चाभी – मीनाक्षी सौरभ

“अंकल, आप जब भी फ़्री हों तो प्लीज़ फ़ोटोग्राफ़र से बोलिएगा कि हमें भी डांडिया नाइट की फ़ोटोज़ शेयर करे।” खाने की टेबल पर बैठी प्रिया ने कहा।

“हाँ, उस दिन हमारी ज़्यादा फ़ोटोज़ ही नहीं हो पाईं थीं। हम लोग होस्टिंग में बिजी थे।” रावी भी मुस्कुराते हुए बोली।

“ज़रूर बेटा। बहुत सारी फ़ोटोज़ हैं। फ़ोटोग्राफ़र ने सारी हमें भेज दीं हैं।” मोहन जी ने आत्मीयता से कहा।

“रश्मि भेज देगी एमसी वाले ग्रुप में।” अपनी बहू की तरफ़ इशारा करते हुए शीला जी बोलीं।

“हाँ मम्मा। सेंड कर दूँगी।”

“अंकल, आप लोग इतना शानदार प्रोग्राम करवाते हैं, इतना पैसा खर्च होता है… ये सारे वीडियोज, फ़ोटोज़ सोशल मीडिया पर क्यों नहीं डालते?” प्रिया ने मन में उठा सवाल पूछ ही लिया।

मोहन जी प्लेट में पनीर चिली रखते हुए बोले, “इस शो ऑफ की क्या ज़रूरत है बेटा?”

“अंकल, शो-ऑफ के लिए नहीं लोगों की नॉलेज के लिए और फिर बहुत से लोग जो पहली बार यहाँ आते हैं, वो सबसे पहले सोशल मीडिया पर सर्च ज़रूर करते हैं। इससे उनको भी तो पता चलेगा कि यहाँ कितनी सारी इंडियन कल्चरल एक्टिविज् होती हैं। इतने सालों से यहाँ रहने के बावजूद हम ख़ुद भी तो अननोन थे ना पहले इस प्रोग्राम से।

“बात तो सही है। रश्मि, इस बार कर लेते हैं ये।” अपनी बहू की ओर देखते हुए मोहन जी ने कहा।

“ठीक है डैडी। आइडिया अच्छा है।”

“हमारे सोशल मीडिया वाले काम सारे रश्मि ही करती है। सारे पासवर्ड्स भी इसी के ही पास है।” मोहन जी ने मुस्कुराते हुए कहा।

“अच्छा है ना अंकल। पहले बहुओं को घर की चाभियाँ विरासत में दी जाती थीं और अब घर के सोशल मीडिया की चाभी।” हँसते हुए रावी बोली।

“अरे यार! क्या बात कह दी तूने। मज़ा आ गया।” प्रिया चहक उठी।

“एकदम सही बात कही। रिश्ता वही, सोच नई।

विरासत चाहे घर की हो या सोशल मीडिया की… चाभी सुटेबल हाथों में ही सौंपी जानी चाहिए और बहुओं से अधिक सुटेबल और कोई नहीं।”

“वैसे रश्मि, घर की चाभी तेरे ही पर्स में है ना बेटा।” शीला जी के ये कहने पर सब हँस पड़े।

मीनाक्षी सौरभ 

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