अतीत की परछाई – (भाग 3) – संगीता अग्रवाल  : Moral Stories in Hindi

“अवधेश देखो जो अतीत मे हुआ वो गलत था पर तब हमें नही पता था ये सब होगा । वैसे भी तब हमारे माता पिता हमारे साथ नही थे पर हम ऐसी सूरत मे अपनी बेटी का साथ देंगे उसकी पसंद को नकारेंगे नही ओर फिर ये जरूरी तो नही अवंति लव मैरिज ही करे सिर्फ अपने डर के कारण हम अपनी बेटी के सपने तो नही मार सकते ना ।” स्मृति ने अपने आंसू पोंछते हुए कहा।

” स्मृति तुम मेरे दिल का हाल समझ नही रही हो जिस दिन से अवंति पैदा हुई है मैं उसमे तुम्हारा अतीत देख रहा हूँ । हर पल मुझे ये लगता है जो हमने किया वो कल को हमारे ही सामने ना आ जाये । मेरे परिवार वालों ने मुझे अपना लिया था पर तुमने ना केवल अपना पीहर खोया बल्कि तुम्हारे पिता की मौत का कलंक भी तुम्हारे माथे है। माना उस वक़्त हमारी गलती नही थी हमने तो अपने परिवार को मनाने की कोशिश की थी पर कहते है अपना किया सामने आता ही है इसलिए मुझे डर है कहीं ऐसा ना हो अवंति ऐसे शख्स को पसंद करे जो हमें उसके लिए उपयुक्त ना लगे …तब …तब क्या करेंगे हम वही ना जो हमारे माता पिता ने किया पर तब अवंति भी तो वही करेगी जो तुमने किया  ?” अवधेश दुखी स्वर मे बोला।

” हम ऐसी सूरत मे अवंति को समझायेंगे उसे ऊंच नीच का वास्ता देंगे वो हमारी बेटी है अवधेश हमारे जिगर का टुकड़ा वो हमारी बात जरूर समझेगी  !” स्मृति कहने को कह गई पर फिर चुप हो गई क्योकि समझाया तो उसके माता पिता ने भी था उसे पर क्या वो समझी थी। वो सोचने लगी काश उस वक़्त माँ पापा हमारा प्यार समझ जाते तो आज परिस्थितियाँ कुछ और होती ।

” तुम समझी थी स्मृति ? नही स्मृति जब इंसान प्यार मे पड़ता है तब उसे अच्छे बुरे की समझ नही रहती उस वक्त उसे बस अपने प्यार को हांसिल करना होता है बाकी उसे ना किसी की खुशियों से मतलब होता है ना किसी ओर चीज से ।” अवधेश परेशान हो बोला।

” अवधेश तुम बार बार सिर्फ मुझे क्यो दोषी ठहरा रहे हो क्या गलती सिर्फ मेरी थी । माना तुम्हारे माता पिता ने तुम्हे अपना लिया पर अगर वो भी ना अपनाते तो उन्हे भी तुम्हारे किये का सदमा लगता तो ? मैं पहले से ही खुद को दोषी।मान रही हूँ जो हुआ उसके लिए तुम इतने साल बाद क्यो मुझे बार बार एहसास दिला रहे हो मेरे गुनाहो का !” स्मृति जो इतनी देर से अपने आंसुओ का बाँध रोके थी अब फूट फूट कर रो दी ।

” मम्मी – पापा आप लोग बेफिक्र रहिये मैं ऐसा कोई काम नही करूंगी जिससे आप लोगों का शर्म से सिर झुके । मेरे लिए मेरे सपने और मेरे अपनों से बढ़कर ना आज कोई है ना कल होगा । बस आपसे हाथ जोड़ विनती करती हूँ मुझे मेरे सपने पूरे करने का हक दे दीजिये बदले मे मैं आप दोनो से वादा करती हूँ जैसे मेरी शादी का हक आज आपको है कल भी आपको ही होगा !” तभी वहाँ अचानक अवंति आई और हाथ जोड़ बोली।

” बेटा तुम यहाँ तुम तो कॉलेज गई थी ना ?” अचानक उसे सामने देख स्मृति आँसू पोंछती बोली।

” मम्मी आज कॉलेज की एक टीचर का स्वर्गवास हो गया इसलिए छुट्टी हो गई और मैं लौट आई यहां से गुजरते मे पापा के मुंह से अपनी शादी की बात सुनी तो खुद को रोक ना पाई और आप दोनो की बाते सुन ली मैने! ” अवंति निगाह झुका कर बोली।

अवधेश ध्यान से बेटी को देखने लगा। उसे अभी भी अवंति वही छोटी सी मासूम सी बच्ची नज़र आ रही थी जो उसे देखते ही दौड़ी आती थी। उसके मन मे बेटी के लिए स्नेह उमड़ने लगा उसका मन किया दौड़ कर बेटी को गले लगा ले और उसे कहे क्यो चिंता करती है तू तेरा पापा है ना…

पर धीरे धीरे उसे अवंति मे स्मृति नज़र आने लगी उन्नीस साल पहले की स्मृति गले मे जयमाला पहने …उसका हाथ पकड़े निडरता से अपने पिता की आँख मे आँख मिला ये कहते हुए ” पापा हमने प्यार किया और फिर शादी की इसमे क्या गलत है हम बालिग है अपने फैसले खुद ले सकते है !”

अचानक अवधेश के चेहरे पर स्नेह की जगह सख्ती आने लगी उसकी मुट्ठियां क्रोध मे भींचने लगी । उसके चेहरे पर कठोरता आ गई ।

” माँ बाप की बातें छिप कर सुनते हुए शर्म नही आती तुम्हे …इस घर मे तुम्हारे बड़े बैठे है फैसला लेने को तुम मत बताओ हमें क्या करना है क्या नही समझी तुम चलो अभी अपने कमरे मे जाओ !” अवधेश गुस्से मे चिल्लाया और फिर वहाँ से उठकर बाहर चला गया।

स्मृति और अवंति भोंचक्की रह गई ।

क्या होगा अब अवधेश का फैसला ?

क्या अवंति चुपचाप पिता का फैसला मान लेगी या स्मृति की तरह बगावत कर देगी ?

जानने के लिए इंतज़ार कीजिये अगले भाग का

जारी है…………

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