अपनों का आशीर्वाद – अमिता कुचया : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi: जीवन में बच्चों का पालन पोषण करना बहुत बड़ी बात होती है, उसमें अपनों का भी साथ होता है पर हम भूल जाते हैं हम अपने अहंकार में भूल जाते हैं कि क्या खोया, क्या पाया , थोड़ी सी बात के कारण हम अपनों से दूरी बना लेते हैं। जो कि हमें अकेले पन का एहसास कराती है,यही बात रीना महसूस कर रही थी,रीना जानती है कि बड़े पापा के यहां नहीं जाना है, बाजू में बहुत रौनक और चहल पहल हो रही थी।सब रिश्ते दार आ रहे थे। सब चाचा चाची के बारे में पूछ रहे थे कि वे नहीं आयेंगे क्या?

क्योंकि रमा दीदी की शादी थी।रमा दीदी से हमेशा बात होती रहती थी। रीना जानती थी कि बड़े पापा  पापा को मनाने जरुर आयेंगे।

वे चाहते थे, कि बिटिया को आशीर्वाद चाचा का मिल जाए। पर वो सोच रहे थे कि छोटा भी झुके•••

कुछ समय पहले की बात है ,जब दोनों भाइयों के बीच मकान और जमीन जायदाद का बंटवारा हो रहा था। तब दोनों के बीच मनमुटाव हो गया था। इसी कारण दोनों के बीच बातचीत बंद थी। वो दोनों नहीं चाहते थे कि बात और बढ़े , दुनिया इसका नजारा देखें,इसलिए आजूबाजू घर होने के बावजूद मतलब रखना बंद कर दिया। परंतु हमेशा रमा और रीना चाहती थी, कि दोनों भाइयों में पहले जैसे प्यार और अपनापन बढ़ जाए।

दोनों खिड़कियों से बात करती थीं। नका एक दूसरे के घर आना जाना बंद था। पर अब तो इतनी बड़ी खुशी की बात थी कि बिना बात करें चल ही नहीं सकता था। प्यार अभी भी वैसा ही था। लेकिन उनके पिता बंटवारे से संतुष्ट न होने के कारण बच्चों को भी मिलने से मना करते थे। और कहते कि उनसे हमें कोई मतलब नहीं रखना है!

पर जब कोई अपना कोई रुठा हो ,खुशी कैसे मनाई जा सकती है ।रमा ने साफ- साफ अपने पापा से कह दिया-  “जब तक चाचा- चाची मुझे आशीर्वाद नहीं देंगे तो मैं शादी नहीं करुंगी। चाहे कुछ हो जाए उन्होंने बचपन से बड़े होने तक इतना लाड़ प्यार दिया। उनके बिना मैं शादी कैसे कर सकती हूं?आप अपनी अकड़ में रहे तो मत सोचना कि मेरी शादी भी होगी।”

अब क्या था •••रमा के पापा कहने लगे – “छोटे ने भी कितने अपशब्द कहे मैं ही क्यों झुकूं। उसने भी तो बहस की।”

फिर रमा बोली – “घर में अपने भाई से बात करने में अगर झुकना होता है, तब आप व्यापारियों के आगे कितनी बार झुकते हैं। कि हमारा सामान दुकान से बिक जाए। पर आप भी कहां समझोगे•••!थोड़ा  सा ज्यादा हिस्सा चाचा के हिस्से में चला गया तो आपने  उन्हें अपना शत्रु ही समझ लिया।”

रमा के समझाने पर उसके पापा को अपनी गलती का अहसास हुआ•••••

फिर क्या था ,बड़े भाई होने के नाते सोचा चलो छोटे से बात कर लेते हैं, बेटी की शादी हो रही है, आखिर परिवार में थोड़ा  कम या ज्यादा हुआ तो क्या•••

आज  रीना के पापा भी बहुत बैचेन हो रहे थे, और घर  में चहल कदमी कर रहे थे।उनका मन भी शांत नहीं था।पर वो भी बड़े भैया के बुलावे के लिए व्याकुल हो रहे थे। कहते हैं न, खून का रिश्ता तोड़े नहीं टूटता। आपसी मतभेद से खत्म नहीं होता।वैसा ही हुआ•••

रमा और रीना की कोशिश आखिर रंग ही लाई।

आज दोनों भाइयों में गुस्से का गुब्बार  जो भरा हुआ था, वो जैसे आंखों में आंसुओं के साथ निकलने ही वाला था।

रमा से उसके पापा ने कहा -“जा चाचा को कहना कि पापा ने बुलाया है।”

इतना ही सुनना था।कि वह चाचा को बुलाने चली गई उसे आता देख चाचा के अंदर खुशी का भाव था तुरंत वो बोले पापा ने भेजा है ना •••और तभी रमा बोली- हां चाचा •••हां •••आपने कैसे सोच लिया कि आपके आशीर्वाद के बिना मेरी शादी होगी, चाचा से गले लग कर रोते हुए कहने लगी -“पापा और आपकी लड़ाई में हम बच्चों का क्या कसूर ?आपने तो मेरे सिर पर हाथ भी नहीं रखा । आपका गुस्सा हम लोगों के प्यार पर ज्यादा भारी पड़ गया!आपको चलो पापा ने बुलाया है।”

इतना सुनते ही चाचा की आंखों में ख़ुशी के आंसू भर आए और उनका प्यार और विश्वास जीत गया, और बोले -“सच में भैया ने मुझे बुलाया है••••”

जैसे चाचा ही चाह रहे थे कि भैया एक आवाज दे मैं दौड़ा चला जाऊं, आखिर घर की बेटी की शादी जो हो रही थी।

इस तरह रमा और रीना की कोशिश रंग लाई, दोनों भाइयों के बीच जो दूरी बन गई थी। दूरी खत्म हुई और दोनों  ने एक होकर अपनी  बेटी को शादी में आशीर्वाद दिया। इस तरह दूरियां नजदीकियों में बदल गई।

दोस्तों – भाइयों के बीच कितनी भी बड़ी अनबन हो, पर बचपन से जिस चाचा की गोद में खेला हो, बड़े होने तक इतना लाड़ दुलार मिला ,क्या एक बेटी अपने चाचा के बिना डोली में बैठ सकती है नहीं न •••आखिर वो भी चाहती है उसे भी अपनों का आशीर्वाद मिले। आशीर्वाद ही जिंदगी को खुशहाल और समृद्ध बनाता है। इसलिए हम देखते हैं कि आमंत्रित कार्ड पर आशीर्वाद देने का अनुरोध किया जाता है।ताकि घर की बेटी का जीवन संवर जाए,सबका आशीर्वाद मिल जाए।

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स्वरचित  और अप्रकाशित

मौलिक रचना

अमिता कुचया

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