Moral Stories in Hindi : आज कांता जी के चेहरे की चमक देखते ही बनती थी, आखिरकार 2 साल बाद दोनों बेटे अपने परिवार के साथ दिवाली मनाने भारत आ रहे थे। बच्चे भी क्या करें विदेश में बसने के बाद में अपने देश बार-बार आना मुमकिन भी तो नहीं है। पूरे मोहल्ले भर को यह बात पता थी की कांता जी के बच्चे घर आ रहे हैं तो यह दिवाली धूमधाम और हर्षोल्लास के साथ होने वाली थी।
कई दिन पहले से ही कांता जी ने घर की पूरी साफ सफाई करवा दी और तरह-तरह की लड्डू मिठाइयां और पकवान की तैयारी में लग गई। पूरा घर देसी घी की खुशबू से महकने लगा था, कांता जी के पैरों में तो जैसे नई जान आ गई थी। उनके बच्चों को भारत में बनी विशेष तौर से अपनी मां के हाथों की बनी हुई चीज बहुत पसंद थी।
70 वर्ष की होने के उपरांत भी कांता जी अभी भी 10 लोगों का खाना बनाने की हिम्मत रखती थी। 5 वर्ष पूर्व उनके पति का देहावसान हो गया था तब से वह पूरे घर को संभाल रही है, ऊपर के पोर्शन में उन्होंने एक छोटे से परिवार को किराए पर रखा हुआ है, उनके छोटे-छोटे दोनों बच्चों की वजह से उनका घर भी गुलजार रहता है!
वह कभी भी बच्चों को शैतानियां करने से नहीं टोकती बल्कि उन्हें तो अच्छा लगता है जब बच्चे पूरे घर में धमा चौकड़ी मचाते फिरते हैं! इससे उन्हें कभी भी अकेलेपन का एहसास भी नहीं होता! खरीदारी बहुत भले इंसान हैं, वह भी कांता जी की देखभाल करते हैं और जरूरत पड़ने पर हर संभव मदद करते हैं!
दिवाली से 2 दिन पूर्व दोनों बेटे भी सपरिवार आ गए! इतने सारे जनों से परिवार फिर से रोशन हो गया, हंसी खुशी में त्योहार कैसे निकल गया पता ही नहीं चला, दिवाली के दो-तीन दिन बाद दोनों बेटों ने मां से कहा……मां हम सोच रहे हैं कि अब इस मकान को बेच दिया जाए, इतने बड़े मकान की देखभाल करना भी संभव नहीं है
और हम दोनों भाई भी विदेश में रहते हैं तो हमारा भी बार-बार आना असंभव है, आप भी हमारे साथ इस घर को छोड़कर चलने को तैयार नहीं होती, तो हम दोनों ने सोचा.. क्यों ना इस घर को बेच दिया जाए और आपके लिए एक छोटा सा, अच्छी सोसाइटी में फ्लैट ले लिया जाए ताकि आपका मन भी लगा रहे और हमें भी वहां चिंता नहीं रहेगी!
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अब इस उम्र में अगर आप को पीछे से कुछ हो गया तो हमें जब तक पता चलेगा तब तक बहुत देर हो चुकी होगी, अतः आप मकान के कागज वगैरा हमें दे दो और हम अच्छा सा फ्लैट देखकर आपको बताते हैं! नहीं नहीं बेटा… यह तुम कैसी बातें कर रहे हो, यह घर तुम्हारे दादाजी का था ,उसके बाद मैंने अपनी नई जिंदगी की शुरुआत खट्टी मीठी यादों से इसी मकान से शुरू की थी,
यह एक मकान नहीं है मेरे लिए यह एक मंदिर है जहां मेरे भगवान निवास करते थे! इसी घर में तुम दोनों बच्चों का जन्म हुआ है, पूरे मकान में तुम्हारी किलकारियां, तुम्हारी शैतानियां अभी भी मुझे सुनाई देती है! तुम्हारा रूठना मटकना फिर डांटना, डांट के प्यार करना सब मुझे महसूस होता है! नहीं बेटा मैं तो इस मकान को किसी भी कीमत पर नहीं बेचूंगी!
