

कितने ख़्वाब थे उसके और पढ़ना चाहती थी पर माँ-बाप तो थे नही जो समझते उसको चाचा को तो बला टालनी थी…!!!!

   सच में शादी की एक एक रस्म उसे एक टीस दे जाती थी…जब मेंहदी लग रही थी तो विदाई के गाने गा रहे थे तो वो चुपचाप मेंहदी लगवाती हुई सुन रही थी….तभी कजिन दीदी बोली…बड़ा पक्का मन है एक आँसू भी नही आया…मैं सोच रही थी क्यूँ दिखाऊँ अपना दर्द जो कभी किसी को समझ नही आया…!!!!

 रस्में चलती रही किसी के सवाल पर सोच में पड़ गयी कि….किसकी ज्यादा याद आती है…मम्मी की या पापा की….निशब्द सी मैं सोचती कि…किस छोर से खुशी आती है किस छोर से जाती कैसे समझाऊँ ज़माने को मुझे तो दोनो की याद एक सी आती है….!!!!

   वैसे प्यारा सा एहसास लिये साथ तो सब थे….आज फेरों के लिये गुरुद्वारे में आ गये थे…माँ-बाप की जगह चाचा-चाची खड़े थे  फिर सोच रही थी कि क्या वो आगे भी मेरे साथ खड़े होगे…या सिर्फ रस्मों तक ही ये बंधन बँधें होगे…!!!!

शादी हो गयी अब विदाई की बारी थी….रूके हुये आँसूओं का सैलाब बह गया…..पर उस समय दिल धक से रह गया जब चाचा ने कहा…..कि अब बहुत हुआ देर हो रही है जल्दी करो….बस दिल में एक यही बात आई कि विदा तो दिल से कर देते…..फिर तो हमेशा के लिये हो गयी मायके कहा पिकीं की विदाई…..ये आखिरी रस्म जरूर उसने रोकर निभाई….!!!!!

कितना पक्का मन है एक आँसू ना आया…

कितने आराम से इन शब्दों को…

मुझ पर से वार दिया गया…!!!!

सोच रही थी कि क्या बोलूँ….

कि कितने ही आंसूओं को मेरे अंदर…

खामोशी से सँवार दिया गया…!!!!

समाप्त 

 

**बटुआ**

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गौरव अपनी दादी का बहुत लाडला था…रोज स्कूल से आते ही वो अपनी दादी के पास जाता तो दादी उसे अपने बटुये से  दस रू. पर देती जरूर थी…पर अपने बटुये को किसी को हाथ नही लगाने देती थी….!!!

समय बीतता गया व गौरव अब पच्चीस साल का हो गया और उसकी नौकरी भी लग गयी दस लाख सालाना….नौकरी के लिये उसे मुम्बई जाना पड़ा…उसे गाँव व दादी की बहुत याद आती थी….!!!!

आज वो गाँव जा रहा था… सबसे पहले वो दादी के कमरे में गया पैर छूकर उसने हाथ आगे बढ़ा दिया…दादी हँसते हुये बोली….अब मैं क्या तुझे दूँगी…अब तो तेरा बटुआ भारी है…!!!!!

गौरव ने बोला तो दादी आज तो बटुआ बदल लेते है…आप मेरा बटुआ ले लो व मुझे अपना दे दो…!!!!

दादी की आँखों में आँसू आ गये…वो बोली बेटा…तूने इतना कह दिया वही मेरे लिये बहुत है मैं इस उम्र में अब पैसे का क्या करूँगी….बस तुझे ज़िन्दगी में कोई कमी ना हो यही आर्शीवाद है…!!!

फिर अपना बटुआ खोलकर उसमें से दस रू.निकालकर गौरव को देते हुये बोली…ये बरकत के है हमेशा अपने बटुये में रखना…!!!

गौरव दादी के गले से लग गया व ठिठौली करते हुये बोला…..आपने अपना बटुआ फिर भी नहीं दिया ना….!!

सुना है ज़िन्दगी में….

बरकत की बहुत अहमियत है…!!!!

बड़ों का आशीर्वाद हो तो…

वही ज़िन्दगी की सबसे बड़ी बरकत है…!!!!

समाप्त 




 

 सीख 

आठ वर्ष की रिंकी रोते हुये घर में घुसी…रीता ने कहा….क्या हुआ…?????

रिंकी बोली मम्मा हम खेल रहे थे तो मैं जीत रही थी तो आशू ने मुझे चाँटा मारा और खेल से भी भगा दिया…!!!!

रीता ने उसे समझाया और कहा कि ऐसे डरकर हार जाओगी तो ज़िन्दगी में कभी आगे नही बढ़ सकोगी व जीत भी नही पाओगी….!!!!!

रिंकी डरते डरते वापस वही गयी जहाँ सब खेल रहे थे वो बोली….मुझे भी खेलना है….!!!!

आशू आगे आया व बोला अभी समझाया समझ नहीं आया क्या..????

सब समझ में आया अब तुम समझो की मुझे खेलना है….!!!!

आशू फिर तुनककर आगे आया तो अब रिंकी ने जोरदार चाँटा आशू को जड़ दिया….सभी अवाक रह गये…;;;;;;;;

अब रिंकी ऐसे घर में आयी जैसे कोई जंग जीत ली हो…उसे खुश देखकर रीता भी मंद-मंद मुस्कुरा रही थी…!!!!

रीता की यही सीख तब पूरी तरह से कारगर सिद्ध हुई जब रिंकी कॉलेज में आयी….एक बार वो जब घर आ रही थी तो उसकी सहेली का घर आ गया…..उसका घर यहाँ से आधा कि.मी. था तो वो पैदल आ रही थी कि दो लड़के उसका पीछा करने लगे व छेड़ने लगे   .रास्ता भी सुनसान था पहले तो वो डर गयी….;;;;

फिर उसे माँ की सीखायी सीख याद आई तो जब घर के पास पहुँच गयी तो उसने अपनी चप्पल उतारी और दोनो को जोर जोर से चिल्लाकर पीटने लगी शोर सुनकर सभी अपने घरों से बाहर आ गये….फिर तो उनकी जो पिटाई हुई कि बस पूछों मत….रिंकी के मम्मी-पापा भी शोर सुनकर बाहर आये तो…रिंकी ने बड़ी शान से पूरा किस्सा सुनाया व बोली मम्मा आपने जो बचपन में सीख दी थी आज उस सीख को अवार्ड मिला है…..!!!!!!

समाप्त 

गुरविंदर टूटेजा

उज्जैन (म.प्र.)

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