भरोसा मतलब की पूंछ पकड़ कर आता है… – यामिनी अभिजीत सोनवडेक

आज के वक्त में, कहाँ फुर्सत होती है लोगों को अपने रिश्ते निभाने की और बिना कारण किसी से मुलाकात करने की, फिर भी विजया गाहे बगाहे अपने ससुरालियों को किसी पूजा या फिर किसी कार्यक्रम के उपलक्ष्य में बुलाती रहती थी, जो उसकी सासु माँ को कतई पसंद नहीं था, लेकिन कहती भी कुछ ना थी और कुछ करने का तो सवाल ही नहीं,

दो बहुओं वाली सास थी, लेकिन अनुभव और रूबाब के नाम पर कुछ ना था, उनकी जिन्दगी में…

जब विजया ब्याह कर आई थी तब से ही , सासु माँ अपेक्षाओं का भारी भरकम बोझा उस पर लाद दिया गया… रोज रोज की बातों में हमेशा यही बोलती अरे तेरी जेठानी ने इतना पढ लिख के भी नौकरी नहीं की, कम से कम तू तो कर….

हाय रे बेचारी विजया…

सासु माँ के रोज रोज के किस्से कहानियाँ सुनकर, शादी के तुरंत दो महीनों में नौकरी भी शुरु कर दी… अब उसकी हालत , बिल्कुल वैसी हो गयी कि – ना निगलते बने और ना उगलते बने !

 

घर का सब काम करके जाती थी और आकर फिर से घर के काम… समर्थ (विजया का पति )बहुत नेक और समझदार था,तो पत्नी का हमेशा सहयोग ही करता था,

कुल मिलाकर दोंनो का घर संसार सुखी चल रहा था…घर परिवार की पूरी जिम्मेदारी, दोनों ने सहर्ष ले ली क्योंकि विजया की सासुमाँ बहुत बार ये बात समर्थ और विजया को बोल चुकी थी कि तेरा बडा भाई तो घर में पैसा भी नहीं देता था और उसकी बीवी हर बात में मेरे मायके में तो ऐसा नहीं होता, वैसा नहीं होता बोलती रहती थी, साफ सफाई रखती थी लेकिन बाकी का कुछ नहीं किया मेरे हिसाब से…

और इन बातों के कपट में उलझ कर रह गये थे दोंनो,




पैसा भी कम ही बच पाता था और नयी शादी की रौनक तो गायब ही हो गयी थी कहीं,

समर्थ बेचारा कुछ अलग करता भी तो माँ के फिर से वही ताने कि अरे तेरे बडे भाई ने घर की, हमारी कोई जिम्मेदारी ना ली कम से कम तू तो समझ के ले।.

 

फिर से पूरी दुनिया का चक्कर लगा के वहीं पर आ जाते जहाँ से शुरूआत करते, असल समस्या तो तब आयी, जब विजया ने गर्भवती होने की वजह से नौकरी छोडी और कुछ समय बाद समर्थ की भी अच्छी खासी नौकरी चली गयी…अब परिस्थिती काटो तो खून नहीं जैसी हो गयी, मरता क्या ना करता, सोचकर समर्थ ने विजया को उसके मायके भेज दिया, अब तक घर वालों को खासतौर पर समर्थ के माता पिता को बहुत भरोसा था दोनों पर….लेकिन समय की करवट, अपना रंग दिखा रही थी, विजया और समर्थ को धीरे धीरे समझ आ रहा था कि हम और कैसे बचत कर सकते है लेकिन घर के इतर खर्चों पर सवाल करने से सासु माँ बिफरने लगी क्योंकि बात कुछ भी हो, उनसे किसी भी बात का हिसाब माँगने की हिम्मत खुद ससुर जी में ही नहीं थी तो बाकी का तो प्रश्न ही नहीं।.

 

यहीं से हालात बिगडने लगे, अचानक समर्थ और विजया पर लालच और संपत्ति हडपने की वजह से माँ बाप की सेवा कर रहे हो, ऐसे इल्जाम लगने लगे,

दोनों का दिल टूट गया, उदासी और निराशा ने घेर लिया दोनों के सुखी संसार को, लेकिन दोनों ही हिम्मत हारने वालों में से नहीं थे एक छोटे बच्चे की जवाबदारी भी थी उन पर….

अच्छे कर्मों का नतीजा, खुद की मेहनत और भगवान का आशिर्वाद ही था जो संकट का समय जा चुका था और समर्थ को फिर से बेहतर पगार की नौकरी मिल गयी थी, लेकिन विजया ने एक फैसला किया था जिसे उसके पति का भी पूरा साथ मिला,




एक दिन अचानक घर के आगे लोडिंग टेम्पो आकर रूका और दो लडको ने समर्थ और विजया के कहे अनुसार सामान बांधकर टेम्पो में रखना शुरु किया…ये सब नजारा देखकर सासु माँ बोल पडी – कहाँ जा रहे हो तुम लोग ?

समर्थ ने तो जैसे मौन ही धारण किया था माँ के शब्दों को सुनकर… हमेशा की तरह उत्तर विजया ने दिया,सासु माँ हमने निःस्वार्थ भाव से किया सब कुछ, लालची, धोखेबाज और कपटी है सुनकर हमारा कलेजा मुंह को आ गया ,बहुत बर्बाद की है हमने अपनी मेहनत की गाढी कमाई उन अपनों पर, जो बुरे समय में, हमें दो वक्त की रोटी भी ना खिला सके…।. अब किराये के घर में जा रहे है और एक दिन अपने घर  में भी जाएंगे, लेकिन आप जैसों की बातो की चालाकियों में कभी नहीं आएंगे…जैसे आपने ढेरों बातें सिखाई मुझे सास बनकर, और जीवन का कटाक्ष भी सिखा दिया हम दोनो को कि – भरोसा, मतलब की पूँछ पकड कर आता है…. अपने भविष्य के लिए सचेत और सावधान रहेंगे..और हाँ जितना भला बुरा बोलना है जिसको बोलना है बोल लेना, आपसे ही सीखा है सासु माँ – निर्लज्ज सदा सुखी… जब तक आपका मतलब सिद्ध हुआ तब तक भरोसा था और जब नौकरी गयी और अपनों की जरूरत आन पडी, तो भरोसा ही नहीं रहा, मेरा तो छोड ही दीजिए, खुद के बेटे का तो ख्याल किया होता…

दोनों निकल गये, एक प्रगतिशील सोच के साथ, अपने बच्चे को बेहतर भविष्य और सम्मान की जिन्दगी जीने के लिए, खुद का सम्मान बचाते हुए….आंकाक्षाओं , अपेक्षाओं के बोझ से आजाद होकर, और पीछे रह गयी सासु माँ जिनकी हालात ठीक वैसी ही थी, जैसै खिसयानी बिल्ली खंभा नोचे ,क्योंकि अब पूरा पैसा उनकी गांठ से जाने वाला था ।.

 

विजया और उसके पति के निर्णय से आप सहमत है, या नहीं, अवश्य बताएं

 

त्रुटि के लिए क्षमाप्रार्थी

 

आपकी,

याभिनीत

( यामिनी अभिजीत सोनवडेकर) 

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