बात नहीं करूँगी – सरला मेहता

ऋतु हमेशा की तरह छुट्टियों में अपने दोनों बच्चों के साथ मायके आई हुई है। भाभी नीना, ननद जी की तीमारदारी में दिन भर जुटी रहती है। अपनी तरफ़ से कोई कसर नहीं छोड़ती है। वो हर बात माँजी के मनमाफ़िक करती है। उसे तो पहले से ही हिदायतें मिल जाती है, ” बहू ! देखो ऋतु आए तो उसका किसी भी कारण से दिल मत दुखाना। वैसे भी बेचारी दिनभर ही तो खटती रहती है, ससुराल में। “

क्या करे नीना ? ऊपर से ख़ुद के बेटे की फरमाइश कि नानी के घर कब चलेंगे। इन्हीं छुट्टियों में ही मौका मिलता है उसे नाना के साथ गपशप करने का।

    माँजी अनुसूया जी का आदेश सुन उसकी तन्द्रा टूटती है, ” बहू ! आज आमरस व सिवइयाँ बना लेना। और हाँ, रात को दाल भिगोना तथा दही ज़माना मत भूलना। दही बड़े बना लेना, ऋतु व उसके बच्चों को बहुत पसंद है। “

थकी हारी नीना ‘जी माँजी’ कहते हुए अपने कमरे में आ निढाल हो लेट जाती है। याद आया मम्मी से बात करना है। यही तो समय है उसका अपना, माँ से बतियाने का।

इधर अपने कमरे में अनुसूया बेटी से शिकायत करती है,  


” समय मिला नहीं कि महारानी लगी मैया से शिकायत करने। जब तक मन के गुबार उगलेगी नहीं खाना हज़म नहीं होगा रानी जी का। “

    माँ का व्यवहार देख ऋतु सोचती है, ” मैं एक दिन भी माँ से बात ना करूँ तो वो आसमान सर पर उठा लेती है। कई हिदायतें याद कर करके देती हैं, ” थोड़ा आराम भी करा कर। ननद आए तो कोल्हू के बैल की तरह मत जुता कर । कभी खराब तबियत का बहाना बना दिया कर। इन्हें क्या पता मैंने तुम्हें कितने नाज़ों से पाला है।”

ऋतु सोचने लगी कि इतनी सुयोग्य भाभी में भी माँ जब तब नुस्ख निकालने लगती हैं। जबकि बेचारी कितने अपनेपन से अपनी ननद का ख़्याल रखती है। वह पापा से सलाह लेकर  अकेले में माँ को समझाती है, ” माँ ! आपको लाखों में एक बहू मिली है। फ़िर भी आप दिनभर उनके पीछे पड़ी रहती हो। हाँ , आपको यदि भाभी का अपनी माँ से बात करना अच्छा नहीं लगता तो आगे से मैं भी आपसे रोज बात नहीं करूंगी। “

अनुसूया जी के पास बेटी को कहने के लिए कोई शब्द नहीं है। कैंची की तरह चलने वाली ज़ुबान पर मानो ताला ठुक गया है।

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