बेचारी शैली – लतिका श्रीवास्तव

सन्डे की अलसायी सुकून भरी सुबह की अभी आंख भी नहीं खुल पाई थी कि मैन गेट की खड़ खड़ ने मीता को बिस्तर छोड़ने पर मजबूर कर दिया….हालांकि उसने वेट किया था कि शायद राजन उसके पति की नींद खुल जाए और वो दरवाजा खोल दें!!पर व्यस्त सप्ताह का आराम तलब संडे अपनी नींद की गिरफ्त से आजादी नहीं दे रहा था…।

भुन भुन करते हुए मीता ही उठ कर बाहर आई और दरवाजा खोल ही रही थी कि पड़ोसन रानी ने कहा.. तुम्हे पता है शैली ने सुसाइड कर लिया…!”

क्या…!!”मीता की पूरी नींद गायब हो गई थी सुनकर!शैली ने!!सुसाइड..!!…”…..हां वही तो सबको आश्चर्य हो रहा है!इतनी कायदे की लड़की ..अभी दूसरा साल था उसका इंजीनियरिंग का…..एक साल से तो कोरोना के कारण घर पर ही थी अभी ऑफलाइन परीक्षा होने वाली थी…एक हफ्ते बाद का उसका रिजर्वेशन भी था…..

“रानी बताती जा रही थी और मीता की आंखों के सामने शैली का मासूम चेहरा घूम रहा था।

शैली का परिवार पिछले साल ही इस कॉलोनी में रहने आया था ।पिताजी बैंक की नौकरी से रिटायर होकर इसी कॉलोनी में मकान खरीद लिए थे मां थोड़ी कम पढ़ी लिखी महिला थी ….एक बेटा था उसकी शादी भी हो चुकी थी पर वो अभी तक एक ही बार यहां आया था…और आने के दूसरे ही दिन लड़ाई झगड़ा हो गया था ….


वो दोनो तुरंत चले भी गए थे।मीता सहानुभूति वश दूसरे दिन उनके घर गई भी थी पर पता नही शैली के पापा ने दरवाजा बंद कर दिया था,खोला ही नही …वो कुछ देर वहां खड़ी रही थी तब शैली पीछे के दरवाजे से उसके पास आई थी कुछ भयभीत si थी बोली..आंटी मम्मी की तबियत ठीक नहीं है वो मेडिसिन लेकर so रही है ….आप प्लीज बाद में आ जाईए गा…पापा की बात माइंड मत करिएगा….बस धीरे से इतना ही बोल कर वो तेजी से घर के अंदर अदृश्य हो गई थी।

कॉलोनी में गॉसिप का बाजार गर्म था….अरे हमे तो पहले ही मालूम था शैली ऐसा ही कुछ करती,दिन रात घर में घुसी रहती थी किसी से कोई मिलना जुलना था ही नहीं…कुछ गड़बड़ तो लगता ही था….”प्रकाश जी भी शामिल हो गए थे।

अरे तो क्या करेगी मां बाप ही ऐसे लापरवाह हैं,बेटी क्या कर रही है उन्होंने कोई ध्यान ही नहीं दिया कभी….अपनी बेटी की निराश मनःस्थिति नहीं समझ पाए!रानी ने तल्खी से कहा।

तब तक शैली के पड़ोसी रोमा जी ने बताया ऑफ लाइन एग्जाम के लिए जाने की बात होने से शैली डिस्ट्रब्ड थी वो जाना नहीं चाहती थी ……!कल ही मेरे घर बुक्स देने आई थी तो कह रही थी आंटी जाने का बिलकुल मन नहीं हो रहा है…..!मुझे आश्चर्य भी हुआ था कि बच्चे तो एक साल से घर में रह कर दुखी हुए जा रहे हैं कॉलेज खुलने का इंतजार कर रहे हैं…ये कैसी लड़की है !!!

फिर रोमा ने ही बताया कि सुबह जब उनकी मेड शैली के रूम में ब्रेकफास्ट के लिए बुलाने गई तो शैली बेहोश पड़ी थी,तुरंत उसे पास के नर्सिंग होम में ले गए हैं पॉइजन का असर है डॉक्टर ने बताया है…. पर उसके घर के लोग इस बात को छुपाने की पूरी कोशिश कर रहे हैं।

अभी शैली की क्या खबर है….!मीता ने जल्दी से पूछा तो पता लगा बहुत गंभीर स्थिति है डॉक्टर पूरी कोशिश कर रहे हैं बचाने की।…. चलो उनके घर चलते हैं मां को हिम्मत बंधाने की जरूरत है …मीता ने कहा तो जल्दी से कोई तैयार ही नहीं हुआ  ।

शैली की मां एकदम खामोश पत्थर की तरह बैठी थीं…मीता और रानी लोगों को देख कर भी उन में कोई हल चल नहीं हुई थी।मीता ने जाकर उन्हें गले से लगा लिया था….फिर अचानक वो फूट फूट कर रोने लगीं…..!



