बीमार होना, पड़ गया भारी – गीता वाधवानी

  आप सोच रहे होंगे, बीमार पड़ना कैसे भारी पड़ गया? देखिए दोस्तों, कुछ लोग ऐसे होते हैं जो काम नहीं करना चाहते और आराम करने के लिए बीमार होने का नाटक करते हैं और उस पर कमाल है कि बीमारी भी ऐसी बताते हैं जो सामने वाले को दिखाई ना दे जैसे कि पेट दर्द, सिर दर्द, लूज मोशन। अब आप ही बताइए कि यह बीमारी क्या दिखाई देती है। 

       मुझे तो सचमुच एक बार बीमार पड़ना इतना भारी पड़ गया कि पूछिए मत। अरे! यह क्या आप तो सचमुच ही चुप हो गए, पूछ ही नहीं रहे। आप मुझे या ना पूछे, मैं तो बताऊंगी। 

       तो हुआ यूं कि थोड़े दिन पहले मुझे शनिवार की सुबह से शरीर में दर्द, सिर में भारीपन लग रहा था। मैंने ज्यादा ध्यान नहीं दिया और काम में लगी रही। नतीजा, रात होते-होते तेज बुखार आ गया। बुखार ने शरीर को तोड़ कर रख दिया। कमजोरी इतनी कि मैं अब गिरी और तब गिरी। 

     ‌ मेरे पतिदेव जी ने अपनी मां और बहनों के होते हुए कभी रसोई में झांकना तक नहीं पड़ा। बहनों की शादी हो जाने के बाद मैं यानी इनकी पत्नी आ गई। बोले-“कोई बात नहीं चिंता मत करो। कल रविवार है। ऑफिस की छुट्टी है मैं सब संभाल लूंगा।” 

       यह बात एक ऐसा व्यक्ति बोल रहा था जिसे पाक कला का”प”भी नहीं आता था और जिसे यह भी पता नहीं था कि रसोई में चीनी और चाय पत्ती का डिब्बा कहां रखा है ? 

       खैर, रात को बुखार की गोली खाई जिससे कुछ खास फर्क नहीं पड़ा। सुबह डॉक्टर के पास जाकर 2 दिन की दवाई ली। रविवार को डॉक्टर सिर्फ सुबह के समय ही क्लीनिक में बैठते हैं शाम को उनकी कार्यशाला बंद होती है। 



       सुबह पति महाशय ऐसे जल्दी उठ कर आ गए, जैसे एक वीर योद्धा युद्ध पर जाने को तत्पर होता है। पहले उन्होंने अपने लिए एक कप दूध गर्म करके पिया और वह भी बिल्कुल फीका क्योंकि उन्हें चीनी नहीं मिली। मुझसे भी दूध के लिए पूछा तो मैंने कहा-“मुझे चाय पीनी है।”इतनी देर में हमारा 7 वर्षीय बेटा शुभम भी उठ कर आ गया। 

        मेरे पतिदेव से ज्यादा तो मेरे बेटे को रसोई के सामान के बारे में पता रहता है क्योंकि वह मुझसे बातें करते समय हमेशा नोटिस करता है कि मम्मी सामान कहां रख रही है। 

      अब पतिदेव चाय बनाने गए तो शुभम ने उन्हें चीनी और पत्ती के डिब्बे उठा कर दिए। अब तो आप समझ ही गए होंगे कि चाय कैसी बनी होगी। 

      थोड़ी देर बाद, जब मेड काम निपटा कर गई, शुक्र है वह काम पर आ तो गई वरना इधर मैं बीमार और उधर उसने की छुट्टी। 

     हां तो मैं कह रही थी की मेड के जाने के बाद बाप बेटा दोनों को भूख लग आई। अब नाश्ते में क्या खाएं? 

       पतिदेव ने स्कूटर उठाया और गायब। 15:20 मिनट बाद हाथ में पॉलिथीन लेकर प्रकट हुए। मैंने पूछा-“क्या लाए हैं?” 

