बेरंग से रिश्तों में रंग भरने का समय आ गया है-मनीषा सिंह : Moral stories in hindi

झांसी से दिल्ली जा रही बस के पास एक बुजुर्ग महिला इधर-उधर नजरे दौड़ाते हुए पहुंची और कंडक्टर जो सभी यात्रियों का टिकट बना रहा था, से बोली बेटा यह बस दिल्ली तक ही जाती है ना?

” हां मां जी”! कंडक्टर में उस बूढी महिला के तरफ देखकर दूसरे यात्री से बोला अरे भैया 110 रुपएऔर लगेंगे 500 के नोट लेते हुए बोला।

 अरे मां जी आपको कहां जाना है?

 मुझे दिल्ली जाना है बेटा 1000 के नोट पकराते ,वो बुजुर्ग महिला इधर-उधर देखते हुए बोली।

 390 रुपए लौटाते हुए कंडक्टर बोला “मां जी”– अभी आप बाहर ही बैठो बस खुलने में 20 मिनट लग जाएंगे।

 नहीं मैं अपनी सीट पर ही जाकर बैठ जाती हूं कहते हुए वह फटाफट बस के सबसे पीछे वाली सीट के आगे वाली सीट पर बैठ गई ।

20 मिनट के बाद बस झांसी से दिल्ली के लिए रवाना हो गई।

 बस में बैठने के साथ ही वो बुजुर्ग महिला ने  राहत की सांस लेते हुए अपनी आंखें बंद कर ली।

“नाम कमला पुरा गांव इन्हें कमला काकी” के नाम से जानता था। 10 साल दिल्ली के अस्पताल में रहने के बाद यह अपने गांव झांसी आ गयी

 अब चुकी 10 साल का एक्सपीरियंस  की वजह से अब पूरे गांव  की बच्चे करवाने की रिस्पांसिबिलिटी कमला काकी पर आ गई थी ।  जब भी गांव में किसी के  यहां बच्चा होता तो कमला काकी के हाथ में  इंस्ट्रूमेंट बॉक्स होता और वो उनके घर पहुंच जाती ।

हाथ इतना मांझा हुआ कि बच्चा और जच्चा दोनों को कभी कोई परेशानी नहीं होती तभी तो पूरे गांव में उनकी डिमांड थी।

 कमला काकी ने अपनी पूरी जिंदगी अकेले गुजार दी। यानी उन्होंने कभी शादी नहीं की गांव के एक बेसहारा बच्चा सुनील को, उन्होंने गोद लिया तथा उसके भरण पोषण से लेकर पढ़ाने लिखाने तक  की पूरी  जिम्मेदारी उन्होंने अपने ऊपर ले ली।

 सुनील ने जब स्कूल पास कर लिया तब कमला काकी ने सुनील की उच्च शिक्षा के लिए  लखनऊ भेज दिया।

 लखनऊ में पढ़ाई पूरी करके दिल्ली के किसी प्राइवेट हॉस्पिटल में रिसेप्शनिस्ट का जॉब करने लगा।

 सुनील ने अपनी मां को कई बार दिल्ली आने के लिए दबाव डाला पर हर बार कमला काकी ने यह कह कर टाल दिया कि मेरे बिना ये गांव वाले रह नहीं सकते। 

फिर भी सुनील की कोशिश जारी रहती कि उसकी मां अब सब कुछ छोड़कर वापस दिल्ली आ जाए। पर आज ऐसा उनके साथ क्या हुआ था कि, इनको अपना गांव छोड़कर पुण: दिल्ली जाना पड़ा

आईए जानते हैं —-!

गांव के जमींदार हरिवंश राय जी के

की  बहू ने एक बार  फिर यानी पांचवी बार गर्भ धारण किया।

हर बार उसकी डिलीवरी काफी कॉम्प्लिकेटेड हुआ करती तो जब चौथी बार गोमती ने गर्भधारण किया था तब कमला काकी ने  डिलीवरी के लिए मना कर दिया  क्योंकि, कैस काफी जटिल था। चुकी , कमला काकी पर विश्वास और इनके इतने सालों का अनुभव होने के कारण हरिवंश राय जी ने कमला काकी को बोला “कमला— ! इस बार भी डिलीवरी  तू ही करेगी! मुझे तुझ पर पूरा भरोसा है!”

भगवान की कृपा देखिए डिलीवरी अच्छी तरह से घर में ही हो गई और इस बार भी ( चौथी बार) लक्ष्मी का ही आगमन  हुआ । बेचारी गोमती की स्थिति इतनी खराब  देखकर काकी ने अब गर्भ धारण करने से बिल्कुल ही मना कर दिया बोली—” भगवान ने इतनी प्यारी- प्यारी बेटियां दी हैं इन्हें ही पढ़ा लिखा और बड़ा आदमी बना”। पर गोमती की सास शारदा जी ने, पोते की चाह रखते हुए घर में क्लेश मचा दी ।

उनका कहना था कि अगर तुम “पोता” नहीं दे सकती तो परशुराम की दूसरी शादी करवाने में मेरी मदद कर।

” परिवार का दबाव” तथा” पति की चुप्पी” की वजह से इस बार भी गोमती को  पांचवीं बार गर्भधारण करना पड़ा ।

 इधर ठीक इसके साथ ही गांव में एक दूसरा आदमी ” हरिया के घर भी उसकी घरवाली सुनैना ने पहली बार गर्भधारण किया इन दोनों के समय में दो-चार दिन का आगे पीछे था।

  कमला काकी के मन में गोमती के लिए काफी दर्द भरा था। कभी-कभी तो उनको यह लगता कि इस बार मैं इसकी डिलीवरी एकदम नहीं करूंगी क्योंकि इसका कारण हर बार गोमती का गर्भधारण मे आई कॉम्प्लिकेशंस थी । 

 अगर इस बार भी बेटी हुई तो बेचारी गोमती की जिंदगी तो नर्क हो जाएगी! 