रोते रोते अपने दिल की दबी हुई पूरी व्यथा रूक रूक कर उनके होंठो से बाहर आ रही थी……मेरी शैली दुनिया की सबसे अच्छी बेटी है और मै दुनिया की सबसे बुरी मां हूं…..मैने उसको बचपन से ही अपने से दूर रखा …ईश्वर ने मुझे दो बच्चे दिए …..मेरे पति ज्यादा शिक्षित और कायदे वाले पर मैं थोड़ी नासमझ!पति बच्चों की पढ़ाई लिखाई आचरण व्यवहार कायदे सल्लीके पर जरूरत से ज्यादा ध्यान देते थे जबकि मुझे बच्चों के खाने नाश्ते की बस फिक्र रहती थी…

दोनो बच्चे बचपन से पापा के कायदों और नियमों की सख्ती की गर्मी से निजात पाने जब मेरे स्नेहिल सान्निध्य की शीतलता अधिक से अधिक लेने लगे जो उनके पापा को ये बेहद नागवार और बच्चों के बिगड़ने का जरिया दिखा…..तो उन्होंने पांचवी कक्षा के बाद ही दोनों बच्चों को बाहर हॉस्टल में भेज दिया….ताकि मां के अनपढ़ तौर तरीके से अप्रभावित रह कर  उनका भविष्य सुनहरा हो सके।

हॉस्टल की छुट्टियां होने पर भी बच्चों को वहीं रह कर कोई कोर्स या क्लास ज्वाइन करवा देते थे ….छुट्टियों का सदुपयोग अगली कक्षा की पढ़ाई को सरल बना देगा ऐसी उनकी सोच और बच्चो से अपेक्षा रहती थी।

मासूम बच्चे मां की ममता की शीतलता से वंचित पिता की महत्वाकांक्षाओं की गर्मी में झुलसते रहे…उनके दिलों में पिता के प्रति आक्रोश और मां के प्रति ज्यादा सहानुभूति पलती रही…..इसीलिए आज बेटा शादी के बाद मुझसे ही मिलने घर आता है ।

पिता आज भी उसको अच्छा करियर नहीं बना पाने की अक्षमता और अपनी मर्जी से एक सीधी सादी लड़की से शादी करने की उलाहनाएं और ताने देते हैं…और सारी भड़ास अब शैली  पर निकालते हैं..बेचारी जिंदगी में पहली बार इतने लंबे समय तक घर पर रही भला हो कोरोना का ….उन्होंने थोड़ा रुक कर हाथ जोड़ कर लंबी सांस ली!

तो अब क्या हुआ जो शैली ने ऐसा कदम उठाया…”मीता से बिना पूछे रहा ही नहीं गया।

…सुनते ही वो फिर से रोने लगीं… बोलीं घर पर रोज चौबीसों घंटे पापा के तानों ने शैली को विद्रोही बना दिया था मुंह से कुछ नहीं बोल पाती थी पर वो ढीठ हो गई थी कि अब मैं पढ़ाई ही नहीं करूंगी….

ऑनलाइन सेमेस्टर एग्जाम विवशता में मेरे कहने से दे तो दिया पर सारे पेपर में बैक लग गया…अब तो पापा के उलाहने सीमा पार कर गए…..कॉलेज खुलने की खबर आते ही उसके बैग पैक कर दिया कि अब तुम जाओ हॉस्टल में ही रहो….

बिगड़ा हुआ रिजल्ट,पिता के प्रति आक्रोश सिर्फ करियर के प्रति उनका स्नेह रहित सख्त रवैया,मां की अवहेलना और इन सबका विरोध ना कर पाने की कसमसाहट ने शैली को ऐसा करने को मजबूर कर दिया।



तभी शैली के पापा बदहवास से अस्त व्यस्त से वहां आए और अपनी पत्नी को पकड़ कर माफी मांगने लगे…..मुझे माफ कर दे शैली की मां सबसे बड़ा गुनहगार मैं ही हूं…अपनी महत्वाकांक्षाओं के आकाश की उड़ान में मैने तुम्हारे और बच्चों के एहसासों को कुचल दिया…..

नियम कायदों की निर्मम नुकीली धार से ममता स्नेह के अभेद्ध आवरण को तार तार करने की कोशिशें करता रहा …पर शायद ईश्वर ने मुझे अपने इस अपराध को सुधारने का एक मौका दिया है …शैली की जान बच गई है डॉक्टर्स ने बहुत सावधानी बरतने को कहा है….चलो जल्दी से ……अब हम सब मिलकर नए सिरे से अपने परिवार को जोड़ेंगे ऐसे प्रेम विश्वास और आत्मीयता की डोरी से जो किसी को कभी जुदा नहीं कर पाएगी….

पर सबसे पहले तुम मुझे माफ कर दो।

एक नए खूबसूरत जीवन का सपना लिए शैली की मां और पिता के साथ हम सभी नर्सिंग होम की उदास शैली को इस सपने से मिलवाने चल पड़े।

लतिका श्रीवास्तव

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