बड़े दिलवाली है – विभा गुप्ता   : Moral stories in hindi

 ” हा-हा…इसका रंग तो देखिये…कितना भड़कीला है..।”

” हाँ …डिजाईन तो ऐसा कि अपनी कामवाली चंपा भी देह पर न लगाये..।” 

    ” अब छोटे घर वालों की पसंद तो ऐसी ही होगी न बड़ी बहू…।”

       ललिता जी अपनी दोनों बहुओं सुनिधि और अदिति के साथ बैठकर छोटी बहू पूजा के मायके से आये कपड़े-गहनों की मीन-मेख निकाल रहीं थीं।तभी उनके पति महेन्द्रनाथ जी तीखे स्वर में बोले,” पिछले छह महीने से तुम लोग पूजा को अपमानित करती आ रही हो…अब तो शर्मसार करना बंद कर दो…।” 

       दोनों बहुएँ नाक-भौं सिकोड़ती अपने-अपने कमरे में चली गईं।ललिता जी भी ‘उंह..आप भी ना…’ कहते हुए बगीचे में चली गईं। 

          महेन्द्रनाथ एक सरकारी अफ़सर के पद से सेवानिवृत्त हुए थें।उन्होंने खूब नाम और धन कमाये।शहर में ‘ ललिता निवास ‘ नाम की एक बड़ी कोठी बनवाई।ईश्वर की कृपा से उनके आँगन में मनीष, मयंक और मृदुल नाम के तीन बालक खेलने लगे।

      मनीष एक गार्मेंट फ़ैक्ट्री का मालिक था।उसकी पत्नी सुनिधि एक सम्पन्न घराने से संबंध रखती थी और मयंक एक कंपनी में काम करता था…कुछ महीनों बाद उसने कंपनी के मालिक की बेटी अदिति से विवाह करके कंपनी का मालिक बन गया था।छोटा मृदुल सरल और शांत स्वभाव का लड़का था।वह इतिहास विषय में एम  फ़िल करके उसी काॅलेज़ में लेकचरर बन गया।

        ललिता जी दोनों बहुओं की तरह तीसरी बहू भी अपनी बराबरी का लाना चाहतीं थीं लेकिन मृदुल ने पूजा जो कि एक अध्यापक की बेटी और उसकी सहपाठिन थी, के साथ विवाह करने का ऐलान करके उनकी इच्छा पर पानी फेर दिया था।उन्होंने विवाह का विरोध तो किया लेकिन फिर बेटे की ज़िद के आगे उन्हें अपने घुटने टेकने पड़े।

     पूजा न केवल शिक्षित थी बल्कि संस्कारी और कामकाज में भी कुशल थी।वह अपने व्यवहार से सभी के दिलों में जगह बनाने का हरसंभव प्रयास करती।लेकिन उसकी जेठानियाँ और सास उसकी कमियाँ निकालने और उसके मायके की बेइज्जती करने का कोई भी मौका नहीं छोड़ती थीं।उसके ससुर और जेठ घर की महिलाओं को समझाते भी परन्तु सब व्यर्थ..।विवाह के बाद पहला रक्षाबंधन आया तो उसकी माँ ने भाई के हाथों सास और जेठानियों के लिये साड़ियाँ भिजवाईं थीं।तीनों बैठकर हमेशा की तरह उन साड़ियों में नुक्स निकालने लगी तो महेन्द्रनाथ ने उन्हें डपट दिया।

        एक दिन पूजा की दोनों जेठानियाँ त्योहार की खरीदारी करने के लिये बाज़ार गई हुई थी।मर्द तो अपने-अपने काम पर जा ही चुके थें…उसके ससुर भी अपने एक पुराने मित्र से मिलने गये हुए थें।उसकी सास ऊपर के कमरे में कुछ लेने गईं हुईं थीं…नीचे उतरने लगी तो न जाने कैसे उनके दाहिने पैर में मोच आ गयी।वो ज़ोर-से चीखी,” सुनि…धि….।” पूजा किचन में थी…चीख सुनकर बाहर आई तो देखा कि सास सीढ़ी पर बैठी कराह रहीं थीं।

    पूजा ने पूछा कि क्या हुआ मम्मी जी? वो कुछ नहीं बोली….बस कराहती रही।वो समझ गई कि उनके पैर में मोच आई है।वो सास को सहारा देकर कमरे में ले आई…उन्हें बिस्तर पर लिटाया और डाॅक्टर को फ़ोन करके फ़्रिज़ से बर्फ़ लाकर सास के पैर की सेंकाई करने लगी।फिर उन्हें हल्दी वाला गर्म दूध पिलाया जिससे ललिता जी को बहुत आराम मिला।पूजा ने उन्हें एक मिनट के लिये भी अकेला नहीं छोड़ा।

      उस दिन ललिता जी ने पूजा को ध्यान-से देखा था।तीखे नाक-नक्श वाली उनकी बहू कितने उदार हृदय वाली है।वो तो हमेशा पूजा की इंसल्ट करती रहीं और वही पूजा आज कितनी तन्मयता से उनकी सेवा कर रही है।तभी डाॅक्टर और महेन्द्रनाथ भी आ गये।डाॅक्टर देखकर मुस्कुराए,” काकी…आधा इलाज़ तो आपकी बहू ने ही कर दिया।” दोनों बहुएँ भी उनसे मिलकर अपने कमरे में चलीं गईं लेकिन पूजा उनके सिरहाने बैठी रही…अपने हाथों से उन्हें खाना खिलाया और उनके बालों को सहलाया ताकि उन्हें अच्छे-से नींद आ जाये।

         बहू इतनी शिद्दत से सेवा करे तो सास को तो अच्छा होना ही था।सप्ताह भर में ही ललिता जी फिर से चलने- फिरने लगी।करवा-चौथ की खरीदारी करने पूजा गई तो अपनी सास के लिये भी लहटी(लाख की चूड़ियाँ) का एक सेट ले आई।जेठानियाँ तो मौके की तलाश में ही थी..देखते ही सुनिधि बोली,” कैसा देहाती रंग है..मम्मी जी तो हाथ भी नहीं लगाएँगी…।”

  ” और क्या..मम्मी जी हमेशा गोल्ड पहनती…।” अदिति की बात अधूरी रह गई क्योंकि ललिता जी पूजा के साथ से लहटी लेकर बोलीं,” बहुत सुंदर है पूजा..।” फिर घूरकर दोनों की तरफ़ देखी और बोलीं,” अब तो शर्मसार करना बंद करो…।तुम दोनों की तरह पूजा भी मेरी बहू है।हाँ…तुमलोगों की तरह ये बड़े घर वाली नहीं है लेकिन बड़े दिल वाली है।” कहते हुए उन्होंने पूजा को अपने अंक में समेट लिया तो पूजा की आँखें छलक उठी।

     पीछे खड़े महेन्द्रनाथ और उनके बेटे एक-दूसरे को देखकर मुस्कुराने लगे।पूजा ने अपने नाम को सार्थक कर दिया था।

                                 विभा गुप्ता 

                                  स्वरचित 

# अब तो शर्मसार करना बंद करो “

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