अति सर्वत्र वर्जयेत् (भाग 2)- डा.पारुल अग्रवाल: Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi : ऐसे में सरिता जी ने उनको ये कहकर दिलासा दिया था कि बहू अभी हम लोगों के साथ इतना रही नहीं है,इस वक्त पर उसकी मां का ही उसके साथ रहना ठीक है। बात आई-गई हो गई। रिया ने बहुत सुंदर बेटे को जन्म दिया। अब रिया के माता-पिता भी बहुत दिन तक वहां नहीं रुक सकते थे। चिराग के माता-पिता को रिया बुलाना नहीं चाहती थी क्योंकि उसको लगता था कि उन लोगों के आने पर उसे कई सारे बंधन झेलने पड़ेंगे।

अब उसने चिराग से बेबी सीटर रखने को कहा। विदेशों में काम वाली रखना भारत देश की तरह आसान नहीं है। बेबी सीटर रखने पर चिराग और रिया का सारा बजट ही बिगड़ने लगा। अब रिया ने थोड़ा सा अपना स्वार्थी दिमाग लगाया। उसने चिराग को सलाह दी क्यों ना हम चित्रा को अपने पास बुला लें?वैसे भी वो बीबीए पूरा होने के बाद एमबीए की तैयारी कर रही है।

वो भी यहां आकर अपना एमबीए कर लेगी साथ-साथ हमें भी थोड़ी मदद हो जायेगी। हमारा खर्चा भी बचेगा,बच्चे को भी घर के सदस्य का साथ मिल जायेगा। चिराग तो वैसे भी रिया की हर बात में हां में हां मिलाता था।साथ ही साथ उसे अपने माता जी और पिताजी का भी पता था कि वो उस पर बहुत विश्वास करते हैं।

चित्रा के भविष्य को ध्यान में रखते हुए वो लोग उसको यूएस भेजने में इंकार नहीं करेंगे। चिराग ने योजनानुसार अपने घर पर फोन किया। उसने मनोहर जी और सरिता जी के सामने चित्रा के सपनों को पूर्ण करने की इतनी सुंदर तस्वीर प्रस्तुत की, उन लोगों को अपने बेटा-बहू पर गर्व होने लगा। वैसे भी इंसान को अपने खून के रिश्तों पर कोई संशय नहीं होता है।

इस तरह चित्रा अपनी आंखों में सुनहरे सपने लेकर विदेश की धरती पर रवाना हो गई। शुरू में तो सब बहुत अच्छा रहा,धीरे-धीरे रिया ने चित्रा पर घर के सारे कामों की ज़िम्मेदारी डाल दी। सप्ताह के अंत में भी चिराग और रिया बाहर दोस्तों के साथ घूमते और पार्टी करते उधर चित्रा बच्चे को भी संभालती। चित्रा की तो उम्र भी अभी कम थी,उस पर एक तरह से पूरे घर की ज़िम्मेदारी उसके कंधो पर आ गई थी।

वो जब भी चिराग से अपने एमबीए एडमिशन की बात करती,चिराग कोई ना कोई बहाना बना देता। चिराग और रिया को तो एक तरह से मुफ्त की नौकरानी मिल गई थी। चित्रा बहुत परेशान थी। घर पर भी चिराग ने माता-पिता के सामने एक अलग ही तस्वीर पेश कर रखी थी। चित्रा को जो मोबाइल दिया था उसमें उससे भारत में बात नहीं हो सकती थी।

चित्रा की अपने माता-पिता से भी फोन पर बात चिराग और रिया के सामने ही हो पाती थी। एक दिन चित्रा की तबियत ठीक नहीं थी वैसे भी इतनी कम उम्र में वो बाज़ार,घर और बच्चे की पूरी ज़िम्मेदारी संभालती थी।उसने कभी ज़िंदगी में इस तरह का काम नहीं किया था। तबियत ठीक ना होने से वो सुबह जल्दी नहीं उठ पाई थी।

उसके देर से उठने पर रिया ने पूरा घर सर पर उठा लिया। आज चित्रा भी चुप ना रह पाई उसने भी गुस्से में चिराग और रिया को मतलबी और स्वार्थी बोल दिया। चित्रा ये तक कहा कि आप जैसे भाई- भाभी केवल अपने विषय में सोचते हैं और उनके मतलबी रिश्ते ने उसके सपनों की भी बलि चढ़ा दी।

उसकी बात सुनकर चिराग ने उल्टा उसको बोला कि उसको बड़ों से बात करने की बिल्कुल तहज़ीब नहीं है और एक तो उन लोगों की वजह से उसको विदेश आने का मौका मिला और वो उनको ही भला-बुरा बोल रही है। जो भी ये घटना हुई उसको चिराग ने माता पिता को नमक-मिर्च लगाकर सुना दी। उसकी बातों से माता-पिता को भी चित्रा की ही गलती लगी।

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अति सर्वत्र वर्जयेत् (भाग 3)

अति सर्वत्र वर्जयेत् (भाग 3)- डा.पारुल अग्रवाल: Moral Stories in Hindi

अति सर्वत्र वर्जयेत् (भाग 1)

अति सर्वत्र वर्जयेत् (भाग 1)- डा.पारुल अग्रवाल: Moral Stories in Hindi

 

 

2 thoughts on “अति सर्वत्र वर्जयेत् (भाग 2)- डा.पारुल अग्रवाल: Moral Stories in Hindi”

  1. I like very this story . blood relation is not good for now a days but dusre log helpful nature ke hote Hain dis ise veri nice story. Special thanks for you.

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