बदलती तस्वीर घर आँगन की – रीतू गुप्ता  : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi  : मैं काव्या  …मैं आज अपने घर आँगन की बदलती तस्वीर की कहानी बताती हूँ ।

मैं काव्या, मेरा भाई रवि, और मेरे माता पिता हम सब एक छोटे से गाँव में रहते थे। ज़न्नत सा लगता था बचपन में मुझे वो घर।

बडा सा आँगन, 3-4 खुले हवादार कमरे और आँगन के बीचो-बीच नीम का वो लहलहाता पेड़, जिससे मेरी बहुत सी यादे जुडी हुई थी। जिसपे झूल -झूल कर मैंने अपना बचपन बिताया,  जिसकी छाँव के नीचे कभी खेल कर,  कभी पढ़ाई कर मैं बड़ी हुई थी ।

              फिर एक दिन ऐसा आया कि मुझे पढ़ाई क़े लिए शहर जाना पड़ा ।मेरा गाँव आना-जाना कम हो गया। पर लगाव वही रहा ।

मुझे जब भी मौका मिलता मैं गाँव  जाने को तत्पर रहती। 

और फिर एक दिन ऐसा भी आया जब मैं घर आई हमेशा के लिए विदा होने के लिए, अविरल के साथ रिश्ता जोड़, हमेशा के लिए मुंबई में बस जाने के लिए।

माँ- बाप ने हमारी ख़ुशी समझ, ढेरो आशीर्वाद दिए और ख़ुशी ख़ुशी विदा कर दिया। मुंबई में नौकरी, घर-परिवार में ऐसा उलझी कि घर आना पहले कम, फिर ना के बराबर हो गया ।

पर मुंबई का छोटा सा फ्लैट  मुझे अक्सर मेरे घर की, माँ बाप की और आँगन में लगे नीम के पेड़ की याद दिला जाता । कभी-कभी माँ से वीडियो काल पे बातें हो जाती ।

              फिर भाई रवि की नौकरी पहले शहर, फिर विदेश में लग गई। माँ-बाप और घर आँगन सब सूना हो गया उसके जाने के बाद। 

भाई वही शादी कर सेटल  हो गया और कभी वापस न लौटा। उसकी ज़िंदगी में गांव के, घर के, माँ- बाप के लिए कोई स्थान न रहा । हां, हर महीने निश्चित राशि पापा के अकॉउंट में डाल देता। शायद फर्ज समझ कर या मजबूरी।

              एक दिन मैं जाकर  माँ-पापा को साथ ले आई। वे कुछ दिन रहे पर उनका दिल न लगा और वापिस गाँव चले गए।

     भाई ने कभी मुड़ के ना देखा, ना घर को,न माँ-पापा को ।

          मेरी छोटी बेटी सुहानी बडी हो गई थी। वो लगभग रोज नानी से बात करती। एक दिन ज़िद्द करने  लगी मुझे नानी घर जाना है। मैं उसकी ज़िद्द के आगे हार गयी और चलदी अपने गाँव।

       अपने घर पहुंच, घर की अजीबोगरीब हालत देख बहुत दुखी हुई। 

    नीम का लहलहाता पेड भी मुरझा सा गया। एक पल को लगा जैसे मुझसे शिकायत कर रहा हो। जैसे कह रहा हो बडी देर करदी जनाव आते आते ….

     माँ ने गर्मजोशी से स्वागत किया, पापा भी खुश थे, दोनों बुड्ढे हो गये थे।  शरीर बहुत ही कमजोर हो गया था, आँखे भीतर को धँस  गयी थी। उनकी यह हालत देख मुझे उनकी फ़िक्र होने लगी। 

     भाई को फ़ोन लगाया वो बोला, उसे कुछ नहीं चाहिए, ना 

 माँ बाप, ना घर। वो जो चाहे, इसका कर सकती है। 

मुझे उसपे बहुत गुस्सा आ रहा था। कैसा है,कोई ज़िम्मेदारी ही नहीं समझता। कितना बदल गया वो?  माँ-बाप थे कि  मुंबई जाने को तैयार  ना थे।

      तभी मेरी बड़ी बेटी रिया जो 20 साल की थी, बोली-  “ममा!आप फ़िक्र मत करो।”

         हम घर को एक सिखलाई  केंद्र बना देते है।  जहाँ कोई भी कम कीमत पर सीख  सकता है और केयर टेकर रेख देंगे जो नाना नानी और इंस्टिट्यूट का ध्यान रखेगा। बीच-बीच  शमें हम आते रहेंगे 

मैं बोली- “ऐसा हो सकता है क्या रिया?” 

      हाँ,ममा सब हो जाएगा। रिया ने सब अर्रेंज  कर  लिया। 

उसने अपने नाना नानी से बात की,वो भी मान गए और बोले-  

“इससे बढ़िया इस  घर का क्या प्रयोग हो सकता है भला।”

   रिया ने अपने दोस्तों को काल किया अगले दिन 5 दोस्त हमारे गाँव में थे। उन्होंने 1 महीने में ही घर की काया ही बदल दी। 

ऑनलाइन,ऑफलाइन फंड  से आज वहां कम्प्यूटर क्लासेज,

कड़ाई-सिलाई क्लासेज, म्यूजिक क्लासेज और तो और खेल की भी क्लासेज कम कीमत पर गांव के बच्चो को मिलने लगी और गांव के 

 लोगो को रोज़गार मिला वो अलग।

   फंड से घर एक अच्छा खासा इंस्टीटूट बन गया।

         इस प्रकार मेरा घर आँगन एक इंस्टीटूट में बदल गया और मेरे माँ-बाप बहुत खुश हो गए। उनका अकेलापन दूर हो गया। इतने लोगो के आस-पास होने से  मेरी उनके प्रति फ़िक्र भी कम हो गई ।

और हां वह नीम का पेड़ आज फिर लहलहा उठा, जैसे मुझसे धन्यवाद कह रहा हो और मैं अपनी बेटी का।

रीतू गुप्ता 

अप्रकाशित

#घर-आंगन

 

1 thought on “बदलती तस्वीर घर आँगन की – रीतू गुप्ता  : Moral stories in hindi”

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!