     पति-“बेड़मी पूरी, आलू की सब्जी और मिर्च का अचार।” 



      इस समय मेरे पति सचमुच मुझे अपने बैरी पिया नजर आ रहे थे। मैं बीमार, मुझे खाना है खिचड़ी और दलिया और तुम  चटकारे लेकर बेड़मी पूरी और आलू की सब्जी खाओगे। एक बार खाने के लिए झूठ मुठ भी पूछा तक नहीं बेदर्दी ने। हां, शुभम ने एक बार पूछा-“मम्मा, थोड़ा सा लोगे?” 

        अपनी पेट पूजा करने के बाद महाशय को ध्यान आया कि मुझे भी नाश्ता खा कर दवाई लेनी है। 

       मैं बिस्तर से उठने लगी तो बोले-“क्यों उठ रही हो, आराम करो। मुझे बताओ नाश्ते में तुम्हारे लिए क्या बनाना है?” 

      मैंने कहा-“मुझे भूख नहीं लग रही ब्रेड के  दो पीस सेकने है।” 

बेदर्दी ने ब्रेड को सेक कर टोस्ट बना दिया और मैंने जैसे-तैसे चबा लिया। 

      अब श्रीमान फिल्म देखने बैठ गए और मैंने सोचा कि दोपहर के खाने के लिए कुछ बना लूं, उठी तो एकदम से चक्कर आ गया और फिर हिम्मत नहीं हुई। 

      दोपहर को मटर की चाट और कुलचे मंगाए गए। मैं सोच रही थी आज ही इनको सब कुछ चटपटा मंगा कर खाना है। मेरे मुंह में पानी आ रहा था पर खा नहीं सकती थी। 

      मुझसे बोले-“तुम्हारे लिए दलिया बना देता हूं नमकीन बनाऊं या मीठा।”मैं मन ही मन चिड़ रही थी कि पूछ तो ऐसे रहे हैं जैसे हर तरह का दलिया बनाना आता है। 

      फिर मैंने कहा-“नमकीन दलिया” 

पति बोले-“अच्छा, बस तुम यह बता दो कि उसमें क्या-क्या डालता है, बस फिर मैं बना लूंगा।” 

     मैंने कहा-“मुझे तो प्याज टमाटर वाला पसंद है।” 

      पति-“प्याज? ऐसा करो तुम यहीं बैठे बैठे प्याज काट दो, बाकी मैं कर लूंगा। फिर जितना टमाटर तुम्हें खाना हो, उसे भी घिस देना, बाकी मैं कर लूंगा। 

      शुभम बेटा ,बताओ दलिया कौन से डिब्बे में रखा है।” 

      शुभम-“(इशारा करता है) उस डिब्बे में ऊपर।” 

       धड़ाम! डिब्बे का ढक्कन खुल गया और सारा दलिया फर्श पर बिखर गया। फिर तंग आकर मैंने कामवाली बाई को फोन किया। वह आई उसमें रसोई साफ की। दलिया उठाकर पक्षियों को डाल दिया और मेरे लिए थोड़ी सी खिचड़ी भी बनाई। 

      मेरा मन कर रहा था कि 2 दिन की दवाई एक साथ खा कर जल्दी से ठीक हो जाऊं। बाई से मैंने रात का खाना बनाने के लिए भी कहा, लेकिन उसने कहा कि शाम को मेरे पास टाइम नहीं होता है। 

        अब एक बार फिर रात के खाने की चिंता। 

        पतिदेव ने पूछा-“क्या तुम्हारे लिए कुछ बना दूं?” 

       मैंने कहा-“नहीं, मुझे भूख नहीं है मैं एक कप गर्म दूध ले लूंगी।” 

        पतिदेव बिल्कुल निश्चिंत हो गए और पिज़्ज़ा ऑर्डर कर दिया। शुभम ने और इन्होंनें  मिलकर खूब मजे से पिज़्ज़ा खाया। 

      एक दिन बीमार होकर सिवाय चिंता के कुछ नहीं मिला, यहां तक कि आराम भी नहीं। 

मौलिक काल्पनिक 

गीता वाधवानी दिल्ली

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