बुढ़ापे में बेटा हमारा सहारा बनेगा… मीनाक्षी सिंह : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi : हर माँ बाप की तरह कौशिक के माँ बाप के भी अरमान थे कि बेटा अच्छे से पढ़ जायें … चाहे उसे पढ़ाने के लिए सब कुछ ही क्यूँ ना बेचना पड़े….फिर बुढ़ापे में बेटा हमारा सहारा बनेगा…

करते भी क्या भानूजी पांच भाईयों में सबसे बड़े.. तीन बहनें …बस एक बहन और भानू जी का विवाह हो पाया था कि तब तक पिताजी दुनिया से विदा हो गए… पूरे परिवार की ज़िम्मेदारी ऊपर से अपने दो बच्चों की ज़िम्मेदारी भी भानूजी के कांधो पर आ गयी.. ज्यादा पढ़ भी नहीं पायें इसी वजह से… किसी तरह चाचा जी ने एक कारखाने में छोटी सी नौकरी दिलवा दी थी….

पर उनकी पत्नी सुषमाजी बहुत समझदार थी… मायके से बहुत ही सम्पन्न परिवार से थी… पर कभी भी अपने ससुराल की आर्थिक समस्या का ज़िक्र अपने मायके में नहीं करती थी…ना जाने कितनी बार ही उन्हे कभी देवरों की पढ़ाई के लिए, ननद की शादी में अपने जेवर गिरवी रखने पड़े….

एक बार भानूजी ने चुपके से सुषमा जी की डायरी पढ़ी थी जो उन्होने शादी से पहले लिखी थी… कि उनकी पत्नी को घूमने फिरने का, श्रिंगार करने का बहुत शौक हैं… ये भी लिखा था कि वो एक बार दुनिया से विदा होने से पहले अपने जीवनसाथी के साथ स्वीट्जरलैंड घूमना चाहती हैं… जो कि इस जन्म में तो शायद मुमकिन होता दिख नहीं रहा था …

जिस घर का मालिक दिन की दो वक़्त की रोटी का इंतजाम भी इतनी मुश्किल से कर पाता हैं उसके लिए पत्नी को विदेश घूमाना तो सपने जैसा था … भानू जी ने डायरी तो पढ़ ली पर सुषमा जी से कुछ भी कहने की कभी हिम्मत ना कर पायें… जिस पत्नी को श्रिंगार का इतना शौक है आज तक उसे उन्होने 2 रूपये का सामान लेते नहीं देखा..

मायके से य़ा कोई पूजा में जो सिन्दूर बिन्दी य़ा श्रिंगार का सामान देता उसी को सहेजकर रखती उसी को लगाती…. कभी आज तक मेरी सुषमा ने कभी हाट तक जाने की ज़िद नहीं की… मैने तो उसके सारे अरमान तोड़ दिये… इस बात का मलाल भानू जी को अभी तक था जब वो दोनों उम्र के 60वें पड़ाव पर थे… बैठे बैठे कुछ सोच रहे थे भानू जी तभी सुषमा जी चाय लेकर आयी बोली…. एजी. … क्या सोचने में लगे हो…

कुछ नहीं…. बस ऐसे ही…. सुनिये जी नाराज मत होना…

क्या फिर कौशिक को पैसों की ज़रूरत हैं… बेटी को तो ब्याह दिया पर ये कब तक मुझ पर निर्भर रहेगा… तब तक कौशिक भी आ गया…

पापा जरा … दस हजार रूपये देना..माँ ने तो बताया होगा आपको…

क्या काम आ गया तुझे इतने पैसों का??

विन्नी (बहू) ने अपने मायके में बोल आयी हैं कि हम दुबई घूमने जा रहे हैं… अब बताईये क्या करूँ मैं इतनी तंख्वाह तो हैं नहीं मेरी कि हर महीने घूमाने ले जाऊँ इसे… पर अब इज्जत की बात आ गयी हैं तो जाना पड़ेगा…. दीजिये जल्दी टिकेट करानी हैं .. तब तक विन्नी भी आकर खड़ी हो गयी…

भानू जी और सुषमा जी अपने बहू बेटे की चालाकी को अच्छे से समझते थे कि ये इनका हमेशा का हैं…

पर अबकी बार भानू जी कुछ और ही ठाने बैठे थे… बोले… जब तेरे पास पैसे हो जायें तब ले जाना बहू को… मैं सुषमा को स्वीट्जरलैंड लेकर जा रहा हूँ….