नहीं- नहीं मेरे रहते ऐसा नहीं हो सकता मैं ऐसा होने नहीं दूंगी सोचते- सोचते अचानक से कमला काकी उठ खड़ी हुई ।  “हे भगवान”—! मुझे शक्ति देना कि— “उनके बेरंग से रिश्ते में मैं रंग भर सकूं”!

इस बार कमला काकी ने मन ही मन एक फैसला लिया  और समय आने का इंतजार करने लगी धीरे-धीरे गोमती का नोवा महीना लग चुका था और उसकी दिल की धड़कन भी तेज होने लगी थी जब काकी उसे चेक करने आई तो गोमती कमला के कंधे पर सर रखकर रोने लगी बोली—-” काकी  बस इस बार के बाद मैं इनको शादी के लिए इजाजत दे दूंगी।” कमला ने  गोमती को सांत्वना देते हुए बोला की——  ऊपर वाले पर भरोसा रख सब ठीक  हो जाएगा!

“इस बार डिलीवरी मैं घर में ना करवा कर गांव के अस्पताल में ही करवानी की सोच रही हूं—-। कमला काकी  हरिवंश राय जी से बोली ।पर कमला—- अगर घर पर ही हो जाता तो—- सही रहता!

 

ना जी ना– इस बार वाली डिलीवरी में जच्चा के साथ-साथ बच्चा को  भी खतरा है,! मैं कोई रिस्क ना लेना चाहूंगी!

 पोते की चाह में हरिवंश जी तैयार हो गये ।

इधर काकी ने, हरिया की घरवाली की डिलीवरी का भी प्लान अस्पताल में ही कर लिया यह बोलकर की दोनों पेशेंट को मैं अच्छी तरह से देख सकूंगी। 

काकी  यह सोचकर प्लान बना रही थी कि अगर भाग्य ने साथ दिया तो दोनों का भला हो जाएगा। 

 इतने सालों के अनुभव के कारण कमला समझ गई थी कि हरिया के घरवाली को लड़का ही होगा।

 फिर भी भगवान के ऊपर सब कुछ था।

 वह तो सिर्फ दोनों का भला चाह रही थी।

 समय आ गया था गोमती अस्पताल में प्रसव पीड़ा से पीड़ित हो रही थी और इधर सुनैना को भी काकी ने चेकअप के लिए अस्पताल बुला लिया और हरिया से  कहा —-इसकी भी डिलीवरी आज ही करनी होगी!

 सुनैना की डिलीवरी करवाने के लिए उसे पेन की दवा देनी पड़ी।

 इधर परशुराम तथा शारदा जी को ये कहकर घर भिजवा दिया कि आप लोग अभी घर जाओ डिलीवरी में काफी टाइम लगेगा।

 रात 12:00 बजे गोमती ने एक पुत्री को जन्म दिया और 2:00 बजे सुनैना ने पुत्र को काकी ने अपने प्लान के मुताबिक बच्चों की अदला-बदली कर दी।

जब गोमती के परिवार वालों को पता चला की परशुराम को पुत्र की प्राप्ति हुई है तो  उनकी खुशी का ठिकाना नहीं था सभी ने काकी  को धन्यवाद दिया ।

” जच्चा और बच्चा “सभी स्वस्थ हैं कहते हुए कमला ने चैन की सांस ली!

हरिवंश राय जी ने पूरे अस्पताल में मिठाइयां बटवाई ।

आज काकी के प्रयास से गोमती के बेरंग रिश्तों में  रंग भर गया था।

 और इधर सुनैना की जिंदगी  में भी लक्ष्मी का प्रवेश मान हरिया खुशियां मना रहा था।

दोनों परिवार आज बहुत खुश थें।

 सभी अपने-अपने घरों में परिवार के साथ खुशियां बांट रहे थे ।

 लेकिन कहीं ना कहीं कमला काकी के मन में कुछ ग्लानी थी ।  जिसकी वजह से उनको अपना घर, अपना गांव और अपने ही लोगों को छोड़कर जाने पर मजबूर कर दिया।

दोस्तों कभी-कभी किसी की जिंदगी को सुधारने के लिए हमें  ऐसा भी कदम उठाना पड़ता है जिस पर हमें ग्लानी भी होती है लेकिन अगर सामने वाले की जिंदगी में इन उठाए हुए कदमों से सुधर जाए, तो वो खुशी हमें दुनिया की हर खुशी से ज्यादा अजीज लगती है ।

 अगर आपको  मेरी कहानी पसंद आए तो प्लीज लाइक्स शेयर और कमेंट्स जरुर कीजिएगा।

धन्यवाद।

मनीषा सिंह

3 thoughts on “बेरंग से रिश्तों में रंग भरने का समय आ गया है-मनीषा सिंह : Moral stories in hindi”

  1. Nhi ye kahani mujhe bilkul pasand nahi baccho ki adla badali maa se bacche ko alag nhi krna chahiye kuchh accha karne ke chakkar me sb kuchh halat .ek ke sath sahi doosre ke sath halat🙄

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