अटूट बंधन –  संगीता विज    : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi : दो अजनबी, न हम नज़र, न हम पसन्द, ओर न ही चाहते एक, पर फिर भी हम सफ़र, हम कदम बन गये एक शादी के बन्धन से ।शुरू में प्यार तो नहीं, पर दिखाते, समझते-समझाते परखते व जताते हम ख़याल बने फिर दोस्त । समय की धारा के साथ बहते – बहते प्यार भी होता गया ।

बिना कहे भी एक दूसरे को समझने लगे ।कब  हमदर्द बने ,विश्वास कीं नींव गहरी हुई ,फिर एक दूसरे के बिना अधूरा महसूस करते ।तड़प उठते एक दूसरे की तकलीफ़ से,खामोशी से ।परिवार को देखते पालते चालीस से भी अधिक वर्ष गुज़र गये पता ही नहीं चला । हाँ कभी-कभी तकरार भी होती, पर ज़्यादा लम्बी नहीं ।

खूब मस्ती भरा साथ था आराम देह व सुलझीं हुई ज़िन्दगी । हा कुछ आदतें अलग-अलग भी थी पर जीवन में अड़चन नहीं बनी । बच्चों को पालने में,घर के काम, ज़िम्मेदारियों को निभाने में वक़्त भागते-भागते निकल गया।ऐसे में अगर भगवान जुदा कर दे ,अचानक साथ छूट जाए, तो दूसरा शरीर भी बेजान हो जाता है ।

  दिल -दिमाग़ ने भी काम करना बन्द कर दिया व इस आधात को सहने की क्षमता नहीं जुटा पाया ।यह अहसास कीं अब कभी एक दूसरे को देख भी नहीं पाएँगे, अपने में ही बहुत बड़ा मन व हिम्मत को तोड़ने वाला था । लगता  कि वो जीवन का आधार, जिसके सहारे खड़ी थीं, वो धरती जिस पर खड़ी थी सब कोई चुरा कर ले गया । पति का होना ही हिम्मत व साहस के लिए बहुत था । अगर कभी कोई गलती भी हो गई तो बेझिझक व डरे कह देती ।

इन्होंने सब ठीक कर देना बहुत आसानी से ,किसी को जताये व बताये बग़ैर । कुछ भी करना हो तो पता था कि पीछे यह खड़े हुए हैं , गड़बड़ होने पर सब सम्भाल लेंगे ।अजीब सी हुकूमत थी, कुछ भी करने से पहले पूछताछ करने वाला कोई नहीं । राजकीय जीवन था, घर में । अब हर बात कहने, करने व पूछने का हक़ जैसे गुल हो गया है ।

कुछ भी करने से,कहने से ,पूछने से डर व झिझक महसूस होती हैं, कहीं किसी को बुरा न लग जाए ।पता नहीं किसकी क्या प्रतिक्रिया होगी । कोई पीछे खड़ा भी नज़र नहीं आता तो साहस भी साथ छोड़ देता है । यह अकेले पन का अहसास ओर भी डरा देता है व कमजोर कर देता है ।

              सब कुछ है – अच्छे सेवादार बच्चे,पैसा,व सुख सुविधा पर फिर भी हर चीज़ में, हर काम में , हर चाह में, हर जगह एक कमी लगती हैं ।दादी एक कहावत कहतीं थी-पराये बेटे राज ,अपने बेटे मोहताज ।  अब जाकर उसका पूरा अर्थ समझ में  आया है । पति पराया बेटा होता है पर औरत अपने पैदा किये बेटे से भी ज़्यादा हक़  पति पर समझती है ।

उसके सहारे कोई भी उड़ान आसान लगती हैं । लगता है कि हर हक़ , कुछ कहने सुनने की हिम्मत लगता है खो गई हैं । कितना भी मन को समझा लो कि न दो लोग इकट्ठे आते हैं व न ही इकट्ठे जाते हैं ।कुछ देर बहल कर फिर मन व दिमाग़ पुरानी यादों में क़ैद हो जाता है । सब याद कर आँखें नम हो जाती हैं । सबके सामने भी हर वक़्त नहीं आंसू बहा सकते । 

      प्रभु से सदा सुहागन बने रहने की प्रार्थना की थी, पर यह अलगाव कभी नहीं माँगा । कहा चूक हो गई कि यह सब देखना व सहना पड़ रहा है । फिर सोचतीं हूँ कि सात जन्मों का साथ था, अगले जन्म में मिलेंगे कैसे ।मिल गये तो पहचानेंगे कैसे । कई बार तो मन ऐसे तर्कों में उलझता है कि रात भर तर्क-वितर्क में या यूँ कहें कि आँखों-आँखों में ही गुजर जाती हैं ।

लगता है कैसे कटेगी यह बोझिल ज़िन्दगी ।  बच्चे कहते है मन को बहला कर ,ध्यान कहीं और लगाओ। मूव- आन करो, पर यह शब्द खोखले व अधूरे लगते हैं साथ के बिना । यह शून्यता -तन्हाई, नहीं भरती कुछ भी कर लो । दोनों एक दूसरे के पूरक होते हैं, एक के जाने से दूसरे का जीवन भी आधार हीन हो जाता है ।यही जीवन का सत्य है । जीवन साथी से बिछड़ने का दुख, दर्द , व

          संताप कोई नहीं बाँट सकता व न ही कम कर सकता है । वक़्त ही इस पर अपनी मलहम लगा कर इसको  कम कर सकता है । 

                                              संगीता विज          

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