अतीत की परछाई – (भाग 2) – संगीता अग्रवाल  : Moral Stories in Hindi

समय अपनी रफ़्तार से गुजरता रहा , बच्चे बड़े होते गये और कुछ बड़े साथ छोड़ते गये ।  इधर अवंति का अठारहवा जन्मदिन कल ही बीता था व। तबसे अवधेश बहुत ज्यादा परेशान था इतना परेशान कि आज नौकरी पर भी नही गया था। स्मृति ये सब देख समझ रही थी इसलिए वो बच्चों के स्कूल , कॉलेज जाने के बाद अवधेश के पास आई ।

” क्या बात है अवधेश कुछ हुआ है क्या तुम इतने परेशान क्यो हो ?” स्मृति ने पूछा।

” नहीं…वो बस मेरी तबियत ठीक नही है !” अवधेश स्मृति से आँख चुराता हुआ बोला।

” अवधेश उन्नीस साल के साथ में इतना तो तुम्हे जानती हूँ कि कब तुम्हारी तबियत खराब होती है कब तुम चिंता में होते हो क्या बात है बोलो !” स्मृति प्यार से बोली।

” स्मृति मैं अवंति की जल्द से जल्द शादी करना चाहता हूँ !” अवधेश स्मृति का हाथ पकड़ते हुए बोला।

” क्या …दिमाग़ खराब है तुम्हारा बच्ची है वो अभी अभी छह महीने पहले कॉलेज में कदम रखा है उसने , उसके कुछ सपने हैं जिन्हें वो पुरा करना चाहती है और तुम्हे उसकी शादी की लगी है !” स्मृति गुस्से में बोली।

” मैं उसके होने वाले पति से उसके हर सपने को पूरा करने का वादा ले लूंगा तभी उसकी शादी करूंगा । एक निश्चित रकम भी उसके नाम कर दूंगा जिससे उसे अपनी पढ़ाई के लिए किसी का मुंह ना देखना पड़े पर मैं उसकी शादी इसी साल करूंगा और ये मेरा यानी की अवंति के पिता का अंतिम फैसला है और मेरी पत्नी होने के नाते तुम्हारा फर्ज है मेरे फैसले मे मेरा साथ देना  !” अवधेश बोला।

” आप अवंति को उसके जन्म से ही पसंद नही करते ये बात मैं जानती हूँ पर मैने सोचा था आदित के जन्म के बाद आपका मन बदल जायेगा पर नहीं जानती थी वो तो आपके लिए बोझ है जिसे आप जल्द से जल्द उतार देना चाहते हैं।” स्मृति रोते हुए बोली।

“स्मृति बेफिजूल की बात मत करो ये तुम भी जानती हो मैंने आदित और अवंति में कोई भेदभाव नहीं किया ना कभी तुम्हे अवंति के जन्म के बाद ऐसा कुछ कहा कि तुम्हे लगे मैं अवंति को पसंद नही करता !” आज पहली बार अवधेश स्मृति से गुस्से में बोला।

” अगर ऐसा होता तो आप उसके सपने पूरे करने की जगह उसकी शादी का नही सोचते । एक पिता का तो सपना होता है अपने बच्चो को बढ़ता देखना पर आप तो खुद से अपनी बेटी के सपने रौंद देना चाहते है   !” स्मृति बोली।

” स्मृति उसकी शादी कर देने की वजह ये नहीं है !” अवधेश स्मृति से नज़र चुराते हुए बोला।

” तो क्या वजह है …आपका नज़र चुराना बता रहा है वजह यही है !” स्मृति उसका हाथ पकड़ उसकी तरफ देखती बोली।

” मैं वजह बताना जरूरी नहीं समझता अवंति के पिता होने के नाते ये मेरा अधिकार है समझी तुम !” अवधेश गुस्से में चिल्लाया।

सन्न रह गई स्मृति उन्नीस साल में पहली बार इस तरह हुआ था जब अवधेश और उसके विचार नहीं मिल रहे थे । जब अवधेश उसपर इस तरह चिल्ला रहा था ।

“तुम पिता हो तो मैं भी माँ हूँ जन्म दिया है मैने उसे मुझे भी हक है उसके लिए फैसले लेने का समझे तुम !”स्मृति भी गुस्से मे दहाड़ी।

” स्मृति तुम क्यो नही समझ रही , क्यो जिद कर रही हो ? प्लीज मेरी बात समझो कल से ही मैं उसके लिए लड़के की तलाश शुरु करता हूँ कुछ लोगो से कहा भी है मैने।” अवधेश अब कुछ नर्म स्वर मे बोला।

” अवधेश जितना मैं तुम्हे इन उन्नीस सालों मे जान पाई हूँ तुम आज मुझे वो अवधेश लग ही नही रहे कोई तो ऐसी बात है जिसके कारण तुम्हे ये फैसला लेना पड़ा ! और आपको वो बात मुझे बतानी ही पड़ेगी क्योकि अवंति की माँ होने के नाते ये जानना मेरा फर्ज है  !” स्मृति अवधेश को देखती हुई बोली। थोड़ी देर अवधेश खामोशी से स्मृति को देखता रहा।

” वो स्मृति …अवंति उन्नीसवें साल मे प्रवेश कर गई है और …!” अवधेश इतना बोल चुप हो गया।

” और क्या अवधेश ?” स्मृति ने पूछा।

” और मैं नही चाहता मेरी बेटी कल को किसी के साथ भाग कर शादी कर ले ऐसी सूरत मे  ..तुम्हारे पापा की तरह मैं भी ये सदमा बर्दाश्त नही कर पाऊँगा बस इसलिए !” फिर अवधेश स्मृति से नज़र चुराता रुक रुक कर बोला।

सन्न रह गई स्मृति ये सुनकर उसके अतीत का एक स्याह पक्ष उसके सामने यूँ रखा जायेगा वो भी उस शख्स के द्वारा जिसके लिए उसने अपने माँ बाप को छोड़ा । अचानक आंसू लुढ़क आये उसके गालों पर पर इसमे गलत भी क्या है अवंति की माँ होने के नाते वो भी कभी नही चाहेगी कि उसकी बेटी वो करे जो उसने खुद किया । लेकिन इस डर के कारण क्या अपनी बेटी के सपने रौंद दे वो और उसके हाथ मे किताबों की जगह करछी पकड़ा दे। नही नही ये तो अवंति से साथ अन्याय होगा …पर अगर अवधेश का डर सच निकल गया तो? स्मृति के दिमाग़ मे बहुत से प्रश्न घूम रहे थे।

क्या होगा अब अवधेश का फैसला क्या अपने अतीत की परछाई अवंति की जिंदगी तबाह कर देगी ?

जानने के लिए इंतज़ार कीजिये अगले भाग का

अतीत की परछाई – (भाग 3)

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अतीत की परछाई – (भाग 1)

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