बंधन रिश्तों का – बेला पुनीवाला 

  खुशाली, जो घर में सब की प्यारी और लाड़ली बिटियाँ है, जो सब की आँखों का तारा है, सच कहूंँ तो, खुशाली बड़े लाड दुलार से पली और बड़ी हुई। खुशाली के दो बड़े भाई, जो उसे बात-बात पे सताया करते और साथ ही में मम्मी और पापा की लाड़ली और अपने बड़े भाभी की पक्की वाली दोस्त। घर में खुशाली जब भी, जो भी मांँगे, उसे कभी कोई मना नहीं करता। घर में सब की जान जैसे खुशाली में ही बसती। देखते ही देखते खुशाली कब बड़ी हो गई, पता ही नहीं चला। खुशाली की पढाई ख़तम होने के बाद, एक अच्छा सा लड़का देख़ खुशाली के मम्मी-पापा ने उसकी शादी बड़ी धूम-धाम से करवा दी। खुशाली को भी लड़का पसंद था, इसलिए वह भी ख़ुशी-ख़ुशी शादी के लिए मान गई। 

      अपने ससुराल में भी कुछ ही दिनों में खुशाली ने सब के मन को जीत लिया और शादी के कुछ साल बाद खुशाली एक लड़की में से धीरे-धीरे एक औरत बनने लगी। उसका बचपन और उसका बचपना उसके ही बच्चों में कहीं खो गया। गुड्डे-गुड्डो के साथ खेलने वाली नन्ही सी खुशाली आज अपने ही छोटे बच्चों को खाना खिलाने के लिए उनके आगे-पीछे भाग रही है। 

      शादी के बाद पहले-पहले तो खुशाली को अपने ससुराल आकर बहुत अजीब लग रहा था, उसका मन बार-बार अपने मायके की ओर चला जाता था, लेकिन जैसे-जैसे दिन बीतते गए, उसे अपने ससुराल के वही पराए अपने लगने लगे। मायके जाने पे अब उसे थोड़ा सोचना पड़ता, पहले की तरह खुशाली अपने मम्मी-पापा या भैया-भाभी से कोई चीज़ मांँग नहीं पाती और किसी चीज़ के लिए अपना हक़ भी नहीं जताती। जैसे की एक छोटी सी नासमझ गुड़िया, अब सयानी हो गई।अपने मायके में खुशाली ने सब से दिल से रिश्ता निभाया और अपने ससुराल में भी उसने दिल से सब के साथ रिश्ता निभाया।            

       बच्चों की छुट्टिओं में कुछ दिन अपने ही मायके में अपने ही लोगों के साथ रहने के बाद भी इस बार, खुशाली को ना जाने क्यों अपने ही मायके में सब लोग पराए लगने लगे ? कुछ दिनों के बाद फ़िर से खुशाली अपने बच्चों के साथ मायके से ससुराल लौट आती। ससुराल आते ही खुशाली को अपने ही घर आने का जैसे एहसास होता, अपने पति के मम्मी-पापा और भैया-भाभी उसे अपने लगने लगे, कभी-कभी घर में छोटी-छोटी बातों पे लड़ाई-झगड़ा भी हो जाता, मगर आज कल लड़ाई-झगड़े किस घर में नहीं होते, तब खुशाली किसी ना किसी तरीके से सब को मना ही लेती और फ़िर त्यौहार आने पे फ़िर से सब एक हो ही जाते। 



        ये बात सिर्फ़ एक खुशाली की नहीं, मगर हर उस औरत की है, जो शादी के बाद किसी पराए को अपना बनाकर रिश्तों के बंधन में ऐसे जुड़ जाती है, जैसे वह कभी उनसे दूर थी ही नहीं, जैसे वह उसी घर के लिए बनी हुई थी, उनकी परेशानी उसकी परेशानी बन जाती है, घर में सब की ख़ुशी ही उसकी ख़ुशी बन जाती है, वह अपने अपनों के साथ कुछ ही वक़्त में ऐसे गुल-मिल जाती है, जैसे दूध में शक्कर। 

       औरत की ज़िंदगी ऐसी ही है, दो घर के रिश्तों के बंधन में औरत एक ही जन्म में बट के रह जाती है, एक उसका मायका और एक उसका ससुराल। रिश्तों का बंधन ही ऐसा होता है, जो पराए को अपना बना लेते है, फ़िर उन्ही के साथ उम्र भर के बंधन में ऐसे जुड़ जाती है, जैसे की वह सब लोग उसके अपने ही हो और वह ख़ुद उन सब की। घर में आई मुसीबत के वक़्त भी यही औरत अपना सब कुछ देकर भी घर की ख़ुशी बरकरार रखना चाहती है, घर में सब को प्यार और रिश्तों के बंधन से बाँध के रखने की कोशिश वह हर पल करती रहती है।   

             तो दोस्तों, वैसे कहुँ, तो एक लड़की के लिए शादी के बाद अपना घर छोड़ दूसरे के घर जाकर उनके रीती-रिवाज़ और उसूलों को और उन सब को अपना कर अपना बनाना और सब के साथ ताल-मेल कर, हँस्ते-हँसाते हुए ज़िंदगी जीना, इतना आसान नहीं, जितना हम समज़ते है। मगर ये बात सच है, कि ऐसा सिर्फ़ और सिर्फ़ एक औरत ही कर सकती है, किसी पराए घर जाकर किसी एक को अपना बनाना और किसी के माँ-पापा को अपना बनाना और उनके साथ पूरे घर के लोगों को भी अपना बनाना और उनके साथ जन्म-जन्म के बंधन से जुड़ जाना, ये सिर्फ़ और सिर्फ़ एक औरत ही कर सकती है। 

#बंधन 

लेखिका : बेला पुनीवाला 

                                          

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