क्या ?? बहू विन्नी के मुंह से तपाक से निकला…

पापा आप सठिय़ां गए हैं… इस उम्र में घूमने ज़ायेंगे…

मम्मीजी को सोचना चाहिए… घर में बहू बेटे हैं और खुद विदेश घूमने जा रही हैं.. विन्नी बोली…

एजी… आप ये क्या बोल रहे हैं… हम क्या करेंगे जाकर… आप मजाक कर रहे हैं… हालांकि भानू जी के मुंह से अपने सपनों की जगह का नाम सुन सुषमा जी एक पल को तो चौंक गयी…

मुझे पता हैं री … तुझे स्वीट्जरलैंड घूमना हैं एक बार मरने से पहले मेरे साथ… परिवार की ज़िम्मेदारी , फिर कौशिक और शुभी की पढ़ाई , शादी इन सब में तू कभी अपनी मन की ना कह पायी…. पर मैं तो तेरा पति हूँ… मेरा भी कुछ फर्ज हैं तेरे प्रति …. हां बूढ़ा हो गया हूँ.. तुझे गोद में उठाकर बर्फ पर फोटो ना खिंचा पाऊंगा… पर तेरी हाथों में हाथ तो ले ही लूँगा….

आप भी ना …. सुषमा जी शर्मा गयी …

ये क्या चल रहा हैं… आप लोगों को शर्म नहीं हैं बिल्कुल… बहू बेटे के सामने कैसी बातें कर रहे हैं… विन्नी अच्छे परिवार से हैं क्या इज्जत रह जायेगी उसकी…

तेरी माँ बहू के परिवार से भी ज्यादा सम्पन्न परिवार से थी बेटा… ना जाने कितनी बार इसे मन मानकर रहना पड़ा … एक पत्नी को घूमाने की उसकी ज़रूरत की हर चीज लाने की ज़िम्मेदारी तेरी हैं… हमने तुझे पढ़ा दिया.. पालपोष दिया… हमारा फर्ज खत्म..

इतना बोल भानू जी सुषमा जी से बोले… मैने एफ डी तुड़वा दी हैं…. हमारा पासपोर्ट बनेगा अब…

आप भी…

अब बस तू चुपकर …

दोनों का पासपोर्ट बन गया…. सफेद रंग का कुर्ता पैजामा पहने बालों और मूंच्छों को काला किये भानू जी आज बिल्कुल जवान लग रहे थे.. सुषमा कहां हो… चलो टाइम होने वाला हैं निकलने का…

आई जी बस… शादी की गाजरी रंग की बनारसी साड़ी पहने, खुले हुए बाल… पूरा श्रिंगार किये आज सुषमा जी किसी अप्सरा से कम नहीं लग रही थी….

भानू जी की नजरें उनसे हट ही नहीं रही थी…

पता हैं जी बहू ने तैयार किया हैं मुझे…

तब तक बहू बेटा भी अपना बैग लेकर आ गए…

तुम लोग कहां जा रहे हो दुबई ??

नहीं पापा… आप और माँ के साथ स्वीट्जरलैंड… आप क्या अपने बेटे को इतना नालायक समझते हो.. आप तो जोश में चल दिये… हमारी क्या हालत हो ज़ाती आप लोगों का सोच सोचकर…

हड्डियों में जान नहीं चले स्वीट्जरलैंड घूमने अकेले…

पैसे कहां से लाया तू ??

फिर पापा वहीं … आपका बेटा हूँ.. इतना इंतजाम रखता हूँ… वो तो जब तक आप दे रहे थे तब तक नहीं सोचा…

अच्छा… बेटे… भानू जी ने कौशिक के कानों को पकड़ लिया..

चलिये पापा जी.. अभी तक माँ जी ने हमारे अरमान पूरे किये अब उनके अरमान पूरे करते हैं.. बहू विन्नी बोली… सुषमा जी ने विन्नी को गले से लगा लिया…

स्वरचित

मौलिक अप्रकाशित

मीनाक्षी सिंह

आगरा

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