मेरी कितनी सारी यादें इस घर से जुड़ी हुई है, यह घर ही तो मेरे लिए एक मात्र जीने का सहारा है, तुम्हारे पिता की यादों को महसूस करने का! मुझे इस घर में सुरक्षा और प्रेम नजर आता है, मैं अन्य कहीं दूसरी जगह पर नहीं रह पाऊंगी! मोहल्ले के लोग मुझे दादी मां का कर बुलाते हैं और मेरा कितना सम्मान करते हैं ।
मुझे मेरी यादों के सहारे इस घर में ही रहने दो! ठीक है मां.. जैसी तुम्हारी इच्छा, कहकर दोनों भाई अपने-अपने कमरों में सोने चले गए! कांता जी भी सोने चली गई, किंतु उनकी आंखों में आज नींद नहीं थी, इस घर से जुड़ी हुई तमाम यादें उन्हें याद आने लगी! खुशी और दुख दोनों पल इस घर में ही उन्होंने बिताए हैं, रात को अचानक 1:00 बजे कांता जी टॉयलेट करने के लिए कमरे से बाहर आई तो बड़े बेटे रोहित के कमरे से बातचीत की आवाज आ रही थी,
क्योंकि बातें कांता जी से संबंधित लग रही थी अतः उन्होंने थोड़ा ध्यान से उनको सुनने की कोशिश की, जो उन्होंने सुना वह सुनकर उनके दुख का कोई ठिकाना नहीं रहा ।रोहित छोटे भाई सुमित से कह रहा था.. अरे यार सुमित मां ने तो हमारे सभी अरमानों पर पानी फेर दिया,
हम कितना सोचकर दोनों भाई यहां आए थे की मां को इस मकान को बेचने के लिए मना लेंगे और मां को किसी छोटे मकान में शिफ्ट कर देंगे और यह करोड़ की जायदाद में से हमें भी लाखों रुपए का फायदा होता और यह पैसा हमारे और हमारे बच्चों के भविष्य के काम आता! पर मां समझती ही नहीं है कुछ! और क्या इन पैसों को लेकर के ऊपर जाएगी और यह घर भी यही रहने वाला है, अब मां भी कितना जीएगी,
अपने जीते जी यह सारी प्रॉपर्टी अगर हमें दे देती तो हमारे कुछ काम तो आती, अब पता नहीं कैसे चलेगा! अकेली प्राणी है मां फिर भी शौक देखो उनके, पूरा लंबा चौड़ा मकान चाहिए उन्हें रहने के लिए। हमसे ज्यादा तो किराएदारों से लगाव है, हम तो इसीलिए इतना खर्चा करके यहां आए थे ताकि मां हमें प्रॉपर्टी में से हमारा हिस्सा दे दे।
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तभी अचानक से मा ने गेट पर धक्का दे दिया और दोनों बेटों को आश्चर्य से देखने लगी। दोनों बेटे मां को सामने देख कर सकपका गए। बेटा बोला.. अरे मां आप अभी तक जाग रही है, आप सोए नहीं क्या अभी तक, कोई तकलीफ है क्या आपको? हां तकलीफ है मुझे, तुम्हारी ऐसी घटिया सोच से, अपनी परवरिश पर शर्मिंदा हूं मैं ,तुम यहां अपनी मां से मिलने या त्योहार मनाने नहीं आए तुम तो मेरे इस मकान का सौदा करने के लिए आए हो,
ताकि तुम्हें खूब सारा धन मिल जाए, तुम्हें ऐसे सोचते हुए भी शर्म नहीं आई, तुम दोनों भाई इतने लायक हो इतने काबिल हो विदेश में बसे हुए हो, तुम्हें मां की चिंता नहीं है तुम्हें सिर्फ पैसों की चिंता है और अब तो तुम अच्छे से कान खोल कर सुन लो मेरी जीते जी तुम्हारे यह अरमान कभी पूरे नहीं होंगे! अगर तुम मुझसे प्यार से अपनी ज़रूरतें बताते तो क्या मैं तुम्हें आर्थिक मदद करने से मना करती?
वैसे भी मेरे बाद तो यह सब कुछ तुम्हारा ही था तो तुम लोगों को इतना भी सबर नहीं था! खैर छोड़ो.. अब जब मैंने सब सुन और देख ही लिया तो कुछ भी कहने से कोई फायदा नहीं है! तभी रोहित और सुमित दोनों भाग कर मैं मां के पैरों में पड़ गए, नहीं मां हम बहुत शर्मिंदा है,
हमें नहीं पता हमने ऐसे कैसे सोच लिया, हमें माफ कर दो ,हम अपनी सोच पर बहुत शर्मिंदा हैं, जिस मां की वजह से हम आज यहां तक पहुंचे हैं हमने उसी मां को धोखा देने की कोशिश की है! बच्चे उनके सामने शर्मिंदा हो रहे थे किंतु आज जैसे कांत जी को कुछ सुनाइ ही नहीं दे रहा था। आज उनका विश्वास बुरी तरह छलनी हुआ था। कांता जी के मन से दोनों बच्चे उतर चुके थे। और उन्होंने अपने बच्चों को जल्दी से जल्दी वहां से जाने के लिए बोल दिया। अपने बच्चों की असलियत उनके सामने आ गई थी!
हेमलता गुप्ता स्वरचित
( शर्मिंदा)
माँ बाप अपने संतान की अच्छी परवारीश में अपनी तरफ से कोई भी कमी नही रखते. लेकिन आज का माहोल, आज का जमाना इतना स्वार्थी हो गया हैं की सगी संतान भी अपने स्वार्थ के लिये बुढे माँ बाप को भी धोखा देने में आगे पीछे नही देखते.कई जगह पर तो देखा गया की बच्चे अपने माँ बाप को अंधेरे में रख कर उन्हे कुछ भी कारण बताकर किसी दुसरी जगह या वृद्धाश्रम में भेज देते हैं. और उनके पीछे घर बार बेचकर अपना उल्लू सिधा कर भाग जाते हैं. यहापर अम्माजी ने सही निर्णय लेकर अपने बेटों को सही रास्ता दिखाया. बहोत बढिया.