पुनर्जन्म – गीतांजलि गुप्ता

जब विधी की माँ का निधन हुआ था। उसकी आयु कुल पन्द्रह वर्ष थी। दो छोटी बहनों और भाई की जिम्मेदारी विधि के कंधों पर आ गई थी। पिता की नौकरी तो पहले से ही दूसरे शहर में थी। माँ अकेले ही सब को सम्भालती थीं। माँ बहुत बीमार पड़ गई,

पिता जी अपनी ड्यूटी के कारण जल्दी घर न आ पाये उनका ठीक से इलाज नहीं हो पाया। विधी की आयु इतनी नहीं थी कि कुछ समझ पाती फिर माँ की बीमारी के कारण विधी घर और भाई बहनों की देखभाल कर रही थी। उसे आज भी याद है कि माँ कैसे बुखर में तडपती हुई रोती रहती थी। माँ के सामने ही विधी ने घर सम्भाल लिया था तब वो नहीं जानती थी

कि माँ सबका साथ छोड़ ऐसे चली जायेगी। तेरह साल की रुचि,दस साल की कंचन और सात साल का भाई रोहन कब विधि पर आश्रित हो गए किसी को पता नहीं चल।

     अपने संघर्ष की याद आते ही विधी की आँखे नम हो जाती। खाली मन और भी खाली हो जाता खुद को संभालना कठिन हो जाता । अकेला घर काटने को आता बहन भाई सब अपनी अपनी जिंदगी में काफी व्यस्त हैं।

माँ के जाने के बाद पिता पहले से ज्यादा घर लौट आते थे। बच्चों के साथ टाइम बिताते,जरूरत की चीजें लाते और विधी को पढ़ने को प्रोत्साहित करते। माँ की याद तो सबको आती पर टाइम काट जाता। इस ही दौरान विधी की सेकंड्री परीक्षा हो गई और उसने स्नातक की पढ़ाई शुरू कर दी।


बाकी बहनें व भाई भी अपनी पढ़ाई ठीक प्रकार से करने लगे। आस पड़ोस से भी, पिता के गैर हाजिरी में काफी मदद मिल जाती इसलिए अकेलापन नहीं लगता था।

                   विधी ने पिता की देख रेख में पढ़ाई पूरी की कड़ी मेहनत कर बैंक में नौकरी करने लगी। पिता सेना में कार्यरत थे उनका तबादला होता रहता था। विधी के लियें कई रिश्ते आये पर उसने शादी से मना कर दिया पिता ने बहुत कोशिश की पर परिवार की जिम्मेदारी स्वार्थ लाभ के लियें छोड़ना उचित नहीं समझा।

पिता के जीवित रहते रुचि व कंचन की शादी हो गई। विधी दोनों बहनों की तरफ से आश्वस्त हो गई। काल की निर्दयता ने पिता को भी विधी से छीन लिया। अब वो भाई रोहन को लेकर चिंतित थी। एक दिन ऐसा भी आया जब भाई न केवल स्वावलंबी हो गया बल्कि अपनी पसंद की लड़की से शादी भी कर ली। नौकरी के सिलसिले में दूसरे देश भी चला गया और वहीं बस गया।

अपने घर में अकेली उदास निराश जीवन बीता रही है। उसे याद नहीं कि कब उसने अपना जीवन पिता के परिवार पर बलि चढ़ा दिया। जब तक नौकरी थी व्यस्त रहती अकेलापन नहीं खलता था सेवानिवृत्त के बाद समय काटना मुश्किल हो गया।

उसमें एक नई उमंग भर गई जब पड़ोस में रहने वाली बहू ने अपने छोटे बच्चे को उसकी देखरेख में छोड़ने की विनती की। नेहा अपनी दो साल की बेटी को नौकरानी के साथ रोज़ विधी के पास छोड़ जाती। ख़ालीपन ऐसे भर जाएगा सोंचा न था।


विधी ने एक क्रेच बनाने का निश्चय किया नौकरी जाने वाली महिलाओं की सहायता भी होगी और समय भी अच्छा कटेगा। विधी में नई ऊर्जा का संचार होने लगा उसे लगा जैसे पुनर्जन्म हुआ हो।

 गीतांजलि

स्वरचित व मौलिक

(सर्वाधिकार सुरक्षित